राष्ट्र

‘मोदी गेट’ और ‘इमरजेंसी’ का भ्रम

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है “मुझे इतना भरोसा नहीं है कि फिर से इमरजेंसी नहीं थोपी जा सकती.” भाजपा के वयोवृद्ध नेता के इस बयान से भारतीय राजनीति में नये आसंकाओं का जन्म होने लगा है. इससे सवाल उठ रहें हैं कि क्या केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ललित मोदी के ‘मोदी गेट’ में उलझ गई है? अपने धाराप्रवाह भाषणों से देशभर में छाए नरेन्द्र मोदी विदेशों में भी अपनी जुबान का कमाल दिखा चुके हैं. लोगों ने उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भरवाते और उसे भाजपा के पक्ष में दोहराते खूब देखा है. मगर कांग्रेस को प्रधानमंत्री के ये भाषण अब बेमानी लगने लगे हैं, पार्टी ने उन्हें ‘मौन मोदी’ नाम दे दिया है, जो अकारण नहीं है.

राजनीति में मंजी हुई, चतुर और विपक्ष में रहकर सत्ताधारी गठबंधन को वर्षो तक नाकों चने चबवाने वाली और भाजपा के एक धड़े सहित आरएसस की ओर से प्रधानमंत्री पद की पहली पसंद सुषमा स्वराज की दूसरे ‘मोदी’ से करीबी रिश्ते पर खामोशी, मौजूदा विपक्ष को गहरे संकेत दे रही है.

सवालों की बौछार बड़ी लंबी है. विदेश मंत्री सुषमा भगोड़े ललित मोदी की क्यों मदद कर रही थीं? वहीं उनका मंत्रालय हाईकोर्ट में उसका पासपोर्ट जब्त करने के मामले का केस लड़ रहा था. सुषमा की बेटी बांसुरी उसी मोदी की वकील हैं, पति स्वराज कौशल भी उस मोदी के पारिवारिक मित्र और कानूनी सलाहकार हैं. सब कुछ बेहद उलझा हुआ है.

विदेशों में जमा काला धन और हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये पहुंचाने का ‘जुमला’ सुनकर लगा, चलो अच्छे दिन आ गए. मगर नसीब की बात करते करते दिल्ली में मफलरवाला ‘नसीबवाला’ बन गया. दुनिया ने यह भी देखा.

राजनीति में सब जायज है. आस्तीन होती ही मरोड़ने के लिए हैं. लेकिन उसमें सांप हो, ये कब तक नहीं दिखेगा. भला हो कीर्ति आजाद का, जिन्होंने पहले ही इशारा दे दिया. अब 25 जून 1975 की याद 40 साल पूरे होने के सात दिन पहले ही कर लालकृष्ण आडवाणी की इमरजेंसी की आशंका वाली चेतावनी हैरत वाली नहीं है. ये तो होना ही था.

भाजपा के पुरोधा, संस्थापकों में एक और अब मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आडवाणीजी को ऐसा क्यों लग रहा है कि कहीं मौलिक आजादी में कटौती न हो जाए! उन्हें भारत में आपातकाल की स्थिति को थोपे जाने की नौबत दिख रही है. राज्य व्यवस्था में कोई ऐसा संकेत नहीं दिख रहा, जिससे आशंका न हो और नेतृत्व से भी कोई उत्कृष्ट संकेत नहीं है.

लोकतंत्र को लेकर प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के अन्य सभी पहलुओं में कमी भी आडवाणी को साफ दिख रही है. उनका कहना है, ‘मुझे इतना भरोसा नहीं है कि फिर से इमरजेंसी नहीं थोपी जा सकती.’

राजनीति की शुद्धता, शुचिता की बात बेमानी नहीं लगती. लगता नहीं कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को अब एक सूची यह भी देनी चाहिए कि कितने दागी, कितने भगोड़े और कितने आर्थिक अपराधी उसके मित्र हैं, कितने परिवार के सदस्य जैसे हैं और कितने व्यावसायिक हिस्सेदार सोने की चम्मच से खाने वाले ललित ‘मोदी’ से कौन करीबी नहीं चाहेगा, लेकिन बात न खुले, यह जरूर चाहेगा.

हां, इसका खुलासा ‘वाटर गेट’, ‘कोलगेट’ की तर्ज पर ‘मोदी गेट’ के रूप में होगा यह जरूर किसी ने नहीं सोचा था.

सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया, अरुण जेटली, शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, राजीव शुक्ला और भी कई नाम लेना आर्थिक अपराध के दोषी ललित मोदी के लिए कौन-सा तीर है नहीं मालूम. लेकिन ‘मोदी गेट’ के नाम से चर्चित हुए इस खुलासे ने राजनीति की धारा और पैंतरों को जरूर बेनकाब किया है.

क्या देश इमरजेंसी की ओर बढ़ता जा रहा है? इमरजेंसी की 40वीं ‘जयंती’ के हफ्ताभर पहले उसकी आहट आंक लेना बहुत बड़ा संकेत है.

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