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भगत सिंह और वेलेंटाइन डे

इंद्रेश मैखुरी | सोशल मीडिया : 14 फरवरी को पूरा दिन भगत सिंह का नाम ले-ले कर कुछ लोग प्रेम करने वालों की लानत-मलामत करते रहे. ऐसा लग रहा था गोया प्रेम करना कोई देश विरोधी या भगत सिंह विरोधी कृत्य हो.

यह बेहद शर्मनाक है कि प्रेम का विरोध करने के लिए भगत सिंह के बारे में झूठे तथ्य प्रचारित किये जा रहे हैं. पहले प्रेम करने वालों को यह कहते हुए लानत भेजी गयी कि तुम प्रेम दिवस मना रहे हो जबकि आज भगत सिंह और साथियों का शहादत दिवस है.

हकीकत यह है कि भगत सिंह और साथियों को फांसी 14 फरवरी को नहीं 23 मार्च 1931 को हुई थी. जिनका सामान्य ज्ञान इतना कमजोर हो कि देश के सबसे लोकप्रिय नायक का शहादत दिवस न जानते हों, उनकी देशभक्ति कितनी खोखली और नकली है,यह समझा जा सकता है.

यह तथ्य सामने लाने पर कि 14 फरवरी को भगत सिंह और साथियों को फांसी नहीं हुई थी, भगत सिंह के नाम पर प्रेम को अपराध करार देने वालों ने नया तथ्य गढ़ा कि 14 फरवरी को भगत सिंह और साथियों को फांसी की सजा सुनाई गयी थी.

भगत सिंह के नाम पर छाती पीटने वालों का फर्जीपना देखिये कि 14 फरवरी को भगत सिंह और साथियों को फांसी की सजा नहीं सुनाई गयी बल्कि 07 अक्टूबर 1930 को सुनाई गयी थी.

भगत सिंह और उनके साथियों ने चूँकि अदालत का बहिष्कार किया हुआ था. इसलिए लाहौर षड्यंत्र केस की सुनवाई करने वाले ट्रिब्यूनल ने सन्देश वाहक जेल भेजा जिसने 68 पृष्ठों का फैसला जेल में भगत सिंह और उनके साथियों को पढ़ कर सुनाया.

ये वाला तथ्य भी फर्जी साबित होने पर फिर नया तथ्य गढ़ कर चलाया गयी कि 14 फरवरी को भगत सिंह की दया याचिका खारिज हुई थी. हकीकत यह है कि भगत सिंह और साथियों के बचाव में कोई दया याचिका नही लगायी गयी.

बल्कि जिस ट्रिब्यूनल ने भगत सिंह और साथियों को सजा सुनाई थी, उसकी वैधता को प्रिवी काउन्सिल में चुनौती देते हुई फांसी की सजा रद्द करने की मांग की गयी.12 फरवरी 1931 को यह याचिका खारिज हो गयी.

भगत सिंह स्वयं किसी तरह की सजा माफ़ी की याचिका के खिलाफ थे. उनके पिता द्वारा सजा माफ़ी का पत्र लिखने पर बेहद कड़ा पत्र भगत सिंह ने अपने पिता को लिखा, जिसमें उन्होंने यहाँ तक लिखा कि “यदि आप मेरे पिता न होते तो मैं आपको गद्दार समझता.”

20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को उन्होंने पत्र लिखा कि हमें फांसी न दी जाए बल्कि गोली से उड़ा दिया जाए क्योंकि हमने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा है और युद्धबंदियों को गोली मारी जाती है,फांसी नहीं दी जाती.

इस तरह भगत सिंह स्वयं दया याचिका के विरोधी थे इसलिए इस बात का कोई महत्व नहीं है कि किसी और द्वारा फांसी की माफ़ी के खिलाफ दया याचिका कब खारिज हुई. यह तो भगत सिंह की शहादत को छोटा करना है.

भगत सिंह और साथियों की फांसी के खिलाफ तमाम प्रमुख नेताओं मोतीलाल नेहरू,जवाहर लाल नेहरू,सुभाष चंद्र बोस,मदन मोहन मालवीय आदि ने आवाज उठाई. 2 लाख से अधिक लोगों ने उनकी फांसी के खिलाफ ज्ञापन भेजा.

उपरोक्त सभी तथ्यों से साफ़ है कि जो लोग भगत सिंह के नाम पर प्रेम करने को भयानक अपराध ठहरा रहे थे, वे या तो स्वयं जड़ मूर्ख हैं या फिर षड्यंत्रकारी, झूठे और मक्कार हैं. जो देश के नायकों को जानते ही नहीं या उनके बारे में झूठे तथ्य फैलाते हों, वे देशभक्त तो नहीं कहे जा सकते.

प्रेम में बाजार की घुसपैठ का विरोधी होने के बावजूद मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि प्रेम करना न अपराध है न देशद्रोह और न भगत सिंह विरोधी कृत्य है.

जिनका धंधा गणेश को दूध पिलाने और दंगा करवाने के लिए अफवाह फैलाने से चलता हो,वे अपना धंधा करें,भगत सिंह के मामले में नाक न घुसेडें.

“मैं नास्तिक क्यों हूँ” और “साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज”,जैसे लेख लिखने वाला भगत सिंह न इनकी समझ में आएगा और न इनके खांचे में फिट होगा. भगत सिंह इस देश के क्रांतिकारी, प्रगतिशील युवाओं का नायक है और उनको वैचारिकी के चलते अपना नायक मानने वालों को ऐसे मूढ़मति/झूठे, षड्यंत्रकारियों से देशभक्ति का पाठ पढ़ने की कतई आवश्यकता नहीं बल्कि भगत सिंह के साथ ऐसा खिलवाड़ करने वालों को मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए.

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