विविध

गोरक्षक, गोभक्षक, गोगुंडे बनाम गांधी की गाय थीसिस

कनक तिवारी
गाय पर मौजूदा हुकूमत दोहरा आचरण जी रही है. देश की चुनौतीपूर्ण बुनियादी समस्याओं के लिए गांधी और नेहरू पर तोहमत लगाने में संकोच नहीं करतीं. उलट जरूरत के अनुसार उनके नामों को अपनी छवि चमकाने उपयोग भी कर लेती है. पाकिस्तान बनाने, हिन्दू मुस्लिम इत्तहाद को तुष्टिकरण कहने, हिन्दू भारत के बदले सेक्युलर हिन्दुस्तान बनाने, हिन्दू निजी कानूनों में तब्दीली करने, मुस्लिम निजी कानूनों को छोड़ देने, मुस्लिम वोट बैंक बनाने जैसी तोहमतें लगाई जा रही हैं. झूठ, अफवाह, निन्दा और रूढ़ियों का सियासी असर धीरे धीरे जनता में होता है.

नकारात्मक वोट लेकर अनुदार हिन्दुत्व की ताजपोशी हो ही गई. खुशहाल भारत, सामाजिक समरसता, सियासी परिपक्वता, सांस्कृतिक बहुलता, भौगोलिक एकता रवायत के बदले ‘लव जेहाद‘, ‘बीफ‘, ‘कश्मीर‘, ‘राम मंदिर‘, ‘गंगा‘, ‘गोमाता‘, ‘श्मशान बनाम कब्रिस्तान‘, ‘तीन तलाक‘, ‘समान नागरिक संहिता‘, ‘घर वापसी‘ जैसे शोशे भूकंपनुमा उथल पुथल कर रहे हैं. ताज़ातरीन मामला गोमांस या बीफ का है. उसके खानपान और निर्यात के तिलिस्म के साथ जातीय और धर्मगत बर्बरता का हो गया है. बीफ से ज़्यादा इंसानी गोश्त हिंसा की तश्तरी पर परोसा जा रहा है.

आज़ादी की लड़ाई के दौरान देश सामाजिक जीवन की विषमताओं, आदतों और परस्पर विरोधाभासों को ढूंढ़ता वाचाल रहा है. भारत को राजनीतिक और सांस्कृतिक इकाई मानकर सियासी जमावड़े में सबसे व्यापक, लगातार और अर्थमूलक विचार गांधी ने देश की स्लेट पर लिखे. हिन्दुत्व की ताकतें भले ही सहमत नहीं हैं. बाकी बुजुर्गों ने सीमित समय और इलाके में अपनी छाप जरूर छोड़ी. कम से कम पचास साल भारत के हर सवाल को लेकर गांधी ज़िरह करते रास्ता दिखाते रहे. वे व्यावहारिक, समयानुकूल, भविष्यमूलक, परम्परापोषित तथा विरोधाभासी लगते विवादास्पद तरह से भी सोचकर सवाल जवाब छितराते थे.

गांधी की चेतावनी की बहुमुखी चौकीदारी चौकस थी. गाय को लेकर भी गांधी ने सबसे ज्यादा विमर्श और चिंतन किया. ‘दी वेजिटेरियन‘ पत्रिका में 1891 में टिप्प्णी करते बाईस साल के गांधी ने गाय को हिन्दुओं के लिए पूज्य कहा. 1947 में आजा़दी मिलने पर लोगों ने अनुरोध किया गांधी, नेहरू और सरदार पटेल से गोवंश की रक्षा का कानून बनाने कहें. गांधी का सपाट जवाब था. कानून गोहत्या रोक नहीं सकता. हमें चाहिए गाय को उपयोगी पशु मानते हुए अधमरा, भूखा और हड्डियों का ढांचा नहीं बनाएं. वह हिंसा है. गोशालाएं भी उन्हें ठीक तरह रख नहीं पातीं. गोरक्षा, गोसेवा, गोहत्या और बीफ को लेकर गांधी के अलहदा विचार थे.

‘यंग इंडिया‘ में गांधी ने लिखा हिन्दुओं का धार्मिक विश्वासनामा गोरक्षा महज़ जबानी जमाखर्च है. हिन्दू भी पशुओं को लेकर जितने क्रूर हैं, उसकी कोई इंतिहा नहीं है. यही ‘नवजीवन‘ में भी लिखा. राजेरजवाड़ों से आग्रह किया अंगरेज मेहमानों के लिए गोमांस परोसना बंद करें. अंगरेज भी गोमांस खाना छोड़ें. आज इस तरह की सरकारी और सामाजिक अपीलें क्यों नहीं निकलतीं. कानून, परम्परा, धार्मिक कट्टरता, सरकारी आदेश, सामाजिक हंगामा और गोगुंडों की रवायत के आधार पर गोहत्या रोकते इंसान की हत्या बिना संकोच कर दिए जाने का आतंक जड़ जमा रहा है.

अंगरेज़ सैनिक और हुक्मरान रोज गोमांस खाते थे. गांधी ने मुसलमानों की आत्मा झिंझोड़ते कहा इस्लाम तो दया का भी धर्म है. हिन्दू मुसलमान भाई बैठकर तय करें कि गोहत्या की ज़रूरत क्यों है? गांधी ने कहा इस्लाम में गाय माता नहीं है. हिन्दू भावनात्मक हो सकता है. मुसलमान को तटस्थ, तार्किक और समझदार होने की पेशकश करनी चाहिए. गोरक्षा की चेतना मुस्लिम सहयोग से ही संभव है. गाय की रक्षा करते हिंदू मांसाहार क्यों करते हैं. बकरीद या बूचड़खाने में गाय का कत्ल रोकने के नाम पर मनुष्य की हत्या करने की हिदायत हिन्दू धर्म में ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी. हिन्दू धर्म आत्मबलिदान को हिंसा के ऊपर तरजीह देता है. गांधी होते तो अखलाक जैसे इंसानों की हत्या को लेकर देश की आत्मा के सामने अपनी छाती अड़ा देते.

अफवाहें, रूढ़ियां, चुगलखोरी, भड़काऊ भाषण, राजनीतिक विद्वेष, धार्मिक दुराग्रह, मनोवैज्ञानिक कुंठाएं, हिंसा वगैरह के कच्चे माल चटपटा माहौल तैयार करते हैं. चटखारे लेकर भारतीय मीडिया मुख्यतः अपरिपक्व लोगों के लिए परोसने का हुनरमंद हो ही गया है. गांधी ने कहा था कि गोवंश से जुड़े आर्थिक सवालों को मजहबी भावना पर तरजीह दी जाए. इससे गोहत्या की रफ्तार धीमी पड़नी शुरू हो पाएगी. गाय किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं व्यापक समाज का हिस्सा है. इंसान भी एक दूसरे के लिए जरूरी सहोदर हैं.

गीता की याद करते कहा मुझमें वैश्य वृत्ति है कि गाय को खेती और व्यापार का बुनियादी साधन मानकर उसकी रक्षा करूं. देश से नौ करोड़ रुपये विदेशों से पाने गाय बैलों के सींग और खाल को बेचने का लालच नहीं करें. ‘यंग इंडिया‘ में कहा वैदिक युग में गोमांस खाने की प्रथा का उल्लेख है. लेकिन पंडित सातवलेकर जैसे संस्कृत विद्वानों ने इसका खंडन भी किया है. गायों की खाल से बने जूते चप्पलों को लेकर गांधी ने उल्लेख किया. 24 मार्च 1929 को ‘नवजीवन‘ में रंगून में दिया अपना भाषण छापा. कहा गाय के पवित्र चमड़े के जूते चप्पल पहनकर मंदिर में जाया जा सकता है. उन्होंने एक रामेश्वर दास को हामी भरी कि गोदान की परंपरा को इसलिए भी समर्थन नहीं दिया जा सकता क्योंकि दान लेता ब्राह्मण गायों को बचा नहीं पाता.

पुरअसर तर्क यह है.गांधी के वक्त व्यापक धारणा थी कि मुसलमानों के कारण गोहत्या और मांसाहार की आदतें पनप रही हैं. अब वह आदत सर्वजातीय, आधुनिक, प​श्चिमी सामाजिकता में बदल गई है. मुसलमानों के प्रति हिन्दू नफरत को अंगरेज आसानी से सुलगाता रहा है. मुसलमान के जवाबी मजहबी हिंसक होने में देर नहीं लगती.

इन सवालों से जूझने का इतिहास ने आज अवसर दिया है. गांधी ने इसके भी कई गुर बताए थे. उनके अनुसार गोशालाओं की स्थापना और संचालन का काम सरकार को करना चाहिए. देश के लोगों को शुद्ध और सस्ता दूध देना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य हो. इस तज़बीज़ का भी समर्थन किया कि ताकत और सेहत जांच कर गायों और बछड़ों से खेतों में काम भी लिया जा सकता है. हरिजन में 1946 में फिर लिखा कानून के जरिए गोहत्या पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. गाय के लिए अर्थशास्त्र, शिक्षा, करुणा और सेवा की भावना रखते हुए गोहत्या को सामाजिक आग्रह के बतौर बंद किया जा सकता है.

कोई धरती पर बोझ है यह समझकर हिंसा के रास्ते से उसे नहीं हटाया जा सकता. झल्लाकर तो उन्होंने यह भी कहा था कि यदि गाय को बचाने के बदले किसी इंसान की हत्या करनी ही पड़े तो वैसा नहीं करके गायों को नहीं बचाना चाहिए. चाहे कुछ हो. इन्सान ही कुदरत में सबसे महत्वपूर्ण है. इंसानों की जान लेना सबसे बड़ा गुनाह है.

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