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नोबेल शांति पुरस्कार के मायने?

नई दिल्ली | एजेंसी: इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार में भारतीय उप महाद्वीप का जलवा साबित हो गया. गौरतलब है कि यह पुरस्कार संयुक्त रूप से भारत के कैलाश सत्यार्थी तथा पाकिस्तान के मलाला युसुफजई को मिला है. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि भारत तथा पाकिस्तान दोनों अपने अपने स्थापना के समय से ही प्रतिद्वंदी रहें हैं. कैसी विबंडना है कि वर्तमान में भारत-पाक सीमा पर गोलीबारी जारी है. ठीक ऐसे समय दोनों देशों के नागरिकों को संययुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार मिलना अपने आप में एक अलग ही महत्व रखता है.

जाहिर सी बात है कि शांति पुरस्कार तो दोनें देशों के नागरिकों को संयुक्त रूप से मिल रहा है पर उनके सीमा में घमासान मचा हुआ है. ऐसे में नोबेल शांति पुरस्कार का क्या यह मायने नहीं होता कि सीमा पर शांति बनाकर रखी जाये. पाकिस्तान के हुक्मरानों को नोबेल शांति पुरस्कार का यह संदेश अवश्य समझ लेना चाहिये. नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी ने शुक्रवार को यह घोषणा की. एक बयान जारी कर कहा गया है कि वर्ष 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है.

सत्यार्थी गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ का संचालन करते हैं और बाल अधिकार, खासकर बंधुआ मजदूर के लिए काम करते हैं.

कमेटी ने कहा, “लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए मलाला ने कई वर्षो तक संघर्ष किया है और उदाहरण पेश किया है कि बच्चे और युवा अपनी स्थिति में सुधार के लिए खुद कोशिश कर कामयाब हो सकते हैं.”

बयान के मुताबिक, “ऐसा उसने बेहद खतरनाक स्थितियों में किया है. वीरतापूर्वक संघर्ष के द्वारा वह लड़कियों की शिक्षा के अधिकार की प्रमुख प्रवक्ता बन गई.”

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2012 में पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में स्कूल से घर जाते समय तालिबान के बंदूकधारियों ने उसे गोली मार दी थी. हमले के बाद उसे विशेष चिकित्सा के लिए ब्रिटेन भेजा गया था.

कमेटी के मुताबिक, एक हिंदू और एक मुस्लिम, एक हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों शिक्षा के अधिकार के लिए और आतंकवाद के खिलाफ समान संघर्ष में शामिल हुए.

कमेटी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूरी दुनिया में आज की तारीख में 16.8 करोड़ बाल मजदूर हैं. वर्ष 2000 में यह संख्या 7.8 करोड़ ज्यादा थी. दुनिया बाल मजदूरी को खत्म करने के नजदीक पहुंच चुकी है.

उधर, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने पर उन्हें बधाई दी. सत्यार्थी को यह सम्मान बाल श्रम के खिलाफ चलाई गई उनके मुहिम के लिए दिया गया है.

राष्ट्रपति ने एक बयान में कहा है, “इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्या के समाधान में भारत के जीवंत नागर समाज के योगदान और देश में हर तरह के बाल श्रम उन्मूलन के राष्ट्रीय प्रयासों में सरकार के साथ मिलकर निभाई गई उनकी भूमिका को मिली मान्यता के रूप में देखा जाना चाहिए.”

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