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ढोलकल श्रीगणेश नष्ट अवस्था में मिले

दंतेवाड़ा | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ के बस्तर के ढोलकल के श्रीगणेश की प्रतिमा पहाड़ी से 1500 फीट नीचे नष्ट अवस्था में पाया गया है. ड्रोन कैमरा की सहायता से इसे शुक्रवार को ढूंढने मे कामयाबी मिल पाई है. अभी भी पूरे अवशेष नहीं मिले हैं. कलेक्टर सौरभ कुमार और एसपी कमलोचन कश्यप ने करीब 14 किलोमीटर पदयात्रा कर शिखर पर चढ़कर वास्तविक स्थिति का पता लगाया.

गौरतलब है कि दक्षिण बस्तर के फरसपाल इलाके से सटे घने जंगल और बैलाडिला की पहाड़ी से सटे ढोलकल शिखर पर स्थित प्राचीन श्रीगणेश की प्रतिमा चोरी होने की खबर गुरुवार को सामने आई थी.

प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया है कि 26 जनवरी को जब वे इस शिखर पर पहुंचे तो पाया कि वहां श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमा का स्थान खाली है. इस खबर के वाट्सएप पर वायरल होने के बाद ही पुष्टि के लिए लोगों ने प्रयास प्रारंभ ​कर दिया.

इस बीच पता चला कि बचेली से युवाओं का एक दल ढोलकल की पहाड़ी पर 26 जनवरी को पहुंचा था. उसने ही इसे सबसे पहले देखा है. इधर 25 जनवरी को शिखर पहुंचने वाले फरसपाल के ग्रामीणों ने कहा कि 25 जनवरी तक शिखर पर मूर्ति अवस्थित थी.

ढोलकल की पहाड़ी से श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमा के गायब होने की खबर से पूरा दक्षिण बस्तर आक्रोशित है. यहां लोगों ने पुरातात्विक धरोहरों की सुरक्षा को लेकर बरती जा रही कोताही को जिम्मेदार बताया है. बस्तर के विभिन्न हिस्सों में पुरा धरोहर यत्र—तत्र बिखरी पड़ी है. इसके संर्वधन और संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

सरकार ने जांच कमेटी बनाई

दंतेवाड़ा में 11वीं सदी की श्रीगणेश की मूर्ति टूटने के मामले में सरकार ने जांच समिति बना दी है. मुख्यमंत्री रमन सिंह के निर्देश पर पुरातत्व विशेषज्ञ व पद्मश्री अरुण शर्मा को जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वे शुक्रवार को ही दंतेवाड़ा रवाना हो रहे हैं.

ऐतिहासिक महत्व

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ढोलकल शिखर पर स्थापित दुर्लभ गणेश प्रतिमा लगभग 11वीं शताब्दी की है. इसकी स्थापना छिंदक नागवंशी राजाओं ने की थी. यह प्रतिमा पूरी तरह से ललितासन मुद्रा में है. ढोलकल की गणेश प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक है.

प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में परशु, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे का दायाँ हाथ अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा निचला बायाँ हाथ मोदक धारण किए हुए है. पर्यंकासन मुद्रा में बैठे हुए गणपति का सूँड बायीं ओर घूमता हुआ शिल्पांकित है. प्रतिमा के उदर में सर्प लपेटे हुए तथा जनेऊ किसी सांकल की तरह धारण किये हुए अंकित है. गणपति की जनेऊ के रूप में सांकल का सामान्य चित्रण नहीं है.

इस प्रतिमा में पैर एवं हाथों में कंकण आभूषण के रूप में शिल्पांकित है तथा सिर पर धारित मुकुट भी सुंदर अलंकरणों से संज्जित है. सरसरी निगाह से देखने पर ये प्रतिमा नवीं-दसवी शताब्दी की प्रतीत होती हैं. यह समय चक्रकोटय (प्राचीन बस्तर) की नाग सत्ता का था.

ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है. यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है. जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है.

इन स्थलों व यहाँ की तस्वीरों को गंभारता से देखने पर अनुमान लगता है कि आस-पास किसी बडे प्राचीन नगर की उपस्थिति भी अवश्यंभावी है. वह भव्य नाग-कालीन नगर रहा होगा या संभवत: कोई राजधानी जिस के निकट ढोलकल के शिखर पर सूर्य की पहली किरण पड़ती रही होगी एवं फिर नगर में उजियारा फैल जाता होगा. प्रथम-वंदनीय भगवान गणेश की इतनी प्रतिमायें बस्तर भर में नाग शासकों द्वारा बनवायी गयी हैं कि यहाँ भी यह उपस्थिति अनायास प्रतीत नहीं होती.

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