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ओवैसी की दस्तक भाजपा के लिये सुखद

पटना | समाचार डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी कुछ कर पाये या ना पाये भाजपा को इससे लाभ जरूर होगा. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह तय माना जाने लगा है कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच लड़ाई सीधी नहीं, बल्कि चुनाव में लड़ाई अब रोचक और कांटे की होगी.

ओवैसी के बिहार की राजनीति में प्रवेश को भले ही राजनीतिक दल खुले तौर पर परेशानी का सबब नहीं बता रहे हैं, परंतु यह तय माना जा रहा है कि ओवैसी के प्रवेश ने सत्ताधारी गठबंधन के लिए इस लड़ाई को मुश्किल जरूर बना दिया है.

बिहार में सत्ताधारी जनता दल युनाइटेड, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन को ‘महागठबंधन’ नाम दिया गया है.

ओवैसी ने विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा करते हुए सीमांचल इलाके में प्रत्याशी खड़े करने की बात कही है, परंतु सीटों की संख्या अभी तय नहीं है. कोसी और पूर्णिया का इलाका मिलाकर बनने वाले सीमांचल में 37 सीटें आती हैं, जिसमें पूर्णिया मंडल में 24 व कोसी मंडल में 13 सीटें हैं.

सीमांचल की 25 सीटों पर मुसलमान मतदाता जहां निर्णायक होते हैं, वहीं शेष सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता परिणाम को प्रभावित करते हैं. संभावना व्यक्त की जा रही है कि ओवैसी इन क्षेत्रों की 25 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है. किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 45, अररिया में 35 और पूर्णिया में 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं.

ओवैसी ने संभावना तलाशने के लिए सीमांचल के किशनगंज में 16 अगस्त को रैली की थी. इसमें उमड़ी भीड़ के बाद ही उनके मैदान में उतरने की चर्चा तेज हो गई थी.

राजनीति के जानकार और किशनगंज के वरिष्ठ पत्रकार रत्नेश्वर झा कहते हैं कि ओवैसी भले ही 24 से 25 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हों, लेकिन उनके निशाने पर जो मतदाता हैं, वह महागठबंधन का पक्का वोट माना जा रहा है. इसलिए ओवैसी की पार्टी जितना भी वोट पाएगी, वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगी.

उनका कहना है कि ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. इसका अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलना तय है.

जदयू के प्रवक्ता अजय आलोक इस मामले पर बहुत खुलकर तो कुछ नहीं बोलते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से बिहार में कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि बिहार अब विकास की ओर बढ़ चला है.

जदयू और राजद भले ही ओवैसी को खारिज कर रहे हों, लेकिन उनके मुस्लिम वोट बैंक में कुछ सेंध लगना तय है. जदयू भले ही बिहार में लड़ाई महागठबंधन और राजग के बीच बताए, पर ओवैसी के उम्मीदवारों को मिले मत महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे.

ओवैसी के मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतारने का कुछ हद तक फायदा भाजपा को मिलेगा. यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे, लेकिन जो भी वोट मिलेंगे, वे जदयू और राजद के खाते के ही होंगे.

बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले सुरेंद्र किशोर जदयू की बात से इत्तेफाक नहीं रखते. वह कहते हैं, “बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन में कांटे की टक्कर मानी जा रही है, ऐसे में सभी मुस्लिम मतदाता न सही, परंतु अधिकांश मुस्लिम मतदाता ओवैसी के साथ जरूर होगा. ऐसे में महागठबंधन को नुकसान होना तय है.”

वे कहते हैं कि ओवैसी की किशनगंज की रैली इसका प्रमाण है कि उस रैली में बहुत भीड़ जुटी थी.

किशोर दूसरे शब्दों में कहते हैं कि ओवैसी के बिहार में प्रवेश से राजग को उसी तरह फायदा पहुंचेगा, जैसे महाराष्ट्र चुनाव में हुआ था. वे कहते हैं, “महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में ओवैसी फैक्टर अपना रंग दिखा चुका है. कांटे के इन मुकाबलों में औवैसी की पार्टी ने दो सीटें ही जीतीं, लेकिन नुकसान किसे पहुंचाया, यह हर कोई जानता है.”

जदयू के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा की रणनीति के सवाल पर तो कुछ नहीं बोलते हैं, लेकिन राजद के कई नेता इसके तार दिल्ली से जुड़े होने की बात कहते हैं.

वहीं, भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि बिहार के अल्पसंख्यक मतदाता राजग के साथ हैं. पहले भी भाजपा के प्रत्याशी सीमांचल क्षेत्रों में विजयी होते रहे हैं और इस चुनाव में भी होंगे.

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