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नहीं रहे जस्टिस राजेंद्र सच्चर

नई दिल्ली | संवाददाता: दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र सच्चर नहीं रहे. 95 साल की उम्र में आज उनका निधन हो गया.

राजेंद्र सच्चर को मानवाधिकार के बड़े पैरोकार के तौर पर देखा जाता था. 20 दिसंबर 1923 को पैदा हुये राजेंद्र सच्चर के दादा भी लाहौर के बड़े वकील थे. सच्चर ने भी लाहौर से वकालत की पढ़ाई की औऱ 1952 में उन्होंने शिमला से वकालत की शुरुआत की. 8 दिसंबर 1960 से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत करना शुरु किया. पंजाब के मुख्यमंत्री पंजाब सिंह कैरो के खिलाफ प्रजातंत्र पार्टी को सहयोग देने के मामले में वे पहली बार चर्चा में आये थे.

12 फरवरी 1970 को उन्हें पहली बार दिल्ली हाईकोर्ट में जज बनाया गया. 1975 में उन्हें सिक्किम हाईकोर्ट का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. मई 1976 में सच्चर को राजस्थान हाईकोर्ट का जज बनाया गया. लेकिन सच्चर से पूछे बिना उन्हें राजस्थान भेजा गया था, जिसका उन्होंने विरोध किया था. यह वह दौर था, जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी और आपातकाल लगा दिया गया था. वे बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाये गये थे. सच्चर मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से भी जुड़े हुये थे.

2005 में देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक दशा जानने के लिए जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.

30 नवंबर, 2006 को जब कमेटी द्वारा तैयार इस बहुचर्चित रिपोर्ट ”भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति” को लोकसभा में पेश किया गया तो संभवत आजाद भारत में यह पहला मौक़ा था जब देश के मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति को लेकर किसी सरकारी कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी.

अब यह रिपोर्ट भारत में मुसलमान समुदाय की सामाजिक-आर्थिक हालत की सबसे प्रमाणिक दस्तावेज बन चुकी है जिसका जिक्र भारतीय मुसलामानों से सम्बंधित हर दस्तावेज के सन्दर्भ में अनिवार्य रूप से किया जाता है.

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