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बिलासपुर विश्वविद्यालय विवाद में साही राजभवन तलब

रायपुर | संवाददाता : बिलासपुर विश्वविद्यालय में कुलपति पद के उम्मीदवार सदानंद साही को राजभवन ने पक्ष रखने के लिये तलब किया है. उनकी नियुक्ति पर रोक के बाद कुलाधिपति ने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में जांच के निर्देश दिये थे. अब जांच रिपोर्ट के बाद साही को पक्ष रखके के लिये राजभवन तलब किया गया है.

ग़ौरतलब है कि बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर डाक्टर गौरीदत्त शर्मा कार्यरत हैं, जिनका कार्यकाल 31 मई को ख़त्म होने वाला था. उनके स्थान पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत प्रोफ़ेसर सदानंद साही को बिलासपुर विश्वविद्यालय का नया कुलपति नियुक्त किया गया.

लेकिन सदानंद साही के कार्यभार संभालने से पहले ही उनका विरोध शुरु हो गया. जिस भाजपा सरकार ने उनकी नियुक्ति की थी, उनके ही छात्र संगठन एवीबीपी ने कुलपति के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. एवीबीपी का आरोप था कि साही वामपंथी विचारधारा के हैं और उन्होंने माओवादियों का समर्थन किया था. आरोप लगाया गया कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ जब लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटाये तो साही ने उनका समर्थन किया.

हालाँकि इन सबसे इतर एक गंभीर आरोप लगाया गया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमानुसार कुलपति पद पर नियुक्ति के लिये दस साल प्रोफ़ेसर पद पर काम का अनुभव जरुरी है. यह अर्हता प्रोफ़ेसर साही के पास नहीं है. एवीबीपी ने कहा कि अगर कुलपति के पद पर प्रोफ़ेसर सदानंद साही की नियुक्ति की गई तो उनका संगठन राज्य भर में आंदोलन करेगा.

एवीबीपी के विरोध का असर ये हुआ कि राजभवन ने सदानंद साही के कुलपति बनाये जाने संबंधी अपने आदेश पर रोक लगा दी. पूरे मामले की जाँच कराने का फ़ैसला लिया गया. इसके लिये रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर एस के पांडेय को जाँच अधिकारी नियुक्त किया गया था.

हालाँकि इस बीच रायपुर के कुशाभाउ पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर मान सिंह परमार को लेकर भी आरोप लगे कि उनके पास भी कुलपति पद के लिये पर्याप्त योग्यता नहीं है. परमार ने दावा किया है कि भले ही उनके पास पाँच साल तक प्रोफ़ेसर का अनुभव रहा हो लेकिन वे विभागाध्यक्ष के तौर पर दस साल का अनुभव रखते हैं. इस मामले में कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल से भी शिकायत की लेकिन राजभवन ने इन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की.

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