चुनाव विशेषछत्तीसगढ़

बस्तर से निकलेगी सत्ता की चाबी

रायपुर: छत्तीसगढ़ में सोमवार को पहले चरण का मतदान संपन्न हो गया. इसमें 18 सीटों के लिए वोट डाले गए और इन्हीं सीटों के परिणाम से फैसला हो जाएगा कि सूबे में अगली सरकार किसकी बनेगी. वर्तमान में इन सीटों में 15 सीटें भारतीय जनता पार्टी और तीन कांग्रेस के पास हैं. मतदान के बाद दोनों ही दल इसे अपने-अपने पक्ष में बताकर अपने-अपने दावे करने लगे हैं.

छत्तीसगढ़ में पहले चरण में जिन 18 सीटों पर मतदान हुए हैं, उनमें 12 सीटें नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके में हैं. गौर करने वाली बात यह है कि यहां पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा 11 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इलाके से कांग्रेस ने जो एकमात्र सीट जीती थी, वह कोंटा की थी. कोंटा से कवासी लखमा विजयी हुए थे. वह इस बार भी प्रत्याशी हैं. इस सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा था.

इसके अलावा पहले चरण में जिन छह अन्य सीटों पर चुनाव हुए, वे राजनांदगांव जिले की हैं. इनमें से चार सीटें भाजपा के कब्जे में हैं, जबकि कांग्रेस के हिस्से में केवल दो सीटें हैं. इसी इलाके से खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह भी चुनाव मैदान में हैं.

छत्तीसगढ़ में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 50 सीटें जीतीं थी और कांग्रेस ने 38 सीटें. पहले चरण में जिन सीटों पर मतदान हुए उन्हें अलग कर दिया जाए तो छत्तीसगढ़ विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस दोनों के हिस्से 35-35 सीटें बचती हैं. ये समीकरण ही पहले चरण को महत्वपूर्ण बना देता है, क्योंकि पहले चरण में खोने के लिए कांग्रेस के पास कुछ नहीं था.

इस संबंध में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव मुकुल वासनिक ने कहा है कि बस्तर से मिल रही जमीनी जानकारी के अनुसार, इन 18 सीटों में कांग्रेस की जबरदस्त सफलता सामने आ रही है. बस्तर में लोकतंत्र की पुर्नस्थापना और परिवर्तन के लिए सत्ता विरोधी लहर मतदान में परिलक्षित हो रहा था.

नक्सलियों के खतरे के बावजूद बस्तर के मतदाताओं द्वारा जिस तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लिया गया वह जीरम घाटी में शहीद हुए कांग्रेस के दिवंगत नेताओं नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार और दिनेश पटेल को आम बस्तर निवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि है.

बता दें कि सूबे में कांग्रेस सत्ता से 10 वर्षो से बाहर है. इस लिहाज से पार्टी को वापसी के लिए बस्तर और राजनांदगांव की सीटों पर ही आश्रित रहना है. प्रदेश में मई में नक्सली हमले में कांग्रेस नेताओं की मौत बस्तर के दरभा इलाके में ही हुई थी. पार्टी ने हादसे के बाद पैदा हुई सहानुभूति की लहर का प्रयोग भी अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की.

हमले में मारे गए कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी देवकी कर्मा को दंतेवाड़ा और उदय मुदलियार की पत्नी अलका मुदलियार को राजनांदगांव से टिकट दिया गया. दोनों ही अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर देने में काफी हद तक सफल रहे हैं.

दूसरी ओर, लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने की मुहिम में जुटे मुख्यमंत्री रमन सिंह, सहानुभूति बटोरने की कांग्रेस की कोशिशों से अब तक पूरी तरह से बेफिक्र दिखे. उनका तो दावा है कि पार्टी ने पिछले चुनाव में बस्तर की 12 में से 11 सीटें जीतीं थी, लेकिन इस बार सभी 12 सीटों पर भाजपा को विजय मिलेगी. रमन सिंह का दावा है कि उनका वोट प्रतिशत भी बस्तर में बढ़ेगा.

बहरहाल, मतदाताओं का फैसला तो आठ दिसंबर को मतगणना के बाद ही पता चल पाएगा.

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