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आधार का खतरा नहीं है निराधार

आधार परियोजना का खतरनाक ढंग से गलत दिशा में जाने पर सरकार और यूआईडीएआई को नागरिकों को जवाब देना चाहिए. जब भी यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी यूआईडीएआई से करोड़ों भारतीय से संबंधित सूचनाओं की सुरक्षा का सवाल पूछा जाता है तो वह मुंह छिपाते दिखती है. जब चंडीगढ़ के ट्रिब्यून अखबार के एक रिपोर्टर ने यह खबर कि उसे एक एजेंट ने 500 रुपये में आधार की जानकारियां मुहैया करा दीं तो यूआईडीएआई ने उलटा उसी पत्रकार पर मुकदमा कर दिया. इसके बाद यूआईडीएआई ने सुरक्षा की व्यवस्था और मजबूत की. अब समय आ गया है कि यूआईडीएआई के धोखे को उजागर किया जाए.

आधारकार्ड की परियोजना जितनी व्यापक है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इससे कई जोखिम जुड़े हुए है. आधार की सूचनाओं तक अवैध पहुंच स्थापित करने और इसके दुरुपयोग से जुड़े कई मामले उजागर हो गए हैं. ट्रिब्यून ने अपनी खबर में बताया कि कैसे एजेंड आधार की जानकारियों को बेच रहे हैं. इसके कुछ समय पहले एयरटेल पेमेंट बैंक ने बगैर लोगों की सहमति के आधार पुष्टिकरण के नाम पर उनके खाते खोल दिए और गैस की सब्सिडी एयरटेल के खाते में जाने लगी. झारखंड सरकार की एक वेबसाइट पर पेंशन पाने वाले लाखों लोगों का आधार नंबर, बैंक खाता और पता सार्वजनिक हो गया. दूसरे भी कई सरकारी वेबसाइटों पर ये जानकारियां सार्वजनिक हुई हैं.

लोगों के बीच आधार को लेकर इतने गुस्से के बीच यूआईडीएआई ने फिर से वही बात दोहराई है कि आधार के लिए दी गई सारी जानकारियां पूरी तरह सुरक्षित हैं. इसने अपनी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, ‘वेबसाइट पर आधार नंबर आ जाने से लोगों को कोई समस्या नहीं है. बायोमेट्रिक जानकारी उपलब्ध होने भर से इसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता.’ इसने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार के दुरुपयोग का वह पता लगा सकती है. लेकिन इसके बावजूद यूआईडीएआई यह बताने में नाकाम रही कि फिर ट्रिब्यून ने जिन आधार सूचनाओं के दुरुपयोग की खबर दी, वह कैसे हो गया.

यूआईडीएआई ने इस घटना के बाद दो स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था वर्चुअल आईडी और लिमिटेड केवाईसी की शुरुआत की. जब निजी ऑपरेटरों ने करोड़ों आधार बना दिए तो इसके बाद पिछले साल सरकार ने यह काम सरकारी एजेंसियों, बैंकों और डाकघरों को दिया. शुरुआत से ही यूआईडीएआई के बारे में यह दिखा है कि जब कोई गड़बड़ होती है तब वह कुछ करती है. कानून बनने से पहले ही यूआईडीएआई बन गया था, आधारकार्ड बनने लगा था और इसे दूसरी सेवाओं से जोड़ा जाने लगा था. बगैर किसी कानून और निजता की सुरक्षा बंदोबस्त के यह परियोजना जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाती गई.

सरकार द्वारा आम लोगों पर लगभग सभी तरह की सरकारी सेवाओं के लिए आधार नंबर देने को बाध्य किया गया. हद तो तब हो गई जब उत्तर प्रदेश सरकार ने बेघर लोगों को रात के आश्रय गृहों की सेवा लेने के लिए आधार की मांग कर दी. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि जिनके पास आधार नहीं है, उनका क्या सरकार की नजर में कोई अस्तित्व नहीं है.

आधार की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में 2015 से लंबित है. इस मामले में अदालत को आधार शुरू किए जाने की वैधता, इसके विस्तार, सूचनाओं की सुरक्षा की खामियां, आधार नहीं होने से सरकारी सेवाओं से इनकार, बगैर सहमति के किए गए काम और इन समस्याओं का समाधान करने में यूआईडीएआई की नाकामी जैसे विषयों पर अपना फैसला देना होगा. डाटा सुरक्षा पर बीएन श्रीकृष्ण समिति ने अपने श्वेत पत्र में कहा है कि डाटा सुरक्षा का काम किसी उच्च-स्तरीय वैधानिक एजेंसी के पास होनी चाहिए जिसके पास इसके लिए पूरी क्षमता हो. इस श्वेत पत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस काम के लिए अपनाए जा रहे तरीकों का जिक्र किया गया. साफ है कि यह एजेंसी यूआईडीएआई से अलग होगी और इसके पास इतनी ताकतें होंगी कि यूआईडीएआई को काबू में रख सके.

डाटा युग में किसी की पहचान न सिर्फ सरकार के लिए महत्वपूर्ण हो गई है बल्कि निजी कंपनियों के लिए बेहद उपयोगी हो गई हैं. इस परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि आधार मामले पर सरकार ने जो रुख अपनाया है उससे स्पष्ट है कि आम लोगों की निजता का उसका लिए कोई मतलब नहीं है. निजता के अधिकार को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकार घोषित किया. अब अंतिम उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से ही है कि आधार मामले में अब तक जो गड़बड़ियां हुई हैं, उन्हें वह ठीक करे.
1966 से प्रकाशित इकॉनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक का संपादकीय

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