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छत्तीसगढ़ में जजों को माओवादी धमकी

रायपुर | संवाददाता: माओवादियों ने इस बार छत्तीसगढ़ के जजों को चेतावनी दी है. एक बयान में माओवादियों के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने कहा है कि “बिना ग़वाही, फ़र्ज़ी या पुलिसिया ग़वाही के आधार पर लंबी सज़ाएं सुनाने वाले जन विरोधी जजों को हम सावधान करते हैं कि वे जन अदालतों में सज़ा भुगतने को तैयार रहें.”

माओवादी प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने कहा है कि जेल बंदियों पर अत्याचार करने वाले भ्रष्ट जेल अधिकारियों और उनके दलाल नंबरदारों को हम चेतावनी देते हैं कि वे अपने व्यवहार को सुधारें वरना जन अदालत में गंभीर सज़ा भुगतने को तैयार रहें.

इस विज्ञप्ति में माओवादियों ने विस्तार से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के निर्णयों की भी आलोचना की है. अभी तक माओवादी पत्रकारों को धमकाते रहे हैं, उनकी हत्या करते रहे हैं. लेकिन इस बार माओवादियों ने सीधे-सीधे न्यायपालिका पर हमला बोला है.

गुड्सा उसेंडी ने अपने बयान में कहा है कि बड़े पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बड़े बांधों, कारखानों और खनन परियोजनाओं के लिए जनता की ज़मीन और जंगल हड़पने की कोशिश की जाती है. इससे होने वाले विस्थापन के विरोध में जारी जन संघर्षों और प्रगतिशील जनवादी आन्दोलनों के दौरान जबरन गिरफ़्तार करके फ़र्ज़ी मुक़दमों में फंसाकर जेलों में बंद करने का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है.

इस बयान में कहा गया है कि “ छत्तीसगढ़ की पांचों केन्द्रीय कारागारों, जिला जेलों व उप जेलों में हजारों लोग बंद हैं. इनमें से अत्यधिक लोग आदिवासी हैं. हमारे आन्दोलन के उन्मूलन के लिए जारी देश व्यापी चैतरफा सैनिक हमले के तहत राज्य के संघर्ष इलाकों में दसियों हजार अर्ध-सैनिक बलों को तैनात करते हुए, राज्य पुलिस बलों को लगातार बढ़ाते हुए कार्पेट सेक्युरिटी का लगातार विस्तार किया जा रहा है. नये पुलिस थानों व कैम्पों को स्थापित किया जा रहा है. गांवों पर लगातार हमलें, अवैध गिरफ्तारियां, फर्जी केसें, झूठी व पुलिसिया गवाही के आधार पर लंबी व उम्र कैद की सजाएं देना बेरोकटोक जारी है.“

बयान में कहा गया है कि “साल 2007 में गिरफ़्तार हमारी महिला कामरेड निर्मला जो कि जगदलपुर जेल में बंद हैं, उनके ऊपर 145 केस लगाए गए थे. इनमें से अब तक 100 से ज़्यादा मामलों में वह बरी हो गर्इ हैं. इसमें लगभघ सात साल का समय लग गया. इस एक उदाहरण से यह स्पष्ट है कि सरकार माओवादियों को झूठे मामलों में किस तरह फंसा रही है.”

गुड्सा उसेंडी के इस बयान में कहा गया है कि “हमारी महिला कार्यकर्ता कॉ.मालती को सलवा जुडूम के अत्याचारों पर आधारित सीडी के वितरण के मामलें में बिना गवाही के ही 10 साल की सजा सुनाई गयी. जबकि कोर्ट में मालती के द्वारा सिडी बनाना न ही उसका वितरण करना साबित हुआ था. हथियारों से संबंधित एक और फर्जी मामले में झूठी व पुलिसिया गवाही पर हमारी महिला कार्यकर्ताएं मालती, मीना सहित स्वतंत्र पत्रकार प्रपुल्ल झा, बेगुनाह युवक- प्रतीक झा, सिद्वार्थ शर्मा को जबरन 7-7 साल की सजा दी गयी.“

बयान में कहा गया है कि “छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इनकी अपील को आंख मूंदकर खारिज किया है. बिलासपूर के दो व्यवसायी भाइयों व रायपुर के एक टेलर को जबरन 3-3 साल की सजा सुनायी गयी. हमारे कार्यकर्ता कॉ. रैनू, कॉ. मधु सहित दो ग्रामीणों को हत्या के एक फर्जी केस में कांकेर कोर्ट के द्वारा फर्जी गवाही पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी. मरकाम गोपन्ना उर्फ सत्यम रेड्डी, जयपाल रेड्डी सहित सैकड़ों लोग दसियों केसों में बरी होने के बावजूद बचे हुए मुकद्दमों के फैसले के इंतजार में हैं. बिना गवाही, फर्जी या पुलिसिया गवाही के आधार पर लंबी सजाएं सुनाने वाले जन विरोधी जजों को हम सावधान करते हैं कि कल की जन अदालतों में सजा भुगतने तैयार रहे.“

इस बयान में माओवादी नेता गुड्सा उसेंडी ने आरोप लगाया है कि “हमारे गिरफ्तार साथियों व संघर्षरत जनता को जबरन जेलों में सड़ाने की साजिश के तहत ही दसियों झूठे केसों में फंसाया जाता है. साथ ही एस्कार्ट न होने का बहाना करके पेशियों में लगातार नहीं ले जाया जाता है जिससे साधारण केसों में भी बरसों बंद रहना पड़ता है. सजा होने पर भी 6 महीने से 2-3 सालों में छूटने वालों को भी इस तरह 5- 6 साल जबरदस्ती बंद रखा जाता है. चार्ज शीट पेश करने में देरी करने से लेकर पेशी में न ले जाने एवं छुटने के बावजूद जेल गेट से ही दोबारा गिरफ्तार करके झूठे व नये केसों में फंसाया जाता है. भिलाई से गिरफ्तार महिला कामरेड पद्मा को बाइज्जत बरी होने के बावजूद फिर से केस लगा कर जगदलपुर जेल में बंद किया गया है.“

माओवादियों ने कहा है कि “ संघर्ष इलाकों में जारी अवैध व बेरोकटोक गिरफ्तारियों के चलते यहां की जनता खासकर आदिवासी युवाओं से जेलें पट पड़ी हैं. 110, 109, 151 धाराओं के तहत सैकड़ों आदिवासी युवाओं को जेलों में सालों सड़ाया जा रहा है. क्षमता से काफी अधिक संख्या में-दोगुने, तीन गुने, कहीं – कहीं तो चार गुने संघर्षरत जनता को जेलों में ठुंसा जा रहा है. छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र की जेलों की अव्यवस्था व असुविधाओं का आलम यह है कि वहां आमानवीय, दयनीय व पाशविक परिस्थितियां बनी हुई हैं. जेलें दर असल दमनकारी राज्य यंत्र का ही हिस्सा हैं. जेलों को सुधार गृह कह कर प्रचारित करना न सिर्फ बेमानी है बल्कि संघर्षरत इंसानों को तोड़ कर रख देने के शासक वर्गों की साजिश पर परदा डालने के लिए ही है.”

जेलों की दशा को लेकर माओवादी नेता ने कहा है कि “अंग्रेजों के जमाने के जेल मैनुअल को नाम मात्र के संशोधनों के साथ यथावत लागू किया जा रहा है. एक तो इन मैनुअलों में बंदियों के साथ जनवादी व सम्मानजनक व्यवहार से संबंधित बदलावों के अलावा आज के मूल्य सूचकांक एवं महंगाई के मुताबिक काफी संशोधन करने की जरूरत है तो दुसरी ओर वर्तमान जेल मैनुअलों का भी पालन कहीं नहीं हो रहा है. खाने-पीने, पहनने-ओड़ने, रहने, पढ़ने – लिखने अदि बंदियों को मिलने वाली तमाम सुविधाओं में काफी व व्यापक कटौती करके जेल अधिकारी से लेकर गृह मंत्री तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं और करोड़ों की काली कमाई कर रहे हैं. कीडे़ पड़े चावल, दाल के नाम पर सिर्फ पीला पानी, अन्य दैनिक उपयोगी सामान जैसे तेल, साबून, पेस्ट आदि को जेल मैनुअल के कोटे से काफी कम या नाम मात्र का दिया जाता है. पेपर, पत्रिका, किताब,टीवी समाचार आदि नसीब नहीं होते हैं. दूसरी ओर कुछ जेलों में केंटीन चलाये जाते हैं, जहां अच्छा भोजन व अन्य सामग्री उन बंदियों को उपलब्ध होती है जो मुहमांगी दाम दे सकते हैं. जहां केंटीन नहीं हैं, वहां भी खाना सहित सभी सामान खरीदने से मिल सकते हैं बशर्ते जेल वार्डरों, नंबरदारों को उनका सेवा शुल्क अदा किया जाए.”

गुड्सा उसेंडी ने आरोप लगाया है कि “सुविधाओं की मांग करने वालों को काल कोठरी (सिंगल सेल) में बंद किया जाता है. दूसरों से मिलने नहीं दिया जाता है. जेल अधिकारियों के काले कारनामों को उजागर करने की हर कोशिश को दबाने के लिए पगली घंटी बजाया जाता है आैर सभी बंदियों को लाकअप करके बाद में बैरकों से एक-एक को निकालकर बेदम पिटाई की जाती है. इस तरह बंदियों में दहशत फैलाया जाता है और जेल प्रशासन के खिलाफ उठने वाली हर आवज को दबाने की कोशिश की जाती है. जेल अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाएं नाम मात्र की हैं. जेल के बाहर के अस्पतालों में बंदी मरीजों को नहीं ले जाया जाता है. इलाज के अभाव में जेलों में बंदियों की अकाल व जबरन मौतें आम बात हो गयी हैं.”

गुड्सा उसेंडी ने कई उदाहऱण के साथ कहा है कि “जेलों में बंद अत्यधिक लोग आदिवासी हैं और अंदरूनी इलाकों के हैं इसलिए उनके परिजनों के लिए मुलाकात के लिए जाना मुश्किल है. विधिक सहायता पहुंचाना भी कठिन है. मुलाकात के लिए जाने वालों से जेल में पैसे एंठ लिया जाता है. मुलाका़त में सीधी बात नहीं करने देते हैं. गुप्तचर विभाग के पुलिस अधिकारियों के सामने ही जेल बंदियों को मुलाका़तियों के साथ बात करना पड़ता है.”

माओवादी प्रवक्ता ने कहा है कि “माओवादी गतिविधियों से संबंधित मामलों व साथ ही जनवादी, प्रगितशील आन्दोलनों एवं जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के लिये जारी संघर्षों के दौरान राज्य दमन के तहत जेलों में बंद तमाम लोगों को राजनीतिक बंदी का दर्जा देने व जेलों में बंद तमाम आदिवासियों को निशर्त रिहा करने की मांग करने हमारी पार्टी जनता, जनवादी-प्रगतिशील ताकतों, मानवाधिकार संगठनों व कार्यकर्ताओं से अपील करती है. जेल बंदियों पर अत्याचार करने वाले भ्रष्ट जेल अधिकारियों व उनके दलाल नंबरदारों को हम चेतावनी देते हैं कि वे अपने व्यवहार को सुधारें वरना जन अदालत में गंभीर सजा भुगतने तैयार रहे.”

अपने बयान में माओवादी नेता ने एक ओर जहां मीडिया से जेलों के भीतर की स्थिति को बाहर लाने की अपील की है, वहीं दूसरी ओर प्रगतिशील वकीलों से अपील की है कि वे राज्य यंत्र के दमन के शिकार होकर जेलों में बंद लोगों को विधिक सहायता पहुंचाने आगे आयें.

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