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कृषि क़ानून पर रोक लगाये सरकार-सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली | डेस्क: किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार ने बिना विचार विमर्श किए हुए कृषि क़ानूनों को लाया है और महीने भर से भी अधिक समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ बातचीत का भी कोई नतीजा नहीं निकल रहा है.

अदालत ने साफ़ कहा कि सरकार या तो क़ानूनों को लागू करने पर फ़िलहाल रोक लगा दे या फिर सुप्रीम कोर्ट ख़ुद ही क़ानूनों पर रोक लगा देगा.

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन को अब तक जिस तरह से संभाला है उसे लेकर अदालत को बहुत निराशा हुई है.

अदालत ने किसानों से भी पूछा कि प्रदर्शन में महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग क्या कर रहे हैं?

हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट विरोध प्रदर्शन के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि अभी जिस जगह पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है क्या उसमें कोई बदलाव संभव है.

अदालत ने आशंका जताई कि जिस तरह से हालात बिगड़ रहे हैं, उनमें हिंसा होने का भी ख़तरा है. अदालत ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो इसके लिए सभी ज़िम्मेदार होंगे.

इस बीच केंद्र सरकार ने कृषि क़ानूनों पर अपना पक्ष रखते हुए आनन-फ़ानन में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दायर किया है.

बीबीसी के अनुसार केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फ़ैसला सुनाएगा.

इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी थी.

अदालत ने सख़्त तेवर दिखाते हुए कहा कि सरकार ने किसी राय-मशविरे के इस क़ानून को पारित किया है जिसका नतीजा है कि किसान एक महीने से भी ज़्यादा समय से धरने पर बैठे हुए हैं.

सरकार ने कहा कि कुछ तथ्यों को सामने लाना ज़रूरी था, इसीलिए यह हलफ़नामा दायर किया जा रहा है.

अपने हलफ़नामे में सरकार का कहना है कि कृषि सुधारों के लिए केंद्र सरकार पिछले दो दशकों से राज्य सरकारों से गंभीर चर्चा कर रही है.

सरकार का दावा है कि देश के किसान इन कृषि क़ानूनों से ख़ुश हैं क्योंकि इनके ज़रिए उन्हें अपनी फ़सल बेचने के लिए मौजूदा सुविधाओं के अलावा अतिरिक्त अवसर मिलेंगे.

सरकार के अनुसार इन क़ानूनों से उनके किसी भी अधिकार को नहीं छीना गया है.

हलफ़नामे में आगे कहा गया है कि कुछ किसान जो इसको लेकर विरोध कर रहे हैं उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार ने हर संभव कोशिश की है.

सरकार ने कहा कि पूरे देश में किसानों ने इस क़ानून को स्वीकार किया है और केवल कुछ ही किसान और दूसरे लोग जो इस क़ानून के ख़िलाफ़ हैं उन्होंने इसके वापस लिए जाने की शर्त रखी है.

सरकार ने अपने हलफ़नामे में एक बार फिर कहा, “क़ानूनों की वापसी की माँग ना तो न्यायसंगत है और ना ही केंद्र सरकार को स्वीकार्य है.”

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