ताज़ा खबरविविध

आपको भी आ सकता है हार्ट अटैक

नई दिल्ली | इंडिया साइंस वायर: भारत में पिछले 25 वर्षों में हृदय रोग, पक्षाघात, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ी हैं. प्रतिष्ठित जर्नल द लेंसेट और इससे सम्बद्ध जर्नलों में बुधवार को प्रकाशित हुए नए अध्ययनों से यह बात सामने आई है.

भारत के हर राज्य में हृदय तथा रक्त वाहिकाओं संबंधी बीमारियों, मधुमेह, सांस संबंधी बीमारियों, कैंसर और आत्महत्या के 1990 से 2016 तक के विस्तृत आंकलन दर्शाते हैं कि ये बीमारियां बढ़ी हैं परंतु अलग अलग राज्यों में इनके प्रसार में काफी भिन्नता है.

पिछले 25 वर्षों के दौरान भारत में हर राज्य में हृदय संबंधी बीमारियां और पक्षाघात के मामले 50% से अधिक बढ़े हैं. देश में हुईं कुल मौतों और बीमारियों के लिए इन रोगों का योगदान 1990 से लगभग दोगुना हो गया है.

भारत में अधिकांश बीमारियों में हृदय रोग प्रमुख है, और वहीं पक्षाघात पांचवां प्रमुख कारण पाया गया है.

ह्रदय रोग से 28 फीसदी मौत

भारत में हुईं कुल मौतों में से हृदय संबंधी बीमारियों और पक्षाघात के कारण हुईं मृत्यु के आंकड़े 1990 में 15.2 प्रतिशत थे, जो 2016 में बढ़कर 28.1 प्रतिशत आंके गए हैं. कुल मौतों में से 17.8 प्रतिशत हृदयरोग और 7.1 प्रतिशत पक्षाघात के कारण हुईं.

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में हृदय रोग के कारण मृत्यु और अक्षमता का अनुपात काफी अधिक है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं में पक्षाघात समान रुप से पाया गया. भारत में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की संख्या 1990 में 13 लाख से बढ़कर 2016 में 28 लाख पाई गई.

कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के मामलों की संख्या 1990 में 2.57 करोड़ से बढ़कर 2016 में 5.45 करोड़ हो गई है. केरल, पंजाब और तमिलनाडु में इनका प्रसार सबसे अधिक था, इसके बाद आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, और पश्चिम बंगाल में भी ये अधिक पाए गए है.

वर्ष 2016 में भारत में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण हुईं कुल मौतों में से आधे से ज्यादा लोग 70 साल से कम उम्र के थे.

शोधकर्ताओं के अनुसार “यह अनुपात कम विकसित राज्यों में सबसे अधिक था, जो इन राज्यों में स्वास्थ्य प्रणालियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों के संबंध में चिंता का एक प्रमुख कारण है.”

युवा चपेट में

शोधकर्ताओं के कहना है कि भारतीय युवाओं और प्रौढ़ों में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण होने वाली समय पूर्व मौतों को कम करने के लिए भारत के सभी राज्यों में तत्काल कार्रवाई और यथोचित कदम उठाने की महती आवश्यकता है.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष और शोध से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर के श्रीनाथ रेड्डी ने बताया कि “अध्ययन दर्शाते हैं कि प्रत्येक राज्य में इस संदर्भ में उचित प्रबंधन होना चाहिए. भारत के प्रत्येक राज्य में होने वाली किसी विशेष बीमारी का पता लगाते हुए उसको प्राथमिकता देना चाहिए.”

उन्होंने कहा-“प्रस्तुत अध्ययन प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रणाली संसाधनों को रोग विशेष की प्रारंभिक रोकथाम और प्रभावी उपचार के माध्यम से अधिकतम सहायता करने में सहायक साबित होगा.”

शोध के अन्य संयुक्त वरिष्ठ लेखकों में डॉ सौम्या स्वामीनाथन और डॉ ललित दंडोना शामिल हैं.

आईसीएमआर के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव का कहना है कि भारत में असंक्रामक रोग बढ़ रहे हैं, लेकिन मूलचिंता का विषय यह है कि इस्कीमिक अर्थात् खून की कमी संबंधी हृदय रोग और मधुमेह में वृद्धि की उच्चतम दर कम विकसित राज्यों में है.

भार्गव के अनुसार ये राज्य पहले से ही पुरानी प्रतिरोधी फेफड़ों की बीमारी और संक्रामक और बच्चों संबंधी बीमारियों से बुरी तरह जूझ रहे हैं.

मधुमेह बना यमराज

वर्ष 1990 से लोगों के स्वास्थ्य में आने वाली गिरावट में बढ़ोत्तरी के लिए प्रमुख असंक्रामक रोगों में से मधुमेह सबसे बड़ा कारण है. देश के हर राज्य में इसमें काफी वृद्धि देखी गई है, और कई कम विकसित राज्यों में वृद्धि की सापेक्ष दर सबसे ज्यादा है.

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है, “इन राज्य-स्तरीय भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य की इस संभावित विस्फोटक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत कार्रवाई होनी चाहिए.”

भारत में मधुमेह से ग्रस्त लोगों की संख्या 1990 में 2.6 करोड़ से बढ़कर 2016 में 6.5 करोड़ हो गई है. 2016 में भारत में मधुमेह के लिए उत्तरदायी संकट कारकों में से उच्च शारिरिक भार इंडेक्स (बीएमआई) सबसे अधिक प्रभावी है.

अन्य कारकों में आहार संबंधी अनियमितताएं, तम्बाकू सेवन, धूम्रपान,कम शारीरिक गतिविधियां और मदिरापान शामिल हैं.

कैंसर के भी मरीज बढ़े

भारत में कुल स्वास्थ्य गिरावट के लिए कैंसर का आनुपातिक योगदान 1990 से 2016 तक दोगुना हो गया है, लेकिन अलग अलग राज्यों में विभिन्न प्रकार के कैंसरों में व्यापक रूप से भिन्नता देखने को मिली हैं. 2016 में भारत में कुल मृत्यु का 8.3% कैंसर के कारण था, जो 1990 में हुए कैंसर के योगदान से दोगुना है.

भारत में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 1990 में 5.48 लाख से बढ़कर 2016 में 10.6 लाख हो गई.

2016 में पाए गए प्रमुख कैंसरों में पेट (9%), स्तन (8•2%), फेफड़े (7•5%), होंठ और मुंह का कैंसर (7•2%), गले के कैंसर के अलावा नेसोफैरेनिक्स कैंसर (6•8%), आंत और गुदा के कैंसर (5•8%), ल्यूकेमिया (5•2%), और गर्भाशय (5•2%)कैंसर शामिल हैं.

वर्तमान में भारत में 15-39 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में आत्महत्या मौत का प्रमुख कारण है, महिलाओं द्वारा की जाने आत्महत्याओं के कारण होने वाली कुल वैश्विक मौतों का 37% भारत में होता है, और बुजुर्गों में आत्महत्या की मृत्यु दर भी पिछले पच्चीस सालों में काफी बढ़ी है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर), पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई), और इंस्ट्टिट्यूट फॉर हैल्थ मैट्रिक्स एण्ड इवेल्युएशन (आईएचएमई) कीभारतीय राज्य स्तरीय रोग संबंधी पहल नामक एक संयुक्त परियोजना के एक हिस्से के रूप में ये अध्ययन किए गए हैं. शोध में 100 से अधिक भारतीय संस्थानों के विशेषज्ञों ने भाग लिया.

error: Content is protected !!