चुनाव विशेषछत्तीसगढ़

बाप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए

कनक तिवारी
इस विधानसभा चुनाव को लेकर एक पिता की सक्रियता काबिले तारीफ और ध्यान देने योग्य रही है. दुर्ग के लोकप्रिय विधायक रहे मोतीलाल वोरा ने राष्ट्रीय राजनीति की व्यस्तता से समय निकालकर बेटे अरुण वोरा की विजय के लिए सघन प्रचार किया. वोरा किफायतसारी से चुनाव लड़ते रहे हैं. इस बार उन्होंने संसाधनों की कमी को दूर कर दिया. कहां तो शोर था कि अमित जोगी को मुकदमे के चलते कांग्रेस की सदस्यता नहीं मिलेगी. लेकिन सक्रिय और तेज़दिमाग पिता अजीत जोगी ने उच्च कमान को इस कदर आश्वस्त किया कि अमित के मरवाही विधायक होने की संभावना साकार होने जा रही है.

मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के पुत्र अभिषेक की राजनीति में पारी की शुरुआत होने की खबरें थीं. ऐन वक्त पर पिता ने किसी सुविचारित रणनीति के तहत पुत्र की सियासी यात्रा को हरी झंडी नहीं दिखाई.

छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीसियों उदाहरण मिलेंगे जब पिता का सरोकार पुत्र के राजनीतिक भविष्य को लेकर गहराता रहा है. यही हाल पूरे देश का भी है. राजनीति में पुत्र-स्नेह और पुत्र-मोह के बीच वह पतली विभाजक रेखा है कि नट और नटी भी उस पतले तार पर चल नहीं सकते जैसा सियासतदां आसानी से कर लेते हैं.

छात्रावास में बैठे विद्यार्थी फिल्मी गीतों में ‘आप‘ शब्द की जगह ‘बाप‘ कहकर एक के बाद एक मुकाबले में गाते जा रहे थे. अद्भुत पिता-फलसफा झरने लगा. मसलन ‘पड़ गईं मुझ पर बाप की परछाइयां‘, ‘बाप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया‘,‘करवटें बदलते रहे सारी रात हम, बाप की कसम‘, ‘बाप की नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे‘. एक छात्र को सर्वश्रेष्ठ पुत्र होने का खिताब मिला, उसने गाया था.‘बाप यूं ही अगर मुझसे मिलते रहे, देखिए एक दिन प्यार हो जाए ना‘.

राजनीति में पुत्रमोह के आरोप के मुख्य किरदार धाकड़ समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनवा दिया. अखिलेश की परिपक्वता को लेकर सियासी हलकों में आशंकाएं हैं. राजद सुप्रीमो लालू यादव सज़ायाफ्ता हो जाने के कारण पुत्रों को राजनीति में उत्तराधिकार देने पर सक्रिय बताए जाते हैं. डी.एम.के. पुरोधा करुणानिधि के दो पुत्र उत्तराधिकार को लेकर मुगलिया शैली में जूझ रहे हैं.

ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एक छत्र नेता बीजू पटनायक के पुत्र होने के कारण सत्ता पर लगातार काबिज़ हैं. इस बार फारुख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन पुत्र उमर अब्दुल्ला ने उन्हें दिल्ली दरबार का गुलदस्ता बना दिया. जितेन्द्र प्रसाद, राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया, शीला दीक्षित, हेमवतीनन्दन बहुगुणा, देवेगौड़ा वगैरह शीर्ष नेताओं के वंशजों को पहले ही राजनीतिक टेस्ट मैच में सेंचुरी बनाने का मौका मिला है.

मध्यप्रदेश के हालिया चुनावों में निर्वासित पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पुत्र जयवर्धन सिंह को सियासत और संबोधन के उच्चारण की विरासत सौंप दी है. अर्जुन सिंह के पुत्र होने के कारण अजय सिंह का राजनीति में दबदबा है. यह अलग बात है कि अर्जुन सिंह में जो फितरतें थीं, वे उनके साथ ही चली गईं.

राजनीतिक इतिहास में महात्मा गांधी सबसे निर्मम पिता रहे हैं. उन्होंने पुत्रों को प्रताड़ित ही किया. जवाहरलाल नेहरू ने इकलौती संतान इन्दिरा गांधी को प्रशिक्षित किया, लेकिन उनके नेतृत्व को लोकतंत्र पर नहीं थोपा. इन्दिरा गांधी अपने दमखम पर देश की नेता बनीं. पुत्र मोह में पड़ने के कारण आपातकाल लगाने के बाद इन्दिरा गांधी को संजय पर निर्भर रहना पड़ा. संजय की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने बड़े बेटे राजीव को सहारा बनाया. राजीव गांधी का दुर्भाग्य था कि असमय ही हत्या का शिकार हुए. बहुत नानुकुर के बाद उनके बेटे राहुल ने कांग्रेस के भार को अपने कंधों पर उठाने का जोखिम लिया है. राजीव गांधी ने राहुल गांधी की कोई ट्रेनिंग नहीं की क्योंकि उन्हें अपनी मौत का अंदेशा नहीं था.

भाजपा में पिताओं की पुत्र मोह की कहानियां बहुत नहीं हैं. शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली वगैरह को लेकर अफवाहें नहीं हैं. अलबत्ता भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह इस बीमारी के शिकार कहे जाते हैं. हिन्दू राष्ट्रवाद के साथ यह अच्छा है कि उसके बहुत से नेता साधु, सन्यासी या अविवाहित भी होते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी ने बमुश्किल एक गोद लिया दामाद ही ढूंढ़ा. वह उन्हें बदनाम कराता रहा.

उमा भारती सन्यासिनी होकर भी परिवार मोह से अछूती नहीं रहतीं. कम्युनिस्ट पार्टी माक्र्सवादी के केन्द्रीय नेता प्रकाश करात पर भी धर्म पत्नी वृन्दा करात को पोलित ब्यूरो की पहली महिला सदस्य बनाने का आरोप है. मुख्यमंत्रित्व के सचिन तेंदुलकर रहे कॉमरेड ज्योति बसु का बेटा सियासत का व्यापार करने के बदले व्यापार की सियासत में फंसा रहा. नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव जैसे समाजवादियों को इन झंझटों की राह से नहीं गुजरना पड़ा.

पत्रकारिता में भी पुत्र मोह ने कई प्रकाशन संस्थानों का कबाड़ा किया है. ‘टाइम्स आफ इन्डिया‘ की अप्रतिहत स्थिति में ऊंचनीच होती रही. अमर साप्ताहिक ‘दिनमान‘ का गुम हो जाना पारिवारिक दुर्घटना का राष्ट्रीय नुकसान में तब्दील होना है. ‘माया‘, ‘मनोहर कहानियां‘, ‘मनोरमा‘ और ‘मनमोहन‘ जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं के संस्थापक क्षितीन्द्र मोहन मित्र के पुत्रों ने लड़झगड़कर तहस नहस कर दिया. कोलकाता से प्रकाशित ‘संडे‘ और ‘रविवार‘ पत्रकारिता के कीर्ति स्तम्भ थे. उन लाइट हाउसों की रोशनी वंशज पीढ़ी ने बुझा दी.

महात्मा गांधी के पुत्र देवदास गांधी ‘हिन्दुस्तान टाइम्स‘ के संपादक थे. राष्ट्रीय कीर्ति का यह अखबार परिवार कलह में धूमिल होता गया. मील के पत्थर रामनाथ गोयनका से ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ के वंशजों ने अलबत्ता संघर्ष करते रहने के शऊर सीखने की कोशिशें जारी रखीं. उन्हें खलता यही था कि अरुण शौरी जैसा तेज़तर्रार लेखक गोयनका का मानस-पुत्र क्यों प्रचारित किया जाता है. एक शोध के अनुसार कई पुत्रों ने माता-पिता से अव्यक्त मुकाबले या नफरत तक के कारण दुनिया में क्रांतियां की हैं. इनमें माओ त्से तुंग, जवाहरलाल नेहरू, लॉर्ड क्लाइव और विश्वप्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन के नाम शामिल हैं.

फिर लौटें छत्तीसगढ़ की ओर. शीर्ष लेखक और कांग्रेसी महासचिव श्रीकांत वर्मा के पुत्र ने पिता के प्रश्रय का नाजायज़ फायदा उठाया कि वह शीर्ष खलनायक बना हुआ है. रश्मि देवी सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, मानकूराम सोढ़ी, अरविन्द नेताम, धनेश पाटिला, सत्यनारायण शर्मा, भवानीलाल वर्मा, बोधराम कंवर, ई. राघवेन्द्र राव, बलराम सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र बहादुर सिंह, एम.एस. सिंहदेव जैसे अनेक छोटे बड़े नामों की कथाओं में अपनी संतानों के लिए प्रेम झलकता है. यद्यपि वह स्वाभाविक गुण है.

पूर्व भाजपा नेता करुणा शुक्ला के विकास का आधार अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी होना बताया जाता रहा. वाजपेयी खराब स्वास्थ्य के चलते हाशिए पर हैं. करुणा शुक्ला को हाशिए पर डालकर उनका राजनीतिक स्वास्थ्य खराब कर दिया गया. पीढ़ियों का उत्तराधिकार तो अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का भी रहा है. पिता होना पुत्र के प्रति स्नेह या मोह रखने के अतिरिक्त कर्तव्य भावना से भी है.

अद्भुत पिता सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय को बुरी आदतों से निकालने के लिए प्रणम्य आचरण किया. अमिताभ बच्चन जैसा अभिनेता अपने पुत्र अभिषेक के लिए हर वक्त वटवृक्ष की तरह तना रहता है. अपने पुत्र को मिट्टी का लोंदा समझकर उसकी दुर्लभ कालजयी मूर्ति बनाना छत्तीसगढ़ की धरती में एक पिता को इतिहास में सबसे ज़्यादा नसीब हुआ है. यह वकील विश्वनाथ दत्त थे जिन्होंने अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से भी समय निकालकर संचार साधनों के अभाव में भी लगातार सिखाते पढ़ाते नरेन्द्रनाथ दत्त को विवेकानन्द में तब्दील करने की प्राथमिक पाठशाला का प्रमाणपत्र हस्ताक्षरित किया था.

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