छत्तीसगढ़

सुहाग की रक्षा का पर्व है तीज

पटना | एजेंसी: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए भारतीय स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं. हरितालिका तीज की पहचान महिलाओं के 16 श्रृंगार से होती है. इसे छत्तीसगढ़ में भी विशेष तौर पर मनाया जाता है.

इन दिनों पूरे छत्तीसगढ़ के बाजारों में तीज की रौनक देखी जा सकती है, वहीं घरों से खास पकवानों की भीनी-भीनी खुशबू आने लगी है. वैसे तो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भी तीज मनाई जाती है, जिसे छोटी तीज या ‘श्रावणी तीज’ कहा जाता है. भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाए जाने वाले पर्व को बड़ी तीज तथा हरितालिका तीज कहा जाता है. इस वर्ष यह पर्व 28 अगस्त को मनाया जाएगा.

इस व्रत में महिलाएं सुबह उपवास रखकर रात में मिट्टी से भगवान शिव-पर्वती की मूर्ति बनाकर पूजा-अर्चना करती हैं और पति के दीर्घायु की कामना करती हैं.

इस व्रत पर वैसे तो भोग लगाने के लिए कई पकवान बनते हैं, लेकिन भगवान को प्रसाद के रूप में गुजिया चढ़ाने की पुरानी परंपरा रही है. गुजिया मैदे से बनती है, जिसमें खोवा, सूजी, नारियल और बेसन भरा जाता है.

पंडित सुधीर मिश्र का कहना है कि भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है तथा हस्त नक्षत्र के दौरान पूजा की जाती है. वह कहते हैं कि जो सुहागिन अपने अखंड सौभाग्य और पति के कल्याण के लिए यह व्रत रखती हैं कि उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

वह बताते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इसी दिन उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था.

बकौल मिश्र, “सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह दिन बेहद शुभ होता है. इस दिन सुहागिनों ने पति के दीर्घायु होने, सुखद वैवाहिक जीवन, संपन्न्ता और पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर व्रत रखती हैं तो कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं.”

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