चुनाव विशेषछत्तीसगढ़

जाति के नेताओं से परेशान पार्टियां

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से पहले अलग-अलग समाजों से उठ रही टिकट की मांग से राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और भाजपा परेशान हैं. विभिन्न समाजों की ओर से चेतावनी भरी मांग आ रही है कि चुनाव में उनके समाज को पर्याप्त प्रतिनिधिˆव नहीं दिया गया तो संबंधित दल को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

इस मांग पर एक बड़े नेता का कहना है कि जितनी मांग आ रही है उसके हिसाब से रा’य में 90 सीटें और बढ़ा दी जाएं तो भी कम पड़ जाएंगी. राजनीति में पैसे और प्रभाव को देखते हुए लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. शिक्षित होने से भी लोगों में जागरूकता आई है.

वैसे तो हर चुनाव से पहले समाज की ओर से ज्यादा प्रतिनिधिˆव देने के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बनाया जाता है. लेकिन इस बार हर समाज की ओर से अलग-अलग ™ज्ञापन दिए जा रहे हैं, साथ ही चेतावनी भी. ™

ज्ञापन देने के लिए समाजों की ओर से कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है और इसमें भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी बुलाया जा रहा है. सिख समाज, सिंधी समाज, साहू समाज, कुर्मी समाज, कलार समाज, यादव समाज, ब्राम्हण समाज, पनका समाज और दूसरे अ‹य समाज की ओर से बकायदा दोनों दलों को ™ज्ञापन सौंपकर टिकट मांगी गई है.

अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की सीटें आरक्षित हैं इसलिए उनके समाज को एक निश्चित संख्या में प्रतिनिधिˆव मिलना तय है लेकिन दूसरे समाज के लोग भी चुनावी राजनीति में अपनी जाति का ज्यादा से ’ज्यादा
प्रतिनिधिˆव चाहते हैं. इसके लिए वे अलग-अलग विधानसभा क्षे˜त्रों में अपनी जाति की जनसंख्या का हवाला देकर दबाव बना रहे हैं. वैसे अभी जातिगत जनगणना के आंकड़े नहीं आए हैं. इसलिए पार्टियों के लिए भी यह कठिन हो जाता है कि उ‹न्हें आश्वासन दिया जाए.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों पर इस बार सबसे ज्यादा दबाव अ‹य पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियों जैसे साहू, कुर्मी, पनका, कलार, यादव आदि का है. इनमें से हर समाज 3 से 5 टिकटों की मांग कर रहा है.

राजनीतिक दलों का कहना है कि टिकट बंटवारे में वे जातिगत समीकरणों का ध्यान रखते हैं, लेकिन इस सबसे ज्यादा महˆत्वपूर्ण जीत सकने वाले प्रˆत्याशी का Šयान रखना होता है. रा’ज्य में पिछड़ा वर्ग में ही कई जातियां हैं इसलिए एक-एक जाति को प्रतिनिधिˆव देना संभव नहीं है. सीटों की संख्या और उसमें आरक्षण का प्रतिशत तय है. सिर्फ अनारक्षित सीटों पर ही सभी जातियों को उ‹हें एडजस्ट करना पड़ता है.

सžत्तारूढ़ दल के एक प्रमुख नेता का कहना है कि अपने समाज के लिए ज्यादा से ज्यादा मांग करना उनका काम है, लेकिन राजनीतिक दलों को अ‹य बातों का भी Šयान रखना पड़ता है. अलग-अलग समाजों की ओर से जितनी मांग आ रही है, उसमें 180 सीटें कम पड़ जाएंगी. हर सीट से आधा से लेकर दो दर्जन तक दावेदार दोनों पार्टियों में है. ऐसे में राजनीतिक दलों को संबंधित दावेदार की सक्रियता, लोगों में स्वीकार्यता एवं उसकी जनता के बीच लोकप्रियता का Šध्यान रखना पड़ता है.

राजनीतिक दल किसी भी समाज को नाराज नहीं कर सकता इसलिए उनकी चेतावनी को सहना भी उनकी मजबूरी है. बहरहाल बढ़ते सामाजिक दबाव से पार्टियों के लिए जीत सकने योग्य प्रत्याशी तय करने में दिय्कतें आने लगी हैं. वे इस बात को लेकर परेशान भी हैं.

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