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बांस छत्तीसगढ़ में अब भी नहीं है घास

रायपुर | संवाददाता: देश के कानून में बांस को भले वृक्ष की प्रजाति से हटा दिया गया है लेकिन छत्तीसगढ़ में अब भी बांस को वृक्ष प्रजाति में ही रखा गया है.

बांस को घास की प्रजाति में शामिल करने को लेकर जनवरी 2018 में वन क़ानून में संशोधन किया जा चुका है. लेकिन छत्तीसगढ़ में अफसरशाही का अपना क़ानून है.

डेढ़ साल होने को आये, बांस को घास प्रजाति में शामिल करने संबंधी क़ानून की फाइल अब तक अफसरों के पास दबी पड़ी है.

अफसरों की इस लापरवाही के कारण लाखों की संख्या में आदिवासियों को अभी भी अपनी आजीविका के लिये बांस नहीं मिल पा रहा है. बांस की टोकनी बनाने से लेकर फट्टे बनाने और सीढ़ी बनाने से लेकर घर के निर्माण तक में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

गौरतलब है कि भारतीय वन अधिनियम 1927 में बांस को पेड़ के रूप में परिभाषित किया था. जिससे इसे वनोपज मानकर इसकी कटाई व परिवहन के लिए वन विभाग से ट्रांजिट पास जरूरी किया गया.

चीन के बाद दुनिया में बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के बावजूद भारत को अगरबत्ती जैसी छोटी मोटी चीजों के लिए भी ताइवान से बांस आयात करना पड़ता था.

लोकसभा में दिसंबर 2017 को इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 के कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी, जिसके बाद बांस को पेड़ों की श्रेणी से हटा दिया गया.

इस संशोधन के अनुसार जंगल के बाहर के इलाकों में भी बांस को उगाने या काटने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होगा क्योंकि अब कानून के हिसाब से बांस पेड़ नहीं बल्कि सिर्फ एक घास है.

इसके बाद इससे संबंधित कानून भी बन गया. लेकिन छत्तीसगढ़ में अफसर बांस की इस फाइल पर कुंडली मार कर बैठे हुये हैं.

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