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स्विस तथा भारतीय बैंक के नियम समान

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: भारतीय बैंक भी स्विस बैंकों के समान गोपनीयता का पालन करते हैं. इस कारण से भारत में वर्षों से ऋण की अदायगी न करने वाले कारपोरेट घरानों पर बकाया ऋणों के संबंध में कोई विशिष्‍ट जानकारी उपलब्‍ध नहीं है. कम से कम कारपोरेट मामलों की राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन की मंगलवार को राज्यसभा में दी गई लिखित जानकारी से ऐसा ही जान पड़ता है.

गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ई एवं बैंकिंग कानूनों में यह प्रावधान है कि बैंक एवं वित्तीय संस्‍थाएं अपने ग्राहकों के बारे में गोपनीयता बनाये रखने के लिए बाध्‍य हैं. ठीक इसी तरह से स्विस बैंक अपने यहां जमा काले धन की जानकारी नहीं दे सकते हैं. यह वहां का स्थानीय कानून है. अब भारतीय बैंकिग कानून के कारण उन कारपोरेट घरानों का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है जिन्होंने बैंकों का पैसा दबाया हुआ है.

ज्ञात्वय रहे कि 40 सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का 2.4 लाख करोड़ रुपयों की आज तक वसूली नहीं पाई है. यह रकम कितनी बड़ी है इसका अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन के 2 फीसद के बराबर का है. बैंको में जमा ज्यादतर रकम मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग के द्वारा जमा कराया जाता है. बड़े व्यापरी तो केवल अपने उद्योगों के लिये कर्ज लेते हैं.

ऐसे में कहा जा सकता है कि छोटे जमाकर्ताओं के रकम को बड़े कारपोरेट घराने दबाये बैठे हैं, भारतीय बैंकिंग कानून की आड़ में. अन्यथा उनके नाम सार्वजनिक किये जा सकते थे. जब संसद को इस बात की जानकारी नहीं दी सक रही है कि तो इस रकम के वसूली के लिये कड़े कदम कैसे उठाये जा सकेंगे.

सदन में जानकारी दी गई है कि “वित्तीय क्षेत्र की स्थिति में सुधार, एनपीए में कमी करना, बैंकों की परिसम्‍पत्ति गुणवत्‍ता में सुधार तथा एनपीए की स्‍लीपेज की रोकथाम के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्देश जारी किये हैं, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि प्रत्‍येक बैंक उनके मंडल द्वारा अनुमोदित ऋण वसूली की नीति लायेगा. नये ऋणों की मंजूरी, तदर्थ ऋणों, नये ऋणों अथवा वर्तमान ऋणों के नवीनीकरण के बारे में सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक सुदृढ़ प्रणाली लाई जायेगी, जिससे सभी समर्थ खातों के मामले में सरफेसी अधिनियम, 2002, ऋण वसूली प्राधिकरणों और लोक अदालतों जैसे कानूनी उपायों का सहारा लेते हुए तत्‍पर पुर्न-संरचना सहित ऋणों के खराब होने के लक्षणों का शीघ्र पता लगाया जा सके.”

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