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मां-बच्चों की अनोखी पाठशाला!

भोपाल | एजेंसी: अब तक आपने बच्चों की अनोखी और मस्ती की पाठशालाएं देखी और सुनी होंगी, लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मां-बच्चों की अनोखी पाठशाला है. जहां बच्चों को तो मस्ती करने का पूरा मौका मिलता ही है, मांएं भी अपने बच्चों की मस्ती का हिस्सा बन जाती हैं.

तमाम अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि बचपन इंसान के जीवन की वह अवस्था होती है, जब उसका विकास बहुत तेजी से होता है. यही कारण है कि माता-पिता बचपन में बच्चों की परवरिश पर खास ध्यान देते हैं.

प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘ब्रेनी बीयर प्री-स्कूल और ऐक्टिविटी क्लब’ की शुरुआत हुई है. इसमें एक साल से लेकर 12 वर्ष की आयु के बच्चों के पांच पाठ्यक्रम है. यह पाठ्यक्रम किताबी नहीं है और इसमें किसी तरह की परीक्षा भी नहीं ली जाएगी. इन पाठ्यक्रमों को कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि बच्चे ऊबें भी नहीं और खेल-खेल में जानकारी भी हासिल कर लें. यहां खेल खिलौने तो हैं ही, संगीत और योग का भी समावेश है.

ब्रेनी बीयर प्री-स्कूल और ऐक्टिविटी क्लब की शुरुआत उच्च और तकनीकी शिक्षा जगत में सक्रिय संस्था ‘आईसेक्ट’ ने अब बच्चों के विकास व ज्ञान में इजाफा करने के लिए की है.

संस्था की संस्थापक पल्लवी राव चतुर्वेदी ने बताया कि बच्चे देश का भविष्य हैं और उनके मस्तिष्क व कौशल विकास के मकसद से ही उन्होंने इस स्कूल की शुरुआत की है.

चतुर्वेदी विभिन्न अध्ययनों का हवाला देते हुए बताती हैं कि मस्तिष्क का पूर्ण विकास 18 वर्ष की आयु तक हो जाता है. मस्तिष्क का विकास जन्म से चार वर्ष तक 50 प्रतिशत और आठ वर्ष तक 80 प्रतिशत हो जाता है. बच्च्चों के पाठ्यक्रम इसी बात को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं.

यहां बच्चों के लिए विद्यालय के बाद क्लब है, जहां आकर बच्चे किताबी शिक्षा के अलावा कुछ और गुर सीख सकतें हैं. इस स्कूल की पाठ्यक्रम संरचना को डॉ. हॉवर्ड गार्डनर के विभिन्न इंटेलीजेंस सिद्धांतों के आधार बनाया गया है, जिसमें बच्चों के विभिन्न बौद्धिक पहलुओं को अहमियत दी गई है.

चतुर्वेदी ने बताया कि उनका सबसे रुचिकर पाठ्यक्रम ‘मदर टाडलर’ कार्यक्रम है, जो एक से दो वर्ष तक की आयु के बच्चों और उनकी मांओं के लिए है. बच्चे की यह उम्र घुटनों के बल चलने की होती है और इस समय उन्हें खास देखरेख की जरूरत होती है. इसलिए इस पाठ्यक्रम में बच्चों के साथ उनकी मांओं को भी शामिल किया गया है.

उन्होंने बताया कि बच्चा एक से दो वर्ष की आयु के बीच ही चलना, बैठना सीखता है. उसकी अन्य गतिविधियां भी बढ़ती हैं, लिहाजा बच्चे की हर गतिविधि में कैसे सुधार लाया जाए, इसके लिए मांओं को भी इस पाठयक्रम का हिस्सा बनाया गया है. मांएं अपने बच्चे की हर गतिविधि को न केवल बेहतर तरीके से समझ सकेंगी बल्कि विषेशज्ञों के जरिये उन्हें यह भी पता चल सकेगा कि उन्हें क्या करना चााहिए.

ब्रेनी बीयर प्री-स्कूल और ऐक्टिविटी क्लब की योजना देश में एक पूरी श्रृंखला विकसित करने की है. भोपाल के इस पहले स्कूल में बच्चों के बीच संवाद हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के जरिए किया जाएगा.

इस स्कूल में सिर्फ महिला कर्मचारियों की ही तैनाती की गई. ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाएं ही बच्चों की भावनाओं को बेहतर तरीके से समझ सकती हैं और बच्चों के माता-पिता एवं अभिभावक भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहेंगे.

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