Columnist

बातचीत हर हाल में जारी रहे

सुनील कुमार
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आज पाकिस्तान रवाना हो रही हैं, और दोनों देशों के बीच सरहद पर चलते तनाव, आतंकी हरकतों की तोहमतों के बीच होने जा रही इस बातचीत को लेकर भारत में विपक्षी पार्टियां सरकार पर चढ़ बैठी हैं. उनका आरोप है कि मोदी सरकार ने जिस नौबत को लेकर पाकिस्तान के साथ बातचीत बंद की थी, सरहद पर हमलों और आतंकी हरकतों की उन नौबतों में ऐसा क्या फर्क हो गया है कि अब बातचीत फिर शुरू हो रही है.

भारत के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस बात पर भी सरकार पर हमला किया है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एक तीसरे देश में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से क्यों बात की? भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह भी कहा जा रहा है कि पिछले दिनों पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से एक सम्मेलन में मुलाकात के दौरान उनकी क्या बात हुई, यह संसद को बताया जाए.

दरअसल देश के भीतर सरकार और विपक्षी दलों के बीच जो खींचतान चलती है, उसके तहत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी एक ऐसा तनाव खड़ा किया जाता है जिससे कि देश के भीतर जनता को यह लगे कि विपक्ष चौकन्ना है, सरकार कुछ गलत कर रही है, कुछ छुपा रही है, और देश की जनता को कुछ अधिक जानने का हक है. यह बात नई नहीं है, जिस समय यूपीए की सरकार थी, और एनडीए विपक्ष में था तब भी सरकार के लिए ऐसी परेशानी खड़ी की जाती थी.

लोगों को याद होगा कि नवाज शरीफ के एक निजी तीर्थयात्रा पर अजमेर आने पर नरेन्द्र मोदी ने महीनों तक आमसभाओं में यह हमला किया था कि सरहद पर जो पाकिस्तान हिन्दुस्तानी सैनिकों के सिर काट रहा है, उस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भारत की सरकार बिरयानी खिला रही है. कमोबेश वैसे ही तेवर दिखाने का हक आज कांग्रेस को है, लेकिन ये दोनों ही नौबतें देश के हित के खिलाफ है, और अड़ोस-पड़ोस में बसी हुई दो परमाणु ताकतों के खिलाफ भी है.

घरेलू राजनीति के स्तर को कुछ उठने की जरूरत है. भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे से लड़ते-भिड़ते रहें, इसमें दोनों देशों की राजधानियों में बसे ताकतवर लोगों का कुछ नहीं जाता, लेकिन फौजी खर्च में दोनों देशों के गरीब लोग भूखे मर रहे हैं, दोनों देशों में करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, पढ़ाई और इलाज का खर्च नहीं जुट पा रहा है, और फौजों पर अंधाधुंध खर्च हो रहा है.

इसलिए हमारा हमेशा से यह मानना रहा है कि चाहे आतंकी हमले होते हों, चाहे सरहद पर फौजी टकराव चल रहा हो, देशों के बीच बातचीत से ये नुकसान और बढ़ नहीं सकते, घट जरूर सकते हैं, हमारा मानना है कि बातचीत हर हाल में जारी रहनी चाहिए, संगीत के कार्यक्रम, फिल्में, टीवी चैनल, क्रिकेट-हॉकी, साहित्य समारोह हर हाल में चलने चाहिए.

भारत और पाकिस्तान के बीच कारोबार से भी इन दोनों देशों का भला है, और वह भी जारी रहनी चाहिए. यह बात समझने की जरूरत है कि इन तमाम रिश्तों से आतंकी और फौजी टकराहट भी घट सकती है, लेकिन जब हर किस्म के रिश्तों को तोड़ दिया जाएगा, तो फिर दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए महज आतंकी और फौजी ही बच जाएंगे. जंग के नारे सुहाने बहुत लगते हैं, लेकिन हर जंग में आम लोग मरते हैं, और खास लोग मानो शतरंज की बिसात के पीछे बैठे हुए प्यादों को आगे बढ़ाते रहते हैं.

आज जब भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी वजह से बातचीत का सिलसिला शुरू हो रहा है, तो भारत के विपक्षी दलों को दो बरस पहले तक की विपक्षी पार्टी भाजपा के रूख की नकल करने के बजाय यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस के जवाहर लाल नेहरू ने धोखा खाते हुए भी पड़ोसी देशों से बातचीत जारी रखी थी, और खुद होकर किसी जंग की शुरुआत नहीं की थी. कांग्रेस को घरेलू राजनीति के चलते एक ओछापन नहीं दिखाना चाहिए, और इस बातचीत की गाड़ी के पहियों में डंडा नहीं अड़ाना चाहिए.

इन दोनों देशों के तमाम लोगों को बातचीत की हिमायत करते हुए इस बारे में बोलना चाहिए और सरकारों का हौसला बढ़ाना चाहिए. सरकार पर काबिज पार्टियों से लोगों की असहमति हो सकती है, लेकिन यह याद रखना चाहिए दो देशों के बीच बातचीत राजनीतिक दल नहीं करते, सरकारों पर ही यह जिम्मेदारी रहती है, और उन्हीं का यह हक रहता है.

इसलिए आज मोदी सरकार और शरीफ सरकार के बीच बातचीत को तमाम अमन-पसंद लोगों को बढ़ावा देना चाहिए. बल्कि हम तो इस बात के भी हिमायती रहेंगे कि दोनों देशों के विपक्षी दल भी आपस में बैठकर बातचीत करें, और एक व्यापक सहमति बनाकर अपनी-अपनी सरकारों के सामने एक एजेंडा रखें, जिससे कि उनकी सरकारों पर एक जनदबाव पड़ सके.

* लेखक हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक छत्तीसगढ़ के प्रधान संपादक हैं.

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