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योगी पर भारी राजनीति के जोगी

नई दिल्ली | एजेंसी: योगगुरु बाबा रामदेव पर प्रतिपक्ष का राजनीतिक योग भारी पड़ा. बाबा के चलते मोदी सरकार भी कटघरे में खड़ी हो गई. संसद में योगी बाबा की दिव्य फार्मेसी की दवा ‘पुत्र जीवक बीज’ पर हंगामा खड़ा किया गया. हलांकि इसका सियासी नफा नुकसान किसको कितना हुआ, यह आकलन का विषय है.

प्रतिपक्ष इस मसले को उठाकर राजनीतिक विजय का दंभ भरता दिखता है, लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि जेडीयू के सांसद केसी त्यागी की ओर से उठाया गया मुद्दा आयुर्वेद के तर्को पर खरा नहीं उतरता.

संसद में इस मसले को उठाने से पहले आयुर्वेद पर गहन अध्ययन की आवश्यकता थी. आयुर्वेद ज्ञान के अभाव में जिस तरह का बखेड़ा खड़ा किया गया, उसे तार्किक और गंभीर नहीं कहा जा सकता. इस हंगामे के पीछे राजनीतिक निहितार्थ अधिक था संवेदनात्मक सोच का अभाव दिखा.

राजनीति का मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना है. संसद में गंभीर मसलों पर चर्चा की गूंज कम ही सुनाई देती है. प्रतिपक्ष जमीनी मुद्दों से जनता का ध्यान हटाकर केवल हंगामा खड़ा करता है. ऐसी स्थिति में वह सत्ता पक्ष का काम और आसान कर देता है. विपक्ष की स्थिति आज कुछ इस तरह की है कि सत्तापक्ष जो चाहता है, विपक्ष वैसा ही कुछ करता है. इससे जनता का ध्यान मूल समस्याओं से हट जाता है और राजसत्ता का काम आसान हो जाता है.

विपक्ष का वर्तमान में सिर्फ एक धर्म है मोदी सरकार को ऐनकेन प्रकारेण घेरना. जमीनी सच्चाई को उठाने के बजाय वह सिर्फ मौका खोजता दिखता है. बेमौसम बारिश और ओला से तबाह हुई फसलों के कारण अन्नदाता आत्महत्या कर रहा है.

केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से फौरी राहत के नाम पर जो राशि उपलब्ध कराई जा रही है, उसका कोई मतलब नहीं है. किसानों से राहत के नाम पर भी घूस मांगी जा रही है. उत्तर प्रदेश के संभल में राहत राशि का चेक उपलब्ध बांटते वक्त लेखपाल की ओर से कथित घूस मांगने के कारण किसान की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

देश में हर साल 12,000 किसान आत्महत्या करते हैं, लेकिन यह मसला गंभीर चर्चा से बाहर दिखते हैं. भारत एक धर्म निरपेक्ष और सहिष्णु राष्ट है. यहां हर तरह की धर्म-संस्कृति के विकसित होने के लिए खुली जमीन उपलब्ध है. इसी का फायदा उठा कर धर्म की आड़ में आम लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है. धर्म के लंबरदार इसी का बेजा लाभ उठा लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल कतरे हैं.

आसाराम बापू का असली चेहरा दुनिया के सामने आने के बाद धर्म की आड़ में उनकी तरफ से की जा रही साजिश किसी से छुपी नहीं है. अपने किए पाप की सजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है.

धर्म की आड़ में आसाराम ने व्यवसाय का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया था. उनकी ओर से बनाई गई कामोत्तेजक दवाओं पर भी सवाल उठा था.

हरियाणा के बाबा रामपाल की बाजीगरी किसी से नहीं छुपी है. बाबा की गिरफ्तारी को लेकर हरियाणा पुलिस प्रशासन को कितना संकट झेलना पड़ा, इसकी कहानी किसी से छुपी नहीं है. हलांकि इन बाबाओं से योगी रामदेव की तुलना बेईमानी होगी.

बाबा रामदेव की छवि इस तरह की नहीं है. उन्हें योगगुरु के रूप में जाना जाता है. भारत में योग और आयुर्वेद विज्ञान को नई पहचान दिलाने का श्रेय स्वामी रामदेव को जाता है.

दुनियाभर में बाबा रामदेव ने योग का झंडा लहराया है. उन्हीं के प्रयास से यूएन ने 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में घोषित किया है. लेकिन राजसत्ता के करीब रहना बाबा की खूबी रही है.

भ्रष्टाचार और कालेधन के जरिए कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले बाबा का मोदी और भाजपा प्रेम जग जाहिर है. लेकिन योग और आयुर्वेद की आड़ में उनका भी मूल मकसद आर्थिक साम्राज्य पर कब्जा करना है.

दिव्य फार्मेसी के जरिए उन्होंने आयुर्वेद के बड़े बाजार पर उन्होंने कब्जा जमा लिया है. पंताजलि की दवाएं और दूसरी वस्तुएं आज लोगों की खास पंसद बन गई है.

हालांकि बाबा रामदेव को सुर्खियों में बने रहना अच्छा लगता है. मीडिया को वे बड़े संजीदगी से लेते हैं. इसके पहले भी पतांजलि की दवाओं में हड्डियों का चूर्ण मिलाए जाने का आरोप लग चुका है.

कांग्रेस की सरकार में इस पर खूब हंगामा खड़ा हुआ था. वैसे पुत्र जीवक बीज पर जिस तरह संसद में हंगामा खड़ा किया गया, उसके पीछे जनता जेडीयू के केसी त्यागी की सोच सिर्फ राजनीतिक कही जा सकती है.

उन्होंने दवा के पैकेट पर छपे नाम की आड़ में बाबा और मोदी सरकार को घेरना चाहा, हालांकि इसमें उन्हें अधिक कामयाबी नहीं मिली, लेकिन बाबा की परेशानी बढ़ गई.

आखिर ‘पुत्र जीवक बीज’ नाम भ्रामक तो है ही. पहले बाबा दवा का नाम बदलने के लिए तैयार नहीं दिखे. लेकिन संसद में अधिक हंगामा और दबाब बढ़ने पर वह बाजार में आने वाले नए उत्पाद के नाम में संशोधन के लिए राजी हो गए.

बाबा को अब तंबाकू उत्पादों की भांति चेतावनी भी अंकित करनी पड़ेगी और लिखना होगा कि इस दवा का संबंध बेटा पैदा करने से नहीं है. लेकिन एक बात सच है कि बाबा राजनीतिक तौर पर बदनाम होकर भी नाम वाले हो गए.

अभी तक जो लोग पुत्र जीवक बीज के बारे में नहीं जानते थे, उन्हें भी मालूम हो गया कि इस दवा का उपयोग बेटे पैदा करने के लिए किया जा सकता है. लेकिन यह आयुर्वेद विज्ञान के तथ्यों पर तर्कसंगत नहीं है. वैसे इसका उपयोग लोग बेटे पैदा करने के लिए ही करते आ रहे हैं.

अब यह कितना लाभकारी है यह दीगर बात हैं. योग गुरु की इस बात में दम है कि फकीर के बहाने वजीर पर निशाना साधा जा रहा है. संसद में इसके पीछे हंगामे का मकसद तो यही था, क्योंकि हाल ही में हरियाणा की खट्टर सरकार की ओर से उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है. उन्हें लालबत्ती भी सौंपी गई थी, लेकिन लेने से इनकार कर दिया.

यह जगजाहिर है कि बाबा मोदी के अंध समर्थक हैं. इस स्थिति में भला विपक्ष उन पर हमला करने से यह मौका कब चूकता. दवा के बहाने बाबा को निशाने पर लेना गलत था. भारत आयुर्वेद की गर्भस्थली है. धनवंतरि, चरक और दूसरे आयुर्वेद के जनक इसी भारत भूमि पर अवतरित हुए.

दुनियाभर के लोग भारत की आयुर्वेद शक्ति से परिचित हैं. केसी त्यागी को निश्चित तौर पर यह भ्रम रहा कि इस दवा की आड़ में बाबा रामदेव की ओर से लैंगिग असंतुलन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जबकि ऐसी बात नहीं है. उस दवा का नाम आयुर्वेद में पुत्र जीवक ही है.

दवा का मूल उपयोग स्त्रियों में बांझपन की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता रहा है. इसका उपयोग बहुद्देशीय है. यह सिर्फ बांझपन ही दूर नहीं करती है. यह शरीर के दूसरे विकारों को भी दूर करती है. इसका वानस्पतिक नाम ‘पुत्र अंजीवा’ है. देश के कई राज्यों में अलग-अलग नाम से यह जानी जाती है.

हिंदी में इसे पुत्रजीवक, गुजराती में पुत्राजीवा और मराठी में जीवपुत्रक के नाम से जानते हैं, जबकि संस्कृत में इसे अपत्यम्जीव है. इसके अलावा अंग्रेजी में इसे चाइल्ट एम्यूल टी, चाइल्ड लाइफ टी और लकी बेन टी के नाम से जानते हैं. इस औषधि को गर्भदा और गर्भकरा के नाम से जातने हैं. इसका उपयोग उत्तमगुणों वाली संतान के लिए किया जाता है.

लेकिन यह उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि इस औषधिक का उपयोग सिर्फ बेटा पैदा करने के लिए किया जाता है. इस दवा का उपयोग मूत्ररोग, खांसी, जलन और दूसरे बीमारियों में किया जाता है. लेकिन आयुर्वेद में इसके नाम के कारण इसका उपयोग बांझपन के खात्मे के लिए खास तौर पर किया जाता रहा है.

यह सदाबहार आयुर्वेदिक पौधा है. यह सदाबहार के रूप में जाना जाता है. इसमें बीज नहीं पाया जाता है. इसकी पत्तियां हरे गहरे रंग की होती हैं.

आधुनिक भारतीय राजनीति का चेहरा नकाबी हो चला है. हर मसले को राजनीति से जोड़ना राजनेताओं की फितरत बन गई है. हम मंचीय नाटकबाजी कर देश की मूल समस्याओं से आम लोगों का ध्यान बांटना चाहते हैं, क्योंकि उन समस्याआं के निराकरण के लिए के लिए हमारे पास कोई समाधान नहीं है. हमारा ध्यान सिर्फ वोट बैंक पर टिका है, जिस कारण समस्याओं का निदान नहीं हो रहा है. जमीनी हकीकत है कि देश में लैंगिग असमानता की खाई बढ़ रही है. हालांकि शिक्षा और जागरुकता के चलते इसमें गिरावट भी आई है, लेकिन यह बेहद मामूली है.

यह बात सच है कि देश में लैंगिग असंतुलन पर लोगों की सोच अलग-अलग है. हरियाणा, राजस्थान और दूसरे राज्यों में यह स्थिति चिंताजनक है. इसका नतीजा रहा कि प्रधानमंत्री मोदी को हरियाणा से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत करनी पड़ी.

लेकिन सच्चाई भी यह है कि बेटो की आस में कई-कई बेटिया पैदा हो जा जाती हैं, जिससे परिवार टूट जाता है. उस पर बेटियों के शादी और पढ़ाई-लिखाई का बोझ बढ़ जाता है.

समाज में बढ़ती बेटियों के प्रति असुरक्षा और दहेज जैसी समस्याएं उसके लिए नासूर बन जाती हैं. पंजाब के मोगा की घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है. संसद में आवरणी हंगामा खड़े करने वाले लोगों को बेटियों की सुरक्षा पर भी चिंतन करने की आवश्यकता है.

यह हमारे लिए सबसे शर्म और चिंता का सवाल है. हम शोर मचा कर धरातलीय सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते.

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