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वाशिंगटन | समाचार डेस्क: भारत-अमरीका सैन्य सुविधा समझौते पर औपचारिक मुहर लग गई है. अमरीकी दौरे पर गये भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर तथा अमरीकी रक्षा मंत्री ऐश कार्टर ने इस समझौते के बाद एक साझा बयान जारी किया है. जानकारों का मानना है कि जहां अमरीका क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकेने के लिये एक सक्षम साथी की तलाश में था वहीं भारत को भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद तथा चीनी सीमा पर हो रहे घुसपैठ से निपटने के लिये एक मजबूत साथी की जरूरत थी. दोनों देशों की जरूरत इस समझौते की बुनियाद है.

हालांकि, कई दूसरे जानकारों का कहना है कि भारत ने अपनी वर्षो पुरानी गुट निरपेक्षता की नीति का त्याग करके अमरीका के साथ समझौता किया है.

वहीं, वाशिंगटन स्थित थिंकटैंक हडसन इंस्टीट्यूट में भारत-अमरीका रिश्तों पर काम कर रही अपर्णा पांडे का कहना है कि ये समझौता दोनों देशों के बढ़ते सामरिक रिश्ते का प्रतीक है. उनका कहना है, “पहले ही से दोनों देशों के फ़ौजी अधिकारियों के बीच विश्वास की एक परत कायम हो चुकी है और ये समझौता उस पर एक और नये परत की तरह है.”

वाशिंगटन में कई जानकारों का ये भी मानना है कि अमरीका और भारत के बीच बढ़ता फ़ौजी तालमेल चीन के बढ़ते प्रभाव को काबू करने की तरफ़ उठाया गया एक अहम कदम है.

कार्टर और भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर दोनों ही ने स्पष्ट किया कि इस समझौते से किसी भी पक्ष को एक दूसरे के ठिकानों पर सैनिकों की तैनाती की इजाज़त नहीं मिलेगी.

उल्लेखनीय है कि अमरीका भारत को फ़ौजी साज़ो-सामान का सबसे बड़ा निर्यातक है और 2007 से अबतक भारत से लगभग 14 अरब डॉलर के अनुबंध हासिल कर चुका है. भारत सबसे ज़्यादा सैन्य अभ्यास अमरीका के साथ कर रहा है और कुछ ही महीने पहले अमरीका ने भारत को अहम फ़ौजी साझेदार का दर्जा दे दिया था जो आमतौर पर बेहद करीबी मित्र देशों को दिया जाता है.

इस दर्जे से भारत अमरीका से कई अहम फ़ौजी टेक्नॉलॉजी हासिल कर सकता है जो अबतक उसे उपलब्ध नहीं थे. दोनों ही देश वैसे भी ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे के सैन्य ठिकानों की मदद लेते रहे हैं लेकिन इस समझौते से उस पर एक औपचारिक मुहर लग गई है.

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