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छत्तीसगढ़: फौजी की जमीन कंपनी को दी

कोरबा | अब्दुल असलम: भूतपूर्व सैनिक के द्वारा मांगी गई ज़मीन को प्रशासन ने किसी कंपनी को दे दी है. जिसका नतीजा है कि रिटायर्ड जवान को 4 साल से भटकना पड रहा है. नाराज कारगिल योद्धा प्रेमचंद पांडेय एक बार फिर आमरण अनशन पर बैठ गए हैं.

उनका कहना है कि पिछले 4 साल से जमीन के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटने के बाद भी अब तक उन्हें अपने हक की जमीन नहीं मिल सकी है. इधर दूसरी ओर कटघोरा तहसीलदार ए के मार्बल के मुताबिक प्रेमचंद पाण्डेय की मांगी गई ज़मीन का भूअर्जन किसी कंपनी ने कर लिया है अब वो फिर से कोई ज़मीन तलाश कर देंगे तो आबंटन की कार्रवाई पूरी की जाएगी.

दर्री बरॉज के कंट्रोल रूम के पास निवासरत भूतपूर्व सैनिक प्रेमचंद पांडेय की भर्ती वर्ष 1996 में हुई और वर्ष 2013 में रिटायर हुए. कायदों के अनुसार उन्हें 5 एकड़ जमीन रोजगार की दृष्टि से उपलब्ध कराया जाना था. इसके लिए उन्होंने वर्ष 2011 में कलेक्टोरेट में आवेदन प्रस्तुत किया. पहले तो प्रशासन सरकारी भूमि उपलब्ध नहीं होने की बात कह टालमटोल करता रहा. किसी तरह प्रेमचंद पांडेय ने खुद की कोशिश से चोरभट्ठी के निकट 5 एकड़ राजस्व भूमि तलाशी और इसका ब्योरा प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत किया. तब एनओसी लेकर आने का फरमान सुना दिया गया.

सीएसईबी, वन विभाग व एनटीपीसी समेत 7 सरकारी विभागों का चक्कर काटकर किसी तरह एनओसी प्राप्त कर इसे कलेक्टोरेट में प्रस्तुत किया गया. इसके बाद भी भूमि आवंटित नहीं की गई. इससे नाराज होकर 24 अगस्त, 2013 को वो सुभाष चैक में आमरण अनशन पर बैठ गए. तीन दिन बाद 27 अगस्त को प्रशासन की पहल पर डिप्टी कलेक्टर ने जूस पिलाकर अनशन तोड़वाया, तब जल्द ही जमीन आवंटित कर दिए जाने का आश्वासन दिया गया था.

उन्होने बताया कि उसके बाद से अब तक किसी तरह की कोई प्रशासनिक पहल नहीं हुई. हैरत की बात ये है कि ज़मीन को लेकर लगाए गए आवेदन के बावजूद प्रशासन ने फौजी को प्राथमिकता न देते हुए उस ज़मीन को किसी दूसरी कंपनी को आंबटित कर दिया. इसकी जानकारी आज तक प्रेमचंद पाण्डेय को नहीं है.

उन्होने बताया कि यथित होकर मैंने कलेक्टर को अनशन की जानकारी देते हुए 21 अक्टूबर को धरना की अनुमति मांगी थी. 22 अक्टूबर को प्रेमचंद पांडेय दर्री बरॉज कंट्रोल रूम के पास सीमेंट गोदाम के निकट धरने पर बैठ गए. सरकारी जमीन पर धरने की अनुमति नहीं होने की बात कहते हुए एसडीओ केएल शर्मा ने उन्हें स्थान खाली करने कहा. उसके बाद 23 अक्टूबर को प्रेमचंद पांडेय दर्री के ध्यानचंद चौक में आमरण अनशन शुरू कर दिया है.

उनका कहना है कि या कि केंद्र सरकार भूतपूर्व सैनिकों को जमीन देने की योजना को बंद कर दे या फिर भटक रहे तमाम भूतपूर्व सैनिकों को शीघ्र जमीन उपलब्ध कराए, ताकि सभी रोजगार से जुड़ सकें.

प्रेमचंद पांडेय की तोपची के रूप में पदस्थापना श्रीनगर एटमांटेडड्यू में रही. इस दौरान हुए कारगिल युद्ध में उन्हें भेजा गया था. उनका कहना है कि देश की रक्षा करने वाले सेना के जवानों को आज प्रशासन अफसरों की लापरवाही की वजह से दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है. अकेले कोरबा की बात करें तो दो दर्जन भूतपूर्व सैनिक जमीन के लिए आवेदन लगाकर भटक रहे हैं.

वर्ष 2011 से किसी भी भूतपूर्व सैनिक को जमीन का आवंटन नहीं किया गया है. उनका कहना है कि इससे पहले भी प्रशासन ने झूठा आश्वासन देकर मेरा आमरण अनशन समाप्त कराया था, पर इस बार ऐसा नहीं होने दूंगा, चाहे जान चली जाए. जब तक ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा, अन्न-जल को हाथ नहीं लगाऊंगा. यह आंदोलन न केवल स्थानीय प्रशासन के खिलाफ है, बल्कि केंद्र में कानून बनाने के खिलाफ भी है.

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