राष्ट्र

संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ व ‘समाजवाद’ 1976 में सम्मलित

नई दिल्ली | एजेंसी: गणतंत्र दिवस के विज्ञापन के बाद से भारतीय संविधान की मूल भूमिका पर बहस शुरु हो गई है. गणतंत्र दिवस के दिन सरकारी विज्ञापन में संविधान के जिस भूमिका को विज्ञापन के तौर पर छापा गया था उसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ नहीं था. बताया जा रहा है कि इन शब्दों को 1976 के 42वें संविधान संशोधन के समय जोड़ा गया था. वहीं, शिवसेना के सांसद संजय राउत ने मांग कर डाली है कि संविधान की भूमिका से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ को हटा दिया जाये. उल्लेखनीय है कि देश के 66वें गणतंत्र दिवस उत्सव आयोजित होने का विज्ञापन देश भर के अखबारों में प्रकाशित हुआ जिसमें भूमिका को इस प्रकार उद्धृत किया गया है, “हम भारत के लोग दृढ़ता से भारत को सार्वभौम लोकतांत्रिक गणराज्य में गठित करने को संकल्पबद्ध हैं.” मूल भूमिका में कहा गया है, “हम भारत के लोग पूरी दृढ़ता से भारत को सार्वभौम समाजवादी धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में गठित करने और इसके सभी नागरिकों को निर्भय बनाने के लिए संकल्पबद्ध हैं.”

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने बुधवार को कहा कि संविधान की मूल भूमिका में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्द नहीं है. गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिए गए विज्ञापन को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है. इस विज्ञापन में भूमिका को इन दो शब्दों के बगैर दिखाया गया है.

मंत्री ने कहा कि विज्ञापन में मूल भूमिका की तस्वीर का इस्तेमाल इसके ‘सम्मान’ में किया गया.

उन्होंने 42वें संशोधन के पहले और बाद की भूमिका की तस्वीरों को ट्वीट किया. इसी संशोधन में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ शब्द को इसमें शामिल किया गया. उन्होंने आगे कहा है, “यह मूल भूमिका है. ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को 1976 में जोड़ा गया.”

राठौर ने संवाददाताओं से कहा, “मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि हम 66वां गणतंत्र दिवस मना रहे थे, हम उस भूमिका का जन्म दिन मना रहे थे जो उस समय से बहुत पहले तैयार की गई थी.”

राठौर ने कहा, “जो तस्वीर पेश की है वह पहली भूमिका की है जिसे हमारे महान नेताओं ने उस समय तैयार की थी.”

उन्होंने आगे यह भी बताया कि इन दोनों शब्दों को 42वें संशोधन के बाद 1976 में सम्मिलित किया गया.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले शिव सेना ने बुधवार को मांग की कि संविधान की भूमिका से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ शब्दों को हटा दिया जाए. केंद्र सरकार की ओर से गणतंत्र दिवस के विज्ञापन पर विवाद उभरने के एक दिन बाद शिव सेना ने यह मांग की है.

शिव सेना के सांसद संजय राउत ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गणतंत्र दिवस के लिए जारी विज्ञापन से शब्द को हटाए जाने का स्वागत किया. शब्द हटाने पर हंगामा खड़ा हो गया है.

राउत ने संवाददाताओं से कहा, “हम इसका स्वागत करते हैं. यह हालांकि अनजाने में किया गया है, लेकिन यह भारत के लोगों की भावना का सम्मान करने के जैसा है. यदि इस बार गलती से शब्द हट गया है तो हम चाहते हैं कि इन्हें संविधान से सदा के लिए हटा दिया जाए.”

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जितेंद्र अव्हाड ने शिव सेना के प्रस्ताव का विरोध किया है.

अव्हाड ने कहा, “हम संविधान को उस रूप में पढ़ते हैं जैसा रूप उसका आज है. संशोधन संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है. भूमिका में जैसा कहा गया है और विज्ञापन में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ को हटा दिया गया. क्या इससे भाजपा के पूर्वाग्रह की झलक मिलती है.”

वहीं, कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बुधवार को कहा, “यह विज्ञापन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा सरकार ने जारी किया जिसमें संविधान की भूमिका के दो बुनियादी शब्दों धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को हटा दिया गया. यह संविधान का निरादर और इसकी मूल भावना को दूषित करने की झलक पेश करता है.”

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “कांग्रेस और देश के हर नागरिकों का हमारे संविधान की मूल भावना में विश्वास है. सभी इसे भारत भूत, वर्तमान और भविष्य के लिए शासन का ढांचा के रूप में मानते हैं और भारत के ऐसे हर नागरिक की तरफ से हम इस मुद्दे पर भारत सरकार से तुरंत माफी मांगने की मांग करते हैं.”

उन्होंने कहा, “हम प्रधानमंत्री से भी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द पर उनकी समझदारी और परिभाषा पर उनके रुख को स्पष्ट करने के लिए मुलाकात करेंगे. उनसे संविधान में अंतर्निहित इन दो शब्दों को सरकार ने जिस रास्ते पर ले जाने की पेशकश की है उसे भी स्पष्ट करने को कहा जाएगा.”

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