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खतरे में क्षिप्रा नदी

नर्मदा नदी का जल डाले जाने से क्षिप्रा नदी का मूलरूप ही खतरे में पड़ गया है. नर्मदा नदी का जल पाइप लाइन के जरिए लाकर उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ से पहले क्षिप्रा नदी में प्रवाहमान करके मध्यप्रदेश सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, मगर जलपुरुष राजेंद्र सिंह इसे नदियों की प्रकृति के खिलाफ मानते हैं. राजधानी भोपाल में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए स्टॉकहोम वॉटर प्राइज विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा कि जब भी छोटी जलधारा में बड़ी जलधारा को डाला जाता है तो वह छोटी जलधारा के जलप्रवाह क्षेत्र के गुण को खत्म कर देती है. इतना ही नहीं उसकी जैव विविधिता और उसका प्रवाह मर जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसा ही कुछ क्षिप्रा नदी के साथ हो रहा है. नर्मदा नदी पवित्र नदी है, उसके बावजूद वह क्षिप्रा को दूषित और अपवित्र कर रही है, क्योंकि किसी नदी की पवित्रता तब तक रहती है, जब तक कि वह अपने मूलरूप में रहे. जब उसमें दूसरे गुण प्रवाहित होते हैं तो उसकी पवित्रता अपवित्रता में बदल जाती है.

नर्मदा और क्षिप्रा के मिलन पर उन्होंने कहा कि इस मिलन के चलते पानी का प्रवाह आंखों से देखने में तो बहुत अच्छा है. यह दिखावे के लिए अच्छा हो सकता है, मगर यह आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक प्रवाह के विपरीत है.

उन्होंने कहा कि जब हम आध्यात्म के क्षेत्र में प्रशंसा पाने के लिए अप्राकृतिक या प्रकृति के विपरीत कदम बढ़ाते हैं तो आध्यात्मिक गुण बचते नहीं हैं.

क्षिप्रा के थमते प्रवाह और सिंहस्थ में प्रवाहमान पानी उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा नर्मदा का जल डालने की पहल पर उन्होंने कहा कि क्षिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए दूसरी तरह के अच्छे काम किए जा सकते थे. बारिश के दिनों में इस नदी में बाढ़ आती है, जो मिट्टी का कटाव करती है और पानी बह जाता है. अगर क्षिप्रा के जल ग्रहण क्षेत्र में ही जल संरक्षण और संवर्धन के काम किए जाते तो सिंहस्थ कुंभ के वक्त क्षिप्रा का जल प्रवाह ही पर्याप्त होता.

बड़े कामों में होने वाले भ्रष्टाचार को भी नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि जल संग्रहण के विकास कार्यो में छोटे-छोटे भ्रष्टाचार होते हैं, लेकिन जब एक नदी के पानी को पाइप में बंद कर दूसरी नदी तक लाया जाता है तो उसमें बड़े भ्रष्टाचार होते हैं और यही हमारी सरकारों को पसंद है. इसीलिए नदियों को पाइप में बंद कर दूसरी नदी में मिलाने के कामों की प्रशंसा का दौर चल पड़ा है.

जलपुरुष ने कहा कि वास्तव में यह आध्यात्मिक चिंतन और नदियों की पवित्रता का द्योतक नहीं है, बल्कि यह नदियों की हत्या का संकेत है. यह संकेत कुंभ के अवसर पर इस आयोजन के नाम पर मिलने वाली मदद से सृजित किया गया, हकीकत तो यह है कि नदियों का यह मिलन बड़े उद्योगपतियों के प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को पानी देने की चाल का हिस्सा है.

उन्होंने सुझाव दिया कि अगर नदी के ऊपरी हिस्से में भूजल भंडारण का पुर्नभडारण हो जाए और शोषण रुक जाए तो क्षिप्रा सदा नीरा हो सकती है. सरकार को स्वयं क्षिप्रा को स्वच्छ और सदा नीरा बनाने की कोशिश करना थी, जो नहीं हुई.

राजेंद्र सिंह ने कहा कि अभी भी समय है, अगर अब भी कोशिश की जाए तो क्षिप्रा का शरीर और जलप्रवाह दोनों स्वस्थ रहकर जी सकते हैं. नदी में पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए नदी के घुमाव वाले स्थानों पर कुएं बनाए जा सकते हैं, ऐसा होने पर नदी का प्रवाह अपने आप बना रह सकता है. साथ ही हर मौसम में नदी में पानी उपलब्ध रहेगा. इस नदी के अधोभूजल भंडारों को भरना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

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