छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: मनरेगा फेल, पलायन जारी है

रायपुर | एजेंसी: अल्प वर्षा से पीड़ित किसान छत्तीसगढ़ से पलायन कर रहें हैं. उन्हें मनरेगा के तहत भी रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. इस कारण से उनके पास जीविका चलाने के लिये दिगर राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है. उल्लेखनीय है कि रोजगार की तलाश में दिगर राज्यों में जाने वाले कईयों को वहां बंधक बना लिया जाता है. छत्तीसगढ़ के कई जिलों में खेती-किसानी में जमा पूंजी के बर्बाद हो जाने के बाद उम्मीद खो चुके किसानों को मनरेगा से भी अब कोई आस नहीं रह गई है. कम वर्षा के कारण अपना 50 फीसदी फसल खो चुके सूबे के कई किसान जीवनयापन के लिए दूसरे राज्यों की ओर कूच करने लगे हैं.

राजधानी से लगे बलौदाबाजार जिले में प्रारंभ हो चुके पलायन को मनरेगा भी नहीं रोक पा रहा है, क्योंकि मनरेगा का कामकाज करने वाले ग्रामीण श्रमिकों का अब तक तीन करोड़ 32 लाख 96 हजार रुपये का भुगतान बकाया है. ऐसे में नियमित भुगतान न होने के कारण ग्रामीण अन्य राज्यों में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. जिले में मनरेगा के तहत 48 ग्राम पंचायतों में 785 श्रमिक कार्य में लगे हैं.

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले की एपीओ अंजू भोगामी का कहना है कि जिले में सवा तीन करोड़ रुपये का भुगतान आवंटन के अभाव में नहीं किया जा सका है. इसके लिए राज्य शासन को प्रस्ताव भेजा गया है. राशि मिलने के बाद भुगतान कर दिया जाएगा.

ग्रामीणों द्वारा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन को रोकने के साथ ही गांव में रोजगार मुहैया कराने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पलायन रोकने में कारगर सिद्ध नहीं हो रही है. पिछले कुछ वर्षो से ग्राम पंचायतों में मनरेगा के कार्यो में गड़बड़ी के कई मामले भी उजागर हुए हैं.

ग्राम पंचायतों द्वारा फर्जी श्रमिकों के मस्टररोल व जॉब कार्ड, फर्जी कार्यो की सूची सहित करोड़ों रुपये की गड़बड़ी सचिव व रोजगार सहायक के साथ मिलकर किए जाने के मामले सामने आ चुके हैं. इस मामले की जांच भी हुई है, मगर कार्रवाई अब भी ठंडे बस्ते में है.

वर्तमान में जिले की 611 ग्राम पंचायतों में से मात्र 48 ग्राम पंचायतों में मनरेगा का काम हो रहा है. इसके तहत शौचालय निर्माण कराया जा रहा है.

एक परिवार को साल में 150 दिन काम दिया जाना है, मगर ज्यादातर पंचायतों में काम ही शुरू नहीं हो सके हैं. बकाया भुगतान नहीं होने से लोग मनरेगा का काम करने से परहेज कर रहे हैं. मनरेगा के तहत जिले को 10 करोड़ 619 लाख 91 हजार रुपये व्यय करने का लक्ष्य मिला है. मगर अब तक सिर्फ दो करोड़ 68 लाख रुपये ही खर्च हो पाए हैं.

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