छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ से गायब हो रही मछलियां

रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में पर्यावरण परिवर्तन का असर मछलियों की प्रजातियों पर पड़ रहा है. यही वजह है कि राज्य के धमतरी जिले में स्थित रविशंकर जलाशय (गंगरेल बांध) में पाई जाने वाली 45 प्रजातियों की मछलियों में से दो का अस्तित्व खत्म हो गया है. गंगरेल बांध में अच्छे बाजार मूल्य वाली चीतल (नोटोपटेरस) एवं कुबड़ी (माइसटस आर) प्रजाति की मछलियां 2005 से दिखाई नहीं दे रही हैं. मत्स्य विभाग के लिए यह गंभीर चिंता का विषय बना गया है.

बताया जाता है कि मछलियों की दोनों प्रजातियां अब सिर्फ तांडुला बांध में ही मौजूद है. महानदी जलाशय परियोजना के अंतर्गत गंगरेल, दुधावा, माड़मसिल्ली, सोंढूर बांध के संग्रहीत जल में मछलियों की 45 प्रजातियां पाई जाती है. जलवायु में बदलाव एवं आखेट से यहां की मछलियां खतरे में हैं.

वैज्ञानिकों की चेतावनी को मत्स्य विभाग ने गंभीरता से नहीं लिया, तो भविष्य में और भी संकट आ सकता है. खत्म हुई इन दोनों प्रजातियों की मछलियों का बाजार मूल्य काफी बेहतर था. वर्ष 2005 के सर्वेक्षण में इन मछलियों की मौजूदगी नहीं पाई गई.

सूबे के धमतरी जिले में पदस्थ सहायक मत्स्य अधिकारी एस.के. साहू ने बताया कि चीतल और कुबड़ी प्रजाति की मछलियों के खत्म होने के पीछे पानी का प्रदूषण, वातावरण में बदलाव, तापमान का प्रभाव एवं जाल चलाने का तरीका प्रमुख कारण है.

उन्होंने बताया कि महानदी में मछली पकड़ने के लिए छोटे जाल का उपयोग नहीं करना चाहिए. इससे मछलियों के अंडे एवं स्पॉन खत्म हो जाते हैं. प्रजनन काल में आखेट करने से मछलियों का प्राकृतिक आवास भी प्रभावित होता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, विश्व में 21 हजार 723 प्रजाति की मछलियां पाई जाती हैं. इसमें से 8,411 मीठे पानी में व 11,750 समुद्री जल में पाई जाती है. भारत में मछली की 2,500 प्रजातियां पाई जाती है. मीठे पानी में 930 और समुद्री जल में 1,570 प्रजाति पल रही हैं.

छत्तीसगढ़ में मछली की 107 प्रजातियां पाई जाती हैं. रविशंकर जलाशय में 45 प्रजाति की मछलियां हैं. इनमें प्रमुख रूप से कतला, मृगाल, रोहा, बाटा, कुरसा, कालपोस, बोराई, चिलघटी, कोतरा, कोतरी, रांगी, सरांगी, जरहीकोतरी, डरई, सिंघार, टेंगना, बाम बांबी, पढीना आदि शामिल हैं.

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