छत्तीसगढ़

बीएसपी हादसे का जिम्मेदार कौन ?

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ के भिलाई में गैस रिसाव हादसे में 6 की मौत हो चुकी है. इनमें डीजीएम, एजीएम स्तर के अधिकारी सहित मजदूर शामिल हैं. इससे पहले भी बीएसपी में 1986 में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसमें 6 लोग मारे गये थे. खबर है कि उसके बाद भी कई ठेका मजदूर मारे जाते रहें हैं तथा हादसों का शिकार होते रहें हैं. गौरतलब है कि इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के बाल्कों में 2009 में चिमनी हादसे में अधिकारिक तौर पर 41 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. जिसके लिये ज़िम्मेवार सभी लोग आज़ाद घुम रहे हैं.

इसलिये यह कहना गलत न होगा कि छत्तीसगढ़ में श्रमिक-कर्मचारी की जान बड़ी सस्ती है. आये दिन निजी उद्योगों में इसी तरह के हादसे होते रहते हैं जिसकी जानकारी तक बाहर निकल कर नहीं आती है. असंगठित क्षेत्र की बात तो छोड़ दीजिये, उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. इससे यह सवाल उत्पन्न होता है कि इन हादसों की जिम्मेदारी किसकी है ? क्या ऐसे हादसों को टाला जा सकता है ? सवाल कठिन तो नहीं है परन्तु इसका जवाब भिलाई स्टील प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस नंबर 2 में हुए गैस रिसाव की घटना स्वमेय दे देती है.

इस ब्लास्ट फर्नेस नंबर 2 में पाइप से जहरीली गैस का रिसाव पहले से ही हो रहा था. जिसे सुधारने का काम जारी था तथा इसी के निरीक्षण करने के लिये डीजीएम तथा एजीएम स्तर के अधिकारी पहुंचे थे.

हैरत की बात यह है कि जब वहां पर रह रहे कबूतर मर कर गिरे तब जाकर पता चल पाया कि जहरीली गैस का रिसाव तेजी से हो रहा है. इसके बाद ही अधिकारी तथा कई कर्मचारी गिरने लगे. गौरतलब है कि इस जहरीली गैस के गंधहीन तथा रंगहीन होने के कारण इसकी जानकारी तभी मिल पाई जब मौत के साये की परछाई वहां पर पड़ी.

बीएसपी में काम करने वाले कर्मचारियों ने मीडिया को बताया कि वहां पर एक यंत्र लगाया गया था, जिससे जहरीले गैस के रिसाव का पता चलना चाहिये था परन्तु न जाने ऐन समय पर यह कैसे धोखा दे गई. इससे स्पष्ट है कि हादसे को रोकने के लिये जिस यंत्र पर बीएसपी प्रबंधन निर्भर था, वह ही ठीक-ठाक ढ़ंग से काम नहीं कर रही थी. यदि पहले से ही जहरीली गैस के रिसाव की जानकारी मिल गई होती तो इस हादसे को टाला जा सकता था. इसका एक पहलू और है, वह है कि बीएसपी प्रबंधन ने नियमित कर्मचारी रखने के बजाये ठेका श्रमिकों पर अपनी निर्भरशीलता बढ़ा दी थी.

इस हादसे के बाद एक बात और निकल कर आई कि करीब 60 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैले भिलाई स्टील संयंत्र में राहत कार्य के लिये केवल 1 एंबुलेंस मौजूद रहता है. कर्मचारी यूनियनों ने कई बार बीएसपी प्रबंधन को आगाह किया था कि राहत तथा आपातकालीन सेवा के लिये एंबुलेंस की संख्या में बढ़ोतरी की जाये परन्तु उनकी बात कभी सुनी नहीं गई. यदि राहत कार्य के लिये बेहतर प्रबंध करके पहले से रखा जाता तो मरने वालों की संख्या को टाला जा सकता था. यहां तक कि उस ब्लास्ट फर्नेस में जीवनदायिनी ऑक्सीजन तक की व्यवस्था नहीं थी, जो ऐसे मौके पर लोगों की जान बचा सकता है.

बीएसपी को एशिया का सबसे बड़ा कारखाना कहा जाता रहा है. साफ तौर पर यह औद्योगिक सुरक्षा की अनदेखी का मामला है, जिसके लिये जिम्मेदारी तय की जानी चाहिये. जहां तक बीएसपी प्रबंधन का सवाल है वह इतनी गैर जिम्मेदार रवैया अपना रही है कि रात के साढ़े ग्यारह बजे तक उसने अधिकारिक तौर पर कोई बयान जारी नहीं किया था. इसी कारण से दिल्ली से केन्द्रीय खनन तथा स्पात राज्य मंत्री विष्णुदेव साय के लिये मीडिया से यह कह पाना मुश्किल था कि कितनी मौते हुई हैं.

जो प्रबंधन इतने बड़े हादसे के बाद भी छत्तीसगढ़ से निर्वाचित अपने मंत्री को सही सूचना नहीं दे सकता है, उससे किस प्रकार से औद्योगिक सुरक्षा को निश्चित करने की आशा की जा सकती है. छत्तीसगढ़ तथा केन्द्र सरकार को चाहिये कि बीएसपी हादसे की जांच कराई जाये तथा दोषी को कानून के अनुसार मुकर्रर सजा दी जाये.

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