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शेखचिल्ली का सपना- काला धन निकलेगा

नई दिल्ली | मुकेश त्यागी: नोट बंद करना काले धन पर चोट करना है यह शेखचिल्ली के सपने से कम नहीं है. 500/1000 हजार के नोट बंद कर 500/2000 के चालू करने से काला धन/भ्रष्टाचार/अपराध/आतंकवाद ख़त्म हो जायेगा- शेखचिल्ली के किस्से से ज्यादा कुछ नहीं. 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की सरकार ने भी पाँच सौ, एक हजार, 5 हजार और 10 हजार के नोट बंद किये थे. इसके पहले 1954 में भी एक हजार का नोट बंद किया गया था. उससे देश में कितना काला धन/भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ था, किसी को पता है! इसके बाद पहले 500 का नोट दोबारा चालू हुआ और 1 हजार वाला तो 2001 में पिछली बीजेपी सरकार ने चालू किया था.

आज की तारीख में काले धन का अधिकांश हिस्सा बैंकों के जरिये ही इधर-उधर होता है और ये पनामा-स्विस-सिंगापुर आदि के बैंक कोई नकद नहीं जमा करते. इनमें सारा धन बैंकों के जरिये ही पहुँचता है.

आज की तारीख में असली भ्रष्टाचार सरकारों द्वारा अपने करीबियों को सस्ती जमीनें, प्राकृतिक संसाधन, आदि उपलब्ध कराने, उनके फायदे की नीतियाँ बनाने के जरिये होता है या कंपनियों द्वारा ओवर/अंडर इन्वॉयसिंग द्वारा होता है. इससे उत्पन्न काला धन Tax Havens में जमा होता है, जो फिर घूम कर FDI/FII निवेश तथा Participatory-Notes के जरिये वापस भारत में आ जाता है और फिर से उस पर टैक्स छूट मिलती है.

इसीलिए काले धन का सबसे ज्यादा धंधा करने वाले कारोबारी इससे कतई दुखी नहीं है, क्योंकि इनमें से कोई भी नकदी का ढेर लगा कर नहीं रखता.

हाँ, कुछ बिल्कुल पुराने किस्म के नकदी में काला धन रखने वाले कुछ कारोबारियों को थोड़ी दिक्कत जरूर होगी. कुछ मध्यम वर्गीय काला धन बाहर आ सकता है. पर उनके लिए भी उपाय निकल आएंगे.

कमीशन पर बैंकों/RBI से इन नोटों को बदलवाने का कालाबाजार भी कुछ दिन में ही नजर आ जायेगा. नोट बदलने के कायदों में ही थर्ड पार्टी के जरिये नोट बदलने का एक प्रावधान भी चर्चा में है जो ऐसे लोगों के बड़े फायदे का होने वाला है!

जब तक आधी से ज्यादा संपत्ति के मालिक 1% लोग हैं और समाज व्यवस्था का आधार ही मेहनत द्वारा उत्पादित मूल्य को हथियाकर अधिकतम निजी संपत्ति इकठ्ठा करना है, तब तक ना भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है ना अपराध.

हाँ वास्तविक समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए ऐसे नाटक दुनिया भर में बहुत देशों में खूब सारे हुए हैं और होते रहेंगे.
जहाँ तक मजदूर-किसानों का सवाल है, ना इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी, ना बाजार में कीमतें कम होंगी, ना उनके लिए भोजन, शिक्षा, चिकित्सा, आवास, आदि की कोई समस्या हल होगी.

हाँ, छोटे कारोबारियों-किसानों आदि से उन के नोटों को बदलने के बदले भी रिश्वत-कमीशन मांगना शुरू कर दिया जाये तो अचम्भा ना होगा. इसी तरह जिन लोगों ने पहले से रोजमर्रा की जरुरत के लिए थोड़ी नकदी निकाली हुई है उन्हें भारी दिक्कत होने वाली है अगले कुछ दिन खर्च चलाने के लिए. आश्चर्य न होगा अगर उन्हें भी कालाबाजारी का शिकार होना पड़े, जरुरत के काम निपटाने के लिए.

एक और बात, जिनके पास क्रेडिट/डेबिट कार्ड है उनका तो काम चल जायेगा, पर दिहाड़ी मजदूरों को कल मजदूरी नहीं मिलेगी! उनके परिवारों/बच्चों की हालत की कल्पना कीजिये. यह दिगर बात है कि सोशल मीडिया पर #BlackMoney हैशटैग ट्रेंड कर रहा है.

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