Columnist

बिहार और नस्लभेद के सवाल

पुरुषोत्तम अग्रवाल
पूर्वोत्तर के छात्र की दिल्ली में हुई हत्या के बाद हम देश के विभिन्न इलाकों के बीच संवादहीनता, संशय, अपरिचय के बारे में गंभीरता से सोचने के विवश हुए हैं. निश्चित तौर पर ये समस्याएं पूर्वोत्तर भारत के प्रसंग में ज्यादा प्रचंड हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि अन्य क्षेत्रों के प्रसंग में है ही नहीं. यह जो घटना हुई है, अत्यंत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके बारे में बात करते हुए हम लोग दो-तीन और घटनाएं भी याद कर लें तो बेहतर रहेगा.

हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि हम किसी एक घटना पर ध्यान केंद्रित कर लेते हैं और उसे सही परिप्रेक्ष्य में रखना भूल जाते हैं. दो-तीन साल पहले महाराष्ट्र में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भारतीय रेलवे की परीक्षाओं में भाग लेने जाने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों के खिलाफ आन्दोलन किया था. उस वक्त किसी रेलवे स्टेशन पर हुई मारपीट में बिहार का एक नौजवान मारा गया था.

यह समझने की जरूरत है कि दिल्ली की यह घटना महाराष्ट्र की उस घटना से किस तरह अलग है. मुझे तो दोनों ही घटनाओं में कोई अंतर नहीं दिखता. वहां भी एक भीड़ ने मारपीट की, यहां भी आपस में कुछ झगड़ा हुआ और झगड़े में पूर्वोत्तर के उस नौजवान की हत्या कर दी गई.

आज देश में जरूरत इस बात की है कि बिहार के लोगों का महाराष्ट्र में स्वागत किया जाए, और महाराष्ट्र के लोगों का बिहार में. देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य क्षेत्रों के लोगों के बारे में भ्रांत धारणाएं मौजूद हैं. उत्तर पूर्व के लोगों के बारे में तरह-तरह के पूर्वाग्रह और भांति-भांति की भ्रांत धारणाएं प्रचलित हैं. हम केवल इसे उत्तर पूर्व बनाम शेष भारत की समस्या के रूप में न देखें. यह समस्या भारत सरीखे बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश में एक तरह की स्वाभाविक समस्याओं में से है. अगर इनका हल खोजना है तो एक समग्र सोची-समझी और शांत चित्त वृत्ति होनी चाहिए. जल्दीबाजी में फौरी तौर पर इसका समाधान निकालने से कुछ होने वाला नहीं है.

दूसरी बात यह है कि दिल्ली की इस घटना में नस्लवाद ढूंढना जिसकी अभी बड़े जोर-शोर से र्चचा है, गलत होगा. क्योंकि महाराष्ट्र में जो बिहार का लड़का मारा गया था, वहां वह कौन से वाद का शिकार हुआ था, इस पर भी विचार करने की जरूरत है. इसी तरह हाल में गुजरात के मंत्री का बयान आया है कि गुजरात में जो यूपी-बिहार व उड़ीसा के लोग आते हैं, उनके कारण गुजरात की प्रति व्यक्ति आय घट गई है. यह विचारणीय है कि इसे कौन सा वाद कहेंगे. इसलिए हमें शब्दों का प्रयोग थोड़ा सोच-समझ कर करना चाहिए. निस्संदेह हमारे समाज में नस्लवाद का संस्कार मौजूद है. निस्संदेह हमारे समाज में गोरे वर्ण के प्रति एक तरह का आकर्षण और भय, काले के प्रति एक तरह की अवहेलना मौजूद है. निस्संदेह दिल्ली समेत देश के अन्य इलाकों में उत्तर-पूर्व के लोगों को समस्याएं झेलनी पड़ती हैं. लेकिन यह समस्या का एक पहलू भर है.

समस्या असल में अपरिचय की है, जो केवल पूर्वोत्तर बनाम शेष भारत नहीं है. अपरिचय दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत है, अपरिचय कश्मीर बनाम शेष भारत भी है, बिहार बनाम महाराष्ट्र भी है, इत्यादि. समाज में एक तरह के संदेह की स्थिति व्याप्त है, जिसे कुछ लोग अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थो के लिए जानबूझकर बढ़ावा देते हैं. इसे जानबूझकर एक संगठित रूप दिया जाता है, जैसा कि महाराष्ट्र में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना करती है.

निडो की मृत्यु के बाद से बात चल रही है कि देश में नस्लवाद विरोधी कानून बना दिया जाए. लेकिन यह तरह से वास्तविक समस्या से फौरी तौर पर पिंड छुड़ाना होगा क्योंकि देश में अच्छे-अच्छे इरादों से बनाए गए कानूनों का ढेर लगा है, जिनका गलत इस्तेमाल बुरे इरादों वाले लोग लगातार कर रहे हैं. ऐसे कई कानून इस देश में इस समय है जिनका सदुपयोग कितना होता है और न्यस्त स्वार्थो वाले लोग इनका दुरुपयोग कितना करते हैं, विचारणीय प्रश्न है. जरूरत इस बात की है कि लोगों के बीच जो एक दूसरे के प्रति कम परिचय का भाव है, उसे संगठित राजनीतिक रूप देने वाले लोगों पर सख्ती से रोक लगे.

जो लोग देश में नस्लवाद विरोधी कानून बनाने के पैरोकार हैं, वे यदि सचमुच इस देश में अपरिचय और उससे होने वाली हिंसा से चिंतित हैं, तो असल में उनकी मांग यह होनी चाहिए कि गुजरात के वो मंत्री माफी मांगें अन्यथा त्यागपत्र दें और महाराष्ट्र में मनसे जैसी संस्थाओं की गतिविधियों पर दोटूक रूप से कानूनी रोक लगे. लेकिन यह मांग कोई करेगा नहीं क्योंकि राजनीतिक पार्टयिों को कल कब किस दूसरी राजनीतिक पार्टी से काम पड़ जाए यह कोई नहीं जानता. अपने निहित स्वार्थो के कारण हमारे राजनेता समस्या को सुलझाना ही नहीं चाहते.

आज शिवसेना के साथ भाजपा का गठजोड़ है, यह भी संभव है कि कल कांग्रेस को उसके साथ की जरूरत पड़ जाए. समाज में हिंसा व्याप्त है, एक तरह का अधैर्य भी समाज में है. दिल्ली में पिछले कुछ वर्षो से रोडरेज जैसी घटनाएं में काफी वृद्धि हुई है. लाजपतनगर की इस घटना में अपरिचय का तत्व है, लेकिन व्यापक रूप से इसमें समाज में बढ़ते हुए गुस्से और कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति और कानून हाथ में लेने वालों पर कोई रोक ना लगने की एक तरह की छूट का ज्यादा हाथ है. आज लोग कानून हाथ में लेकर यह जानते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि कोई ना कोई राजनीतिक पार्टी या ताकतवर लॉबी समर्थन में खड़ी हो जाएगी. आज जरूरत इस बात की है कि नए-नए कानून बनाने की बजाए देश में कानून के राज का संस्कार पैदा किया जाए.

देश में जो कानून अस्तित्व में हैं, अगर उन्हीं को मुकम्मल ढंग से लागू कर दिया जाए तो बहुत सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी. लोगों में परस्पर परिचय का भाव बढ़ाने के लिए सबसे पहले उन संगठित गतिविधियों पर, जो चाहे राजनीतिक संगठनों की हों या तथाकथित गैर राजनीतिक संगठनों की, रोक लगानी चाहिए जो देश में किसी भी धार्मिंक, भाषायी या सांस्कृतिक समुदाय के विरुद्ध स्टीरियोटाइपिंग करते हैं और बेबुनियाद बातें करते हैं लेकिन हम सब जानते हैं कि इस पर कोई भी अमल नहीं करने वाला है.

जहां तक पाठ्यपुस्तकों में पूर्वोत्तर भारत के बारे में पढ़ाए जाने की बात है तो यह होना ही चाहिए, लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि ऐसी बातें तब अमल में लाने की बात हो रही है जब ऐसी दुखद घटनाएं होती हैं. साथ ही पाठ्यपुस्तकों से आगे बढ़ कर हमें देश के सभी लोगों का अपने अंदर समावेश करना होगा. चाहे वो मीडिया हो, राजनीतिक दल हो, प्रशासन हो देश के विभिन्न जगहों, क्षेत्रों और वगरे के लोगों को कितना समावेश करते हैं, इसकी जरूरत है. यह केवल पाठ्यपुस्तक में पढ़ाने या कानून बनाने की बात नहीं है.

असल में हमें इस बात को समझना होगा कि विविधता में एकता भारत के लिए महज खोखला नारा नहीं है, बल्कि यह भारत के अस्तित्व की शर्त भी है. हमारे देश की यह विविधता विभिन्न प्रकार की है. नस्ल से लेकर धर्म तक तरह-तरह के लोग इस देश में रहते हैं और रहने चाहिए. उन सभी से मिल कर ही भारत का निर्माण होता है. इस विविधता में निहित एकता के भाव को एक वास्तविकता बनाने के लिए विभिन्न वगरे और पृष्ठभूमि के लोगों को यह अहसास कराने के लिए उनका हर क्षेत्र में समावेश करना जरूरी है. साथ ही हमें भौगोलिक दूरियों को भी मिटाना होगा.

दिल्ली से एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति को पूर्वोत्तर जाने में कम से कम ढाई दिन लगते हैं, हवाई यात्रा हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता. तो देश में विकास की जो नदी बह रही है उसकी कुछ धाराएं पूर्वोत्तर की तरफ भी पहुंचनी चाहिए. हवाई जहाज और सुरक्षित हेलीकॉप्टर सेवा जिसका उपयोग केवल वीआईपी ही नहीं, बल्कि आम आदमी भी कर सके उसकी व्यवस्था भी करनी चाहिए.

आज अंडमान निकोबार पहुंचने में पानी के जहाज से 30 घंटे से अधिक लगते हैं, जबकि हवाई जहाज से महज दो घंटे लगते हैं. रोचक यह है कि अभी तक देश में किसी को यह बात नहीं सूझी की अंडमान निकोबार के लोगों को हवाई किराए में कुछ छूट दी जाए. कोई अगर अंडमान घूमने के लिए जाता है तो उसे जितना हवाई किराया देना होता है, उतना ही पोर्ट ब्लेयर के किसी व्यक्ति को देना होता है, जो किसी कारणवश कोलकाता, मुंबई या दिल्ली जाना चाहता हो.

हमारे देश के बुद्धिजीवियों व अन्य लोगों को अंडमान के लोगों की चिंता तभी होगी, जब वहां का कोई व्यक्ति दिल्ली मंह पिट जाएगा. फिर मीडिया से लेकर राजनेता व समाज में इस मुद्दे को लेकर चिंता उभरेगी. केवल पाठ्यपुस्तकों में अंडमान के समाज, संस्कृति व इतिहास को पढ़ाने से खास फायदा होने वाला नहीं है. बल्कि जरूरत इस बात की है कि उनका दिल्ली आना उतना ही स्वाभाविक और सहज हो जितना तथाकथित मुख्यभूमि में लोगों को आने-जाने में होता है.

आज 21वीं सदी में संपर्क के इतने संसाधन होने के बावजूद देश के कई इलाकों की भौगोलिक दूरियां मिटी नहीं हैं. जब तक लोगों का आपस में संपर्क नहीं होगा तब तक संशय और अपरिचय की भावना बनी रहेगी. देश के लोगों में एक दूसरे की संस्कृति, समाज व इतिहास के बारे में अपरिचय का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि हमारी सरकार को ऐसा लगता ही नहीं है कि साहित्य और संस्कृति भी पठन-पाठन की चीज है.

सरकार का सारा जोर विज्ञान व गणित पर है. नतीजा यह है कि पूर्वोत्तर की संस्कृति की जानकारी तो छोड़िए. मैंने अपने निजी अनुभव में देखा है कि ऐसे लड़के-लड़िकयां भी यूपीएससी की मुख्य परीक्षा में सफल हो जाते हैं, जो साक्षात्कार के दौरान जवाहरलाल नेहरू का जन्म स्थान नहीं बता पाते. उत्तर के कई छात्र दक्षिण के पांच महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम बताने में महज आजकल के नेताओं व फिल्मी कलाकार की गणना ही कर पाते हैं, तो यहां बात उत्तर-दक्षिण की नहीं है. बात यह है कि इतिहास, साहित्य और संस्कृति के गंभीर अध्ययन पर बच्चों में दिलचस्पी पैदा करने में सरकार की कितनी दिलचस्पी है.

error: Content is protected !!