प्रसंगवश

छत्तीसगढ़: गोद भरने की चाह में

रायपुर | विशेष संवाददाता: गोद भरने की चाह में महिलायें क्या-क्या नहीं करती हैं. इसकी मिसाल देखना है तो छत्तीसगढ़ के धमतरी में ‘परण परंपरा’ को देखना चाहिये. हर दीपावली के बाद के पहले शुक्रवार के दिन सूनी गोद वाली महिलायें गंगरेल स्थित मां अंगारमोती की दरबार में जमीन पर लेट जाती हैं और पुजारी उऩके उपर से निकलता है. ऐसा माना जाता है कि माता की कृपा से महिलाओं की सूनी गोद भरने की कामना पूरी हो जाती है.

इस शुक्रवार को भी सैकड़ों महिलाओं ने ‘परण परंपरा’ के अनुसार इसका पालन किया. यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है. आस्था पर सवाल नहीं किये जा सकते है परन्तु इतना तो पूछा ही जा सकता है कि क्या कभी पुरुष भी बच्चे की चाह में इस तरह के परंपरा का पालन करता है?

क्या महिलायें अकेली ही बच्चे के जन्म न होने का कारण है. वैज्ञानिक तथा चिकित्सीय दृष्टिकोण से केवल महिला को बच्चे के जन्म न होने का कारण नहीं मानना जा सकता. इसके लिये पुरुष भी बराबरी का जिम्मेदार हो सकता है.

एक तरफ मानव मंगलग्रह पर बस्तियां बसाने की सोच रहा है, सुदूर अंतरिक्ष के ग्रह में जीवन की खोज कर रहा है, टेस्ट ट्यूब बेबी तकनालाजी की बदौलत बच्चे को जन्म दिया जा रहा है उस युग में संतान की चाह में पुजारी के पैरों तले लेटना इस बात का जीता-जागता सबूत है कि समाज में वैज्ञानिक चेतना का प्रचार-प्रसार उस तरह से नहीं हो पाया है जैसा होना चाहिये.

केवल समाज को दोष देने से काम नहीं चलेगा. आज भी घर की बड़ी-बूढ़ी महिलायें लड़की के जन्म पर बहू को ही ताने देती है. जबकि वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुका है कि लड़की के जन्म के लिये पिता भी आनुवांशिक तौर से जिम्मेदार होता है. दरअसल लड़कियों में xx क्रोमोसोम के 23 जोड़े तथा लड़कों में xy क्रोमोसोम के 23 जोड़े होते हैं.

जब पति के वीर्य में x क्रोमोसोम की मात्रा अधिक होती है तो वह पत्नी के x क्रोमोसोम के साथ मिलकर लड़की को जन्म देता है. ठीक इसी तरह से जब पति के वीर्य में y क्रोमोसोम की मात्रा अधिक होती है तो वह पत्नी के x क्रोमोसोम के साथ मिलकर बेटे को जन्म देता है. जब पति के वीर्य में xy क्रोमोसोम की मात्रा बराबर होती है तो लड़का या लड़की के जन्म की समान संभावना रहती है.

कुल मिलाकर यह आनुवांशिक जीन है जो तय करता है कि लड़का पैदा होगा या लड़की उसके बावजूद समाज में पत्नी से उम्मीद की जाती है कि वह परिवार को बेटा दे. हालांकि, ऐसे परिवारों की भी कमी नहीं हैं जो बेटे के बजाये बेटी की चाहत रखते हैं.

एक और मिसाल समाज में फैली इस असमानता का ढ़िढ़ोरा पीटकर ऐलान करती है. हमारे पुरुषवादी समाज में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी भी महिलाओं पर डाल दी जाती है.

पुरुष परिवार नियोजन के ऑपरेशन से दूर भागते हैं. अर्थात् बच्चे न होने की जिम्मेदारी भी महिला की तथा बच्चे को होने से रोकने की जिम्मेदारी भी उसी की. खासकर छत्तीसगढ़ में पुरुष तो नसबंदी करवाने से भागते रहते हैं.

कुछ तथ्य जो साबित करते हैं कि छत्तीसगढ़ में पुरुष नसबंदी करवाने से कन्नी काटते हैं.

छत्तीसगढ़ में साल 2013-14 में कुल नसबंदी- 1,28,656
पुरुष नसबंदी- 4,624
महिला नसबंदी- 1,24,032

बस्तर संभाग में कुल नसबंदी- 10,544
पुरुष नसबंदी- 2,030
महिला नसबंदी- 8,514

बिलासपुर संभाग में कुल नसबंदी- 34,151
पुरुष नसबंदी- 764
महिला नसबंदी- 33,387

दुर्ग संभाग में कुल नसबंदी- 36,232
पुरुष नसबंदी- 677
महिला नसबंदी- 35,555

रायपुर संभाग में कुल नसबंदी- 33,554
पुरुष नसबंदी- 1,125
महिला नसबंदी- 32,429

सरगुजा संभाग में कुल नसबंदी- 14,175
पुरुष नसबंदी- 28
महिला नसबंदी- 14,147

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