छत्तीसगढ़बस्तर

माओवादियों ने मांगी माफी

रायपुर | संवाददाता: माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में कर्मचारियों की मौत पर सार्वजनिक माफीनामा जारी किया है. सीपीआई माओवादी के दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी के नाम से जारी इस माफीनामा में कहा गया है कि मतदान दल पर हमला पुलिस होने की ग़लतफ़हमी में हुई है और इसे मानवाधिकार हनन की घटना के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के पहले दौर में शनिवार को माओवादियों ने दो बड़े हमले किये थे. माओवादियों के चुनाव बहिष्कार के बीच पहला हमला बीजापुर ज़िले में मतदान दल पर हुआ था, जिसमें सात लोग मारे गये थे. यह मतदान दल 10 अप्रैल को बस्तर में लोकसभा चुनाव का काम संपन्न करा कर लौट रहा था. जबकि दूसरा हमला बस्तर के दरभा के पास स्वास्थ्य विभाग के 108 संजीवनी एंबुलेंस पर हुआ था, जिसमें सीआरपीएफ के छह जवानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई है.

माओवादियों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि “हमारी इस चूक की वजह से घटना में मृत 7 शिक्षक-कर्मचारियों के परिवारजनों को अपूरणीय क्षति पहुंची है, जिसकी हम कोई भरपाई नहीं कर सकते हैं. हम यह भी जानते हैं कि ग़लती कहने और माफी मांगने मात्र से दिवंगत शिक्षक-कर्मचारी वापस नहीं आ सकते. हम सिर्फ यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि मृत शिक्षक व कर्मचारी हमारी पार्टी के दुश्मन नहीं थे और न ही हमने उन्हें जानबूझकर मारा. यह असावधानी और धोखे से हुई दुर्घटना है.”

अपने बयान में गुड्सा उसेंडी ने पुलिस द्वारा सिविल वाहनों के इस्तेमाल व पुलिस द्वारा गाड़ियां बदलना जैसी घटनाओं का उल्लेख करते हुये कहा है कि यह गलती अनजाने में, गलतफहमी व जल्दीबाजी में हमारी ओर से यह चूक हुई है. बयान में माओवादी प्रवक्ता ने इसे गंभीरता से लेते हुये पूरे मामले की गहराई से जांच पड़ताल करके नतीजों पर आधारित होकर आवश्यक कार्रवाई करने की बात कही है, जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो.

माओवादी नेता ने अपने बयान में कहा है कि “हमारी ओर से शिक्षक-कर्मचारियों को जानबूझ कर निशाना बनाने का सवाल ही नहीं उठता. यह जगजाहिर है कि शिक्षक-कर्मचारी, व्यापारी, छोटे दुकानदार, जिन्हें पेटी बुर्जुआ वर्ग कहते हैं; हमारे नवजनवादी संयुक्त मोर्चे के चार वर्गों में से हैं. ये हमारे मित्र वर्ग के हैं. ऐसे में इन पर हमले के बारे में हमारा कोई भी कैडर सोच भी नहीं सकता है.”

हालांकि इस हमले की सरकार द्वारा की जाने वाली आलोचना से नाराज माओवादियों ने कहा है कि “जल, जंगल, ज़मीन पर अपने अधिकार, अपने अस्तित्व व अस्मिता के लिये संघर्षरत जनता पर नाजायज युद्ध-ऑपरेशन ग्रीनहंट थोपने वालों को हमारी गलती पर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है. ढाई साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बूढ़ों तक को मारने वाले, एड़समेट्टा, सारकेनगुडा जैसे दसियों नरसंहार करने वाले, महिलाओं का सामूहिक बलात्कार व हत्या करन वाले, घरों-गांवों को जलाने वाले, ग्रामीणों की बेदम पिटाई करने वाले, अवैध गिरफ्तारियां करके फर्जी केसों में जेल भेजने वाले, बिना या फर्जी गवाही पर लंबी सजाएं देने वाले ही असली उग्रवादी हैं. देश की संपदाओं को बहुरष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने वाले ही असली देशद्रोही हैं.”

माओवादी नेता ने चुनाव को लेकर कहा है कि “संघर्ष इलाकों में मतदान कराने के लिए शिक्षक-कर्मचारियों को निलंबन या बर्खास्तगी का डर दिखाकर उनके विरोध के बावजूद एवं उनकी मर्जी के खिलाफ जबरन भेजा जाता है. सबसे बड़े लोकतंत्र के नाम पर अलोकतांत्रिक ढंग से चुनाव कराये जाते हैं.”

अपने चुनाव बहिष्कार को सही साबित करते हुये इस बयान में गुड्सा उसेंडी ने कहा है कि “बहिष्कार के अपने जनवादी अधिकार से जनता को वंचित रखने के तहत ही यह सब किया गया है. ऐसी स्थिति में चुनाव बहिष्कार के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने जनता के सामने प्रतिरोध का रास्ता चुनने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं है.”

पुलिस बल को लेकर भी माओवादी नेता ने टिप्पणी की है कि “पुलिस, अर्ध-सैनिक बल व सेना के जवान एवं छोटे अधिकारी भी वर्गीय आधार पर हमारे दुश्मन नहीं है और न ही उनके साथ हमारी कोई जाति दुश्मनी है. लेकिन शोषक-शासक वर्गो के राज्ययंत्र के हिस्से के तौर पर प्रत्यक्ष रूप से हमारे खिलाफ युद्ध के मैदान में उतरने के कारण ही हम मजबूरन उन्हें निशाना बनाते हैं.”

माओवादी नेता ने कहा है कि “सशस्त्र बलों की भारी तैनाती के बगैर जनवादी माहौल में यदि चुनाव कराये जाते हैं तो इस तरह की घटनाओं के लिए कोई जगह ही नहीं रहेगी.”

इस माफीनामें में गुड्सा उसेंडी ने शिक्षक-कर्मचारियों व पत्रकारों से अपील की है कि “वे पुलिस वाहनों में, पुलिस के साथ, पुलिस के द्वारा इस्तेमाल वाहनों पर सफर न करें. साथ ही हम निजी वाहन मालिकों से अपील करते हैं कि वे संघर्ष इलाकों में पुलिस को लाने-ले जाने का काम न करें, अपने वाहनों में न बैठायें, अपने वाहनों को पुलिस विभाग के लिए किराये से न दें.”

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