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‘अपनी सरजमीं छोड़कर भला कौन खुश रहता है!’

लखनऊ | समाचार डेस्क: मुजफ्फरनगर हिंसा के दौरान अपने चार परिजनों को अपनी आंखों के सामने कत्ल होते देखने वाले शाकिर अली बेघर होकर फिलहाल शिविर में परिवार के साथ रह रहे हैं. वह कहते हैं कि अपना गांव और घर छोड़कर कौन खुश रहता है. अगर सरकार सभी दोषियों पर कड़ी कार्रवाई कर हमें सुरक्षा का वातावरण दे तो हम वापस चले जाएंगे.

मुजफ्फरनगर हिंसा पीड़ितों के राहत और पुनर्वास के लिए काम कर रहे कई गैर सरकारी संगठनों के समूह ज्वाइंट सिटिजंस इनिशिएटिव की तरफ से लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम ‘मुजफ्फरनगर की पुकार’ में अपनी आपबाती बताने और सरकार से न्याय की गुहार लगाने आए कुटबा गांव निवासी शाकिर कहते हैं कि अपनी सरजमी छोड़कर भला कौन खुश रह सकता है.

उन्होंने कहा, “हम घर वापस जाना चाहते हैं लेकिन सरकार पहले हिंसा के सभी आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे और हमें एहसास कराए कि घर वापस जाकर हम सुरक्षित रहेंगे तो अपने गांव लौटने को तैयार हैं.”

गत 8 सितंबर को भड़की हिंसा में शाकिर के दो भाइयों और दो भतीजों की एक समुदाय की भीड़ ने घर के सामने हत्या कर दी थी.

कुटबा शाहपुर थाना क्षेत्र के तहत आने वाला गांव है. इस गांव की आबादी करीब आठ हजार है जिसमें करीब दो हजार मुस्लिम आबादी है. हिंसा में इस गांव के आठ मुसलमान मारे गए.

शाकिर कहते हैं, “उस सुबह को याद करता हूं तो रूह कांप जाती है. हथियारों और असलहों से लैस सैकड़ों लोगों की भीड़ को देखकर जो परिजन घरों को बंद करके छिप गए उनकी तो जान किसी तरह बच गई लेकिन जो नहीं भाग पाए उन्हें बेरहमी से मार दिया गया.”

उन्होंने कहा कि अगर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान आधा घंटा और नहीं आते तो हमारे सारे लोगों को मार दिया जाता.

अपना पिता खोने वाले शाकिर के भतीजे इमरान कहते हैं, “हम लोगों ने गांव के 111 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया लेकिन अब तक सिर्फ दो लोगों को गिरफ्तार किया गया.”

इमरान के मुताबिक जिन लोगों के नाम हमने पुलिस को बताए उन्हें जानबूझकर पकड़ा नहीं जा रहा है. पुलिस उन्हें फरार बता रही है, जबकि वे निडर होकर गांव में ही घूम रहे हैं.

हिंसा में अपनी मां को खोने वाले ग्रामीण कल्लू कहते हैं, “विडंबना देखिए कि जिन लोगों ने गुनाह किया वे खुलेआम घूम रहे हैं लेकिन हमको डरकर और छुपकर रहना पड़ रहा है.”

उन्होंने कहा, “सरकार अगर चाहती है कि हम लोग अपने घरों में वापस जाएं तो पहले निडर और खुलेआम घूम रहे हत्यारों को जेल में डालकर उनको कड़ी सजा दिलवाए.”

उल्लेखनीय है कि मुजफ्फरनगर और शामली में गत 8 सितंबर को भड़की हिंसा में 62 लोगों की मौत हुई थी. 200 लोग घायल हुए थे और करीब 50 हजार लोग बेघर होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हुए थे.

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