प्रसंगवश

पीएम के नाम एक पाती…

संजय पराते
वेलडन साहब, क्या बात कही है!!! हम ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते, बन्दूक का जवाब गोली से नहीं देते या गोली का जवाब बन्दूक से नहीं देते, हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं, बन्दूक छोड़कर नक्सली पीड़ित बच्चों के साथ पांच दिन रहकर देखे…आदि-इत्यादि!! याद नहीं आता कि सलमान ने भी अपनी किसी फिल्म में ऐसे धांसू डायलाग मारे हो!!!

बस, थोड़ी-सी कसर रह गयी. अपहृतों को छुड़ाने पहुंच जाते बिना किसी गोली-बन्दूक-पत्थरों के नक्सलियों के पास, तो मज़ा ही आ जाता. गरियाने वालों की नानी बंद हो जाती. हम छाती ठोंककर कह सकते थे, देखो केजरीवाल एक गजेन्द्र को नहीं बचा पाया, हमारा हीरो सैंकड़ों आदिवासियों को छुड़ा लाया एक झटके में. इसे कहते हैं 56 इंच की छाती!! उनकी बोलती तो तब भी बंद कर सकते थे साहब, जब नया रायपुर में पंडाल बनाने वाले विनय मित्तल नाम के कमीशनखोर के खिलाफ एफआइआर करके तुरंत गिरफ्तार करवा देते. 69 पुलिस वाले और मजदूर जीवन के लिए मौत से संघर्ष कर रहे हैं और एक बेचारा तो बिना ईलाज, बिना सराकारी मदद तो मर ही चुका है और यह पट्ठा उन्हें मदद पहुँचाने के बजाय भाग निकला. अब विपक्ष को चिल्लाने का मौका मिल गया न कि श्रम कानूनों का पालन करना तो दूर, मित्तल साहब इन मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रहे थे, और वह भी मंत्रियों और अधिकारियों की नाक के नीचे. ऐसे में आपका सीना भले चौड़ा बना रहे, हमारा सीना तो थोडा सिकुड़ ही जाता है न!! पता तो ये भी चला है कि ये वाले मित्तल साहब हमारे सुधांशु मित्तल के कोई रिश्तेदार ही है और इस मित्तल साहब के समान ही वो मित्तल भी हमारी दस करोड़ी पार्टी के दस नम्बरी मेंबर है. क्या यह सही है?.. . खुल्लमखुल्ला न सही, तो हमारे कान में तो बता ही दें, हम लोग किसी को बताने थोड़े ही जायेंगे. वैसे भी पार्टी सदस्यों के बीच पारदर्शिता तो रहना ही चाहिए, उन्हें एक-दूसरे को पहचानना ही चाहिए, ताकि वक्त जरूरत लेन-देन के समय इस सदस्यता का कुछ फायदा तो मिले. वैसे इतना तो हमें मालूम है कि रायपुर के भारत किराया भंडार वाला भी हमारा ही रिश्तेदार है.

वैसे एक बात समझ नहीं आई कि नक्सलियों को ऐसी बेतुकी सलाह क्यों दे डाली? इससे ऐसा नहीं लगता है कि वे शहरों में हमारे साथ ही रहते है… और यदि वे जंगलों में ही रहते हैं तो आदिवासियों के साथ ही तो रहते होंगे. हां, उन्हीं आदिवासियों के साथ, जिनको पकड़-पकड़ कर हमारे बहादुर आईजी कल्लूरी साहब आत्म-समर्पण करवा रहे हैं और फिर गांव भिजवा रहे हैं. उनकी बहादुरी के जोश में तो अपने कई भाजपा कार्यकर्त्ता भी चपेट में आ गए और उनका भी समर्पण हो गया और इसी से पूरी पोल-पट्टी भी खुल गई. बहादुरी दिखाने के लिए कोई अपनों पर ही वार करता है भला!! लेकिन नक्सलियों को मारने के ठेके के लिए तो हमने अपने दिल पर पत्थर रखकर समझा लिया कि गेहूं के साथ तो घुन पिसता ही है. सलवा-जुडूम का माल खाना है तो कुछ करके तो दिखाना ही होगा.

वैसे इन ‘जुडूम’ वालों ने भी कुछ कम जुल्म नहीं ढाया है इन आदिवासियों पर. उनके घर जलाए, बलात्कार किये, हत्याएं कीं, उन्हें अपने गांवों से विस्थापित कर आपके शिविरों में धकेला और उनके राशन-पानी का ठेका अपने सिर लिया. अगर ‘जुडूम’ वालों को साहब आप कहते कि पीड़ित आदिवासियों के बीच, उनके बाल-बच्चों की हाय के साथ पांच दिन काटे, तो इसका ज्यादा असर होता. इससे लगे हाथों अपने संघ के ‘हिन्दू दर्शन’ का प्रचार भी कर आते पूरी सरकारी सुरक्षा के साथ…हम भी बता आते कि बिना पत्थरों के ईंट का जवाब कैसे दिया जाता है!! लेकिन हाय आपने ये मौका ही हमें नहीं दिया, इस काबिल ही हमें नहीं समझा कि बिना गोली के बंदूकों से जवाब दे सकें और पूरी दुनियां को इस विश्व के सबसे बड़े शांति-अभियान के बारे में फिर से बता सके.

वैसे कर्माजी की आत्मा फिर जाग रही हैं. कहते भी हैं कि मनुष्य का शरीर मरता है, विचार नहीं. फिर शांति-अभियान के चलने के किस्से सुनाई में आ रहे हैं. अच्छी बात है, लेकिन इस बार हमको न भूलना. हम भी बता देंगे कि महात्मा गांधी से बड़े शांति प्रेमी हम ही है. बड़े शांति प्रेमी के सामने दूसरा तो छोटा शांति प्रेमी ही होगा और हर छोटा शांति प्रेमी ज्यादा हिंसक ही होगा. मतलब, गांधीजी हिंसक थे, और हमसे ज्यादा हिंसक तो थे ही. वैसे भी इसका उदाहरण देने की हमें क्या जरूरत है कि देश में शांति स्थापना में हमारा योगदान कितना है!! हमने बंजारे से लेकर बजरंगी और कोडनानी तक सबको जमानत पर बाहर करके दंगा पीड़ितों की सेवा में लगा दिया है. इस सेवा की असर से गोधरा में आग लगाने वाले आज सर्वत्र ‘शांति-शांति’ का यज्ञ कर रहे हैं. हिंसकों को अहिंसक बनाना कोई हमसे सीखे!!!

तो साहब, हमारा एक साल पूरा होने वाला है और पूरे होते साल में कोई धमाका न होता, तो किसी को क्या पता चलता कि हम एक साल के हो गए हैं. अभी तो बहुत काम करना है. 24 हजार करोड़ का सौदा हुआ है, तो हमारे बाल-बच्चों को भी 24 पैसे कमाने का मौका मिलेगा. कुछ कमाई होगी, तो देश का विकास होगा, देश का विकास होगा तो कुछ पार्टी फण्ड भी बनेगा. वर्ना तो लोग चिल्ला ही रहे हैं कि हम बंदूकों के दम पर जमीन लूट रहे हैं, ये नहीं देख रहे हैं कि इन बंदूकों में गोलियां नहीं हैं. चिल्लाने वाले चिल्ला रहे हैं कि फसल का भाव नहीं मिल रहा है, ये नहीं देख रहे हैं कि हम जमीन का भाव बढ़ा रहे है. चिल्लाने वाली जनता है और जनता का क्या? आखिर 69% ने तो हमें वोट ही नहीं दिया!! सत्ता तो मिली हमें अडानी-अंबानी-टाटाओं की मदद से. आगे भी टेका तो वे ही देंगे. पार्टी सही लाइन पर चल रही है, इसे मजबूती से पकड़कर रखना. थोडा कहा, बहुत-बहुत समझना…

आपका एक अदना-सा कार्यकर्त्ता, चना-मुर्रा खाकर चाय बेचने वाला….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!