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अंतरिक्ष में मानव मिशन की जांच GSLV-mark3

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: वह दिन दूर नहीं जब भारते अंतरिक्ष में अपने यान से मानव भेजेगा. इसका सफल परीक्षण गुरुवार को जीएसएलवी-मार्क 3 के माध्यम से कर लिया गया. मानव रहित होने के बावजूद जीएसएलवी-मार्क 3 ने भारत के अंतरिक्ष मिशन को नया आयाम दिया है. भारत ने अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की अपनी योजना का गुरुवार को एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया. अब तक के अपने सबसे वजनी व नवीनतम पीढ़ी के रॉकेट जीएसएलवी-मार्क 3 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया. यह रॉकेट अपने साथ प्रायोगिक क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया है, जो मानवरहित है.

नवीनतम पीढ़ी के वजनी रॉकेट का सफलतापूर्वक परीक्षण कर देश ने अपनी रॉकेट प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाया है.

भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान-मार्क3 का परीक्षण गुरुवार को सुबह 9.30 बजे आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया. 630 टन वजनी और 43.43 मीटर लंबे इस अंतरिक्ष यान ने प्रक्षेपण के कुछ ही सेकंडों में खुद को दूसरे लांच पैड से अलग कर लिया और आकाश में उड़ान भरी.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीएसएलवी-मार्क 3 के सफल परीक्षण पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी.

राष्ट्रपति ने कहा, “मेरी तरफ से वैज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा तकनीशियनों की आपकी टीम और इस अभियान में शामिल अन्य लोगों को हार्दिक बधाई. मैं आपके भविष्य के प्रयास के भी सफल होने की कामना करता हूं.”

मोदी ने बधाई देते हुए अपने संदेश में कहा, “जीएसएलवी का सफल परीक्षण हमारे वैज्ञानिकों के परिश्रम और प्रतिभा का एक और उदाहरण है. आप सभी को प्रयासों के लिए बधाइयां.”

करीब 155 करोड़ रुपये की लागत वाला यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने की योजना का हिस्सा है. यह अपने साथ 3.7 टन वजनी क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया है, जिसे क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट नाम दिया गया है. इसके जरिये अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है.

इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि इस क्रू मॉड्यूल का आकार एक छोटे से शयनकक्ष के बराबर है, जिसमें दो से तीन व्यक्ति आ सकते हैं.

उड़ान के पांच मिनट बाद रॉकेट 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर 3.7 टन वजनी क्रू माड्यूल से अलग हो गया.

उसके बाद क्रू माड्यूल पृथ्वी की तरफ काफी तेज गति से गिरा. पृथ्वी से 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक इसकी गति का नियंत्रण किया गया.

माड्यूल अंडमान एवं निकोबार द्वीप के निकट बंगाल की खाड़ी में गिरा.

यहां से मॉड्यूल के मल्टी-मोडल तथा मल्टी-स्टेट परिवहन यात्रा की शुरुआत हुई.

माड्यूल के सिग्नल पर नजर रख रहे नौसेना के एक जहाज ने इसे उठाया और इसे तमिलनाडु में चेन्नई के निकट एन्नोर बंदरगाह पर लाया गया. इसके बाद इसे केरल में तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र लाया जाएगा.

इसरो अध्यक्ष के.राधाकृष्णन ने कहा, “एक दशक पहले भारत ने रॉकेट विकास पर काम शुरू किया था और आज इसने अपना पहला परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. ठोस तथा द्रव्य इंजनों का प्रदर्शन उम्मीद के अनुकूल रहा.”

उन्होंने कहा, “मानवरहित क्रू माड्यूल उम्मीद के अनुकूल बंगाल की खाड़ी में गिरा.”

परियोजना निदेशक एस.सोमनाथ ने कहा कि देश के पास अब एक नया लॉन्चिंग वाहन है.

उन्होंने कहा, “भारतीय रॉकेट की पेलोड क्षमता में महत्वपूर्ण रूप से इजाफा हुआ है.”

उल्लेखनीय है कि क्रायोजेनिक इंजन ज्यादा दक्ष होता है, क्योंकि यह प्रति किलोग्राम प्रणोदक पर अपेक्षाकृत ज्यादा धक्का प्रदान करता है.

प्रयोग के तौर पर अंतरिक्ष में भेजे गए इस रॉकेट में वास्तविक क्रायोजेनिक इंजन नहीं है. यह अभी निर्माणाधीन है और इसके बनने में करीब दो साल का वक्त लगेगा. हालांकि, रॉकेट की संरचना के व्यावहारिक अध्ययन के लिए इसरो ने इसमें नकली क्रायोजेनिक इंजन लगाया है, जो अंतरिक्ष यान को ऊर्जा देने वाले वास्तविक क्रायोजेनिक इंजन की तरह ही है.

श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एम.वाई.एस. प्रसाद ने कहा कि इस नकली क्रायोजेनिक इंजन में भी मास सिमुलेशन के लिए तरल नाइट्रोजन भरा गया है.

जीएसएलवी रॉकेट का यह दूसरा मिशन था. इससे पहले 2010 में दो मिशन विफल हो चुके थे.

तीसरे चरण का इंजन क्रायोजेनिक है.

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