छत्तीसगढ़

व्यापार-कृषि सुधार में छत्तीसगढ़ पीछे

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ कारोबारी सहूलियत के लिहाज से चौथे नंबर पर है. वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने विश्‍व बैंक समूह के साथ मिलकर राज्‍यों में कारोबार संबंधी सुधारों के क्रियान्‍वयन के आकलन 2015-16 के निष्‍कर्ष जारी कर दिये हैं. इसी के साथ नीति आयोग ने भी कृषि विपणन और फार्म अनुकूल सुधारों सूचकांक पर देश के सभी राज्यों की सूची जारी की है जिसमें छत्तीसगढ़ 11वें पायदान पर है. नीति आयोग की सूची में महाराष्ट्र 81.7 अंकों के साथ पहले स्थान है वहीं छत्तीसगढ़ 51.4 अंकों के साथ 11वें स्थान पर है.

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में छत्तीसगढ़ देश के 10 अग्रणी राज्यों में 4 नंबर पर है. हालांकि छत्तीसगढ़ ने पिछले साल की तुलना में अपने चौथे स्थान का बरकरार रखा है. जिसका अर्थ होता है कि इस मामले में राज्य में कोई उन्नति नहीं हुई है.

दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना साझा रूप से पहले स्थान पर हैं. आंध्र प्रदेश 2015 में दूसरे और तेलंगाना 13 वें स्थान पर था. गुजरात पहले स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है.

हरियाणा 6वें पायदान पर है जबकि बीते साल वो 14 वें स्थान पर था. पिछले साल तीसरे स्थान पर रहा झारखंड सातवें स्थान पर है और छठे पायदान पर रहा राजस्थान आठवें स्थान पर आ गया है. सबसे बेहतर प्रदर्शन उत्तराखंड का रहा जो 23 वें स्थान से छलांग लगाकर नौ वें स्थान पर आ गया है.

उल्लेखनीय है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने आसानी से कारोबार करने के माहौल के लिहाज से वर्ष 2016 के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की रैकिंग जारी की.

विश्व बैंक के सहयोग से तैयार की गयी इस रैंकिंग को तैयार करने में 340 किस्म के सुधार कार्यक्रमों पर अमल को पैमाना बनाया गया.

इस मौके पर कृषि उत्पादों की खरीद-बिक्री और किसानों के लिए जरुरी सुधार कार्यक्रम अपनाने के मामले में भी राज्यों की रैकिंग जारी की गयी है. इस रैकिंग में महाराष्ट्र पहले, गुजरात दूसरे और राजस्थान तीसरे स्थान पर है. इन राज्यों को क्रमशः 81.7, 71.5 एवं 70 अंक मिले हैं.

नीति आयोग ने इस सूची को जारी करने के लिये तीन पैमाने तय किये हैं, कृषि बाजार में सुधार, भूमि के पट्टों से संबंधित सुधार एवं निजी भूमि व वानिकी से संबंधित सुधार.

नीति आयोग का मानना है कि कम उत्पादकता, विकास और निम्न आय के कारण भारत का कृषि क्षेत्र बीमार है तथा कृषि संकट में है. नीति आयोग के अनुसार क्रांतिकारी सुधारों के बगैर न तो कृषि को बदला जा सकता है और न ही किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है.

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