बाज़ार

हाथी रिज़र्व भी कोल ब्लॉक को

आलोक पुतुल | बीबीसी: कोयला ब्लॉक आवंटन के कुल 218 मामलों में 30 प्रतिशत सिर्फ छत्तीसगढ़ के हैं. ऐसे में खदानों के आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से सबसे ज़्यादा छत्तीसगढ़ प्रभावित होगा.

प्रदेश में 60 हज़ार मेगावाट की बजली परियोजनाओं पर काम हो रहा है. राज्य में कोल ब्लॉक के आवंटन में भी पर्यावरण और क़ानून को लेकर भारी अनदेखी की गई.

यहां तक एलिफेंट रिज़र्व के इलाके भी कोल कंपनियों के हवाले कर दिए गए. कोल ब्लॉक के आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला छत्तीसगढ़ के उन 66 कोल ब्लॉक को प्रभावित करेगा, जिन्हें निजी कंपनियों को अलॉट किया गया था.

वर्ष 1993 से 2012 के बीच देश में आवंटित कोयले के कुल 218 ब्लॉक का यह लगभग 30 फ़ीसदी हिस्सा है.कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का असर बिजली उत्पादन पर होगा. लेकिन इसकी हक़ीकत को छत्तीसगढ़ के उदाहरण से समझा जा सकता है, जहां 60 हज़ार मेगावाट बिजली बनाने की योजना पर काम चल रहा है.

कम से कम 30 निजी कंपनियां अकेले जांजगीर-चांपा ज़िले में पॉवर प्लांट बना रही हैं. देश में किसी एक स्थान पर इतनी मात्रा में बिजली नहीं बनती.

आवंटन के ख़िलाफ़ याचिका लगाने वाले सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि पॉवर प्लांट चलाने वाली 90 फीसदी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया के लिंकेज से ही कोयला लेती हैं. अपने कैप्टिव माइंस से कोयला लेने वालों की संख्या केवल 10 फीसदी है.

सुदीप कहते हैं, “कंपनियां लिंकेज का कोयला लेकर अपना पॉवर प्लांट चलाती हैं और आगे भी चला सकती हैं, इसमें कैसे संकट पैदा होगा?”

दूसरा मुद्दा, कोयला ब्लॉक में कथित रूप से फंसी 2.86 लाख करोड़ रुपए की पूँजी का भी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ही पेश दस्तावेज़ बताते हैं कि इनमें से 2.77 लाख करोड़ रुपए तो उद्योगों में लगे हैं, कोयला के ब्लॉक में नहीं.

कोयला ब्लॉक को लेकर सरकार की स्क्रीनिंग कमेटी की 36 बैठकों में पंचायत और पर्यावरण क़ानूनों की अनदेखी के सैकड़ों मामले हैं.

धर्मजयगढ़ के इलाके में पिछले 10 सालों में हाथियों से होने वाले नुकसान के लिए 10 हज़ार से अधिक मामलों में मुआवजा दिया गया, 20 से अधिक लोग मारे गए और इतने ही हाथियों को भी मार डाला गया. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2005 में इस इलाके में होने वाले मानव-हाथी संघर्ष को गंभीर मानते हुए वन विभाग को त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए थे.

लेकिन इसी इलाके में कई निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉक का आवंटन कर दिया गया. आवंटन के लिए जारी दस्तावेज़ों में दर्ज किया गया-‘यहां यदा-कदा हाथियों का आवागमन होता है.’

कोई 375 हाथियों वाले हसदेव-मांड के इलाके में सरकार ने कई प्रयास के बाद दो एलिफेंट रिजर्व बनाने के लिए केंद्र सरकार से सहमति ली, लेकिन जब केंद्र ने अपनी स्वीकृति दे दी तो सरकार इस मामले में चुप बैठी रही.

यहां तक कि 16 जनवरी 2011 को तत्कालीन केंद्रीय वन मंत्री ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर हाथी परियोजना में देरी होने पर नाराज़गी भी जाहिर की.

लेकिन सरकार ने हाथी प्रभावित मांड रायगढ़ और हसदेव अरण्य के इन्हीं इलाकों में 60 से अधिक निजी कंपनियों को कोल ब्लॉक आवंटित कर दिया. जिस इलाके को 2009 में ‘नो गो एरिया’ घोषित किया गया था, वही इलाका 2011 में निजी कंपनियों के हवाले कर दिया गया.

रही बात एलिफेंट रिज़र्व की तो, सरकार ने इस इलाके के पहले से ही संरक्षित बादलखोल, तमोर पिंगला और सेमरसोत वन्यजीव अभ्यारण्य को ही एलिफेंट रिज़र्व घोषित करके छुट्टी पा ली.

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