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आतंकवाद की ढाल बना चीन

नई दिल्ली । संवाददाता: चीन ने सुरक्षा परिषद में पाक आतंकी मसूद अज़हर के लिये वीटो का इस्तेमाल किया है. बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने पाकिस्तान स्थित चरमपंथी समूह जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मौलाना मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रयास को अपने वीटो पावर से रोक दिया है. सतही तौर पर देखने से लगता है कि चीन ने पाक आतंकी मसूद अज़हर के पक्ष में वीटो पावर का इस्तेमाल किया है परन्तु गहराई में जाने से साफ हो जाता है कि यह चीन की लंबी रणनीति का एक हिस्सा मात्र है.

चीन का कहना है कि वह मसूद अज़हर पर प्रतिबंध लगाने की अपील को समझने के लिये और समय चाहता है. हैरत की बात है कि जिस संगठन ने हाल ही में भारत के पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुये आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ली है, चीन उस संगठन के मुखिया को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की काली सूची में क्यों डाला जाना चाहिये उसे ‘समझने के लिये और समय चाहता है’. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस की ओर से मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की काली सूची में शामिल करने का प्रस्ताव पेश किया गया था.

दरअसल चीन, मसूद नहीं, पाकिस्तान का साथ दे रहा है इसे समझना जरूरी है. माओ-जे-दुंग के समय से ही चीन पर आरोप लगते रहे हैं कि वह कम्युनिस्ट अंतर्राष्ट्रीयतावाद के स्थान पर चीन की विदेश नीति को ज्यादा तरहीज़ देता है, वह फिर से सत्य साबित हुआ है. चीन जहां वैश्विक स्तर पर अमरीका को टक्कर देना चाहता है वहीं पाकिस्तान उसकी इस रणनीति का एक अहम साझेदार है. पाकिस्तान को भी अमरीकी खेमे का माना जाता रहा है. परन्तु आज वह अमरीका के बजाये चीन से ज्यादा निकटता बढ़ा रहा है.

इसके लिये चीन के नये सिल्क रूट या वन बेल्ट वन रोड के माध्यम से इसे समझने की कोशिश करेंगे. आज वैश्विक व्यापार के लिये मैनुफैक्चरिंग और वित्त पर दबदबा होना ही काफी नहीं है. व्यापार करने के लिये याने सामान की आवाजाही के लिये एक मार्ग की भी जरूरत है. वर्तमान में जो विश्व-व्यापार होता है उसका 90 फीसदी के करीब का समुद्री मार्गो से होकर जाता है. इस समुद्री रास्ते में अमरीका तथा उसके सहयोगी देशों का दबदबा है. चीन एक वैकल्पिक मार्ग के निर्माण में लगा हुआ है जिसमें समुद्र के अलावा जमीन का भी इस्तेमाल होगा. इसके माध्यम से चीन की योजना एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने की है. जाहिर है कि जब व्यापार किये जाने का मार्ग खुलेगा तो चीन का व्यापार भी बढ़ेगा.

पाकिस्तान पहले ही इस परियोजना में शामिल होने की रज़ामंदी दे चुका है. चीन व्यापक पैमाने पर अफ़्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में रेल और सड़क नेटवर्कों का निर्माण कर रहा है. इससे होगा यह कि चीन को जाने वाला तेल सबसे पहले पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर या म्यांमार के क्याउकफियू बंदरगाह पर उतरेगा. ये दोनों बंदरगाह चीन ने विकसित किये हैं.

भारत, चीन के इस ‘वन बेल्ट वन रोड’के विरोध में रहा है. जबकि पाकिस्तान इसमें शामिल है.

आज का पाकिस्तान कर्ज में डूबा हुआ है. पाकिस्तान पर क़र्ज़ और उसकी जीडीपी का अनुपात 70 फ़ीसदी तक पहुंच गया है. पिछले पांच सालों में पाकिस्तान का कर्ज 60 अरब डालर से बढ़कर 95 अरब डालर का हो गया है. दूसरी तरफ चीन पाकिस्तान में 55 अरब डॉलर की रक़म अलग-अलग परियोजनाओं में ख़र्च कर रहा है. पिछले साल जब चीन ने पाकिस्तान को 1 अरब डालर का कर्ज दिया था तब पाकिस्तान के अखबार ‘द डान’ ने टिप्पणी की थी कि पाक की निर्भरता चीन पर बढ़ती जी रही है.

शीत-युद्ध के बाद जहां अमरीका दुनिया का स्वंभू दरोगा बन गया है वहीं चीन की कोशिश उसे व्यापार के माध्यम से हथिया लेने की है. अब, चीन की इस कोशिश में पाकिस्तान अहम रोल अदा कर रहा है इसीलिये चीन मसूद अज़हर का नहीं पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है. इससे यह बात भी साफ हो जाती है कि आतंकी मसूद अज़हर की ढाल बनकर चीन पाकिस्तान को खुश करना चाह रहा है याने पाकिस्तान आतंकी मसूद अज़हर की ढाल बकर रक्षा कर रहा है.

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