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जिंदा कौमें नौ महीने इंतजार नहीं करतीं

सुदीप ठाकुर
राम मनोहर लोहिया ने 1960 के दशक में नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अजेय सत्ता को चुनौती देते हुए कहा था, ‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं’.

दिल्ली विधानसभा के चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि देश की राजधानी के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा को खारिज कर दिया है. आप इन नतीजों को इस तरह भी पढ़ सकते हैं कि ‘जिंदा कौमें नौ महीने के बाद इंतजार नहीं करतीं.’ दरअसल मई, 2014 में मोदी की अगुआई में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद से लोगों की उम्मीदें एनडीए सरकार से काफी बढ़ गई थीं.

भाजपा भले ही यह कहे कि केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी को मिली जीत उसकी रणनीतिक भूल है, और इसे मोदी सरकार के कामकाज से नहीं जोड़ा जा सकता. मगर हकीकत यह है कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में जिस तरह से पैंसठ से अधिक सीटें मिली हैं, उससे साफ है कि उसे हर तबके का वोट मिला है. दक्षिण दिल्ली के पॉस इलाके से लेकर पूर्वी दिल्ली के कल्याणपुरी और संगम विहार जैसी पिछड़ी कालोनियों तक का. यह साफ तौर पर मोदी की सत्ता के लिए सबक है, जिन्हें देश के लोगों ने कांग्रेस के दस वर्ष के शासन से आजिज आकर सिर आंखों पर बिठाया था.

वास्तव में ये चुनाव मोदी सरकार के नौ महीने के जनादेश पर रायशुमारी कहे जा सकते हैं. दरअसल खुद मोदी ने इस चुनाव को अपने सरकार के लिए रायशुमारी में बदल दिया था. सुबूत के लिए मोदी की दिल्ली की रैलियों का रिप्ले देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने दिल्ली के लोगों से खुद के लिए वोट मांगा था.

दिल्ली के नतीजे बता रहे हैं देश की राजनीति बदल रही है. यानी जो काम नहीं करेगा, उसे खारिज कर दिया जाएगा. फिर वह मोदी ही क्यों न हों. भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के हाशिये पर जा रही कांग्रेस का हस्र भी इसीलिए हुआ है. मई, 2014 में लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था, तब लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि अगले दस साल अब मोदी को कोई हिला नहीं सकता.

असल में ‘पांच साल केजरीवाल’ के नारे के साथ दिल्ली की सत्ता में आ रही आम आदमी पार्टी के लिए यही सबसे बड़ा सबक है कि यदि उसने काम नहीं किया तो उसे भी खारिज किया जा सकता है, क्योंकि जिंदा कौमें अब अधिक इंतजार नहीं करतीं.

* लेखक अमर उजाला, नई दिल्ली के स्थानीय संपादक हैं.

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