ताज़ा खबरदेश विदेश

बाबा रामदेव के ख़िलाफ़ FIR

नई दिल्ली | डेस्क: कोरोना का इलाज करने का दावा करने वाले बाबा रामदेव पर जयपुर में एफआईआर दर्ज की गई है. कोरोना वायरस की दवा के तौर पर कोरोनिल का भ्रामक प्रचार करने के आरोप में रामदेव और अन्य चार लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गयी है.

इससे पहले आयुष मंत्रालय ने बाबा रामदेव के दावे को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और उनके ऐसे दवाओं के प्रचार को गैरकानूनी बताया था.

अब इन्हीं को आधार बना कर बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों पर जयपुर में अधिवक्ता बलराम जाखड़ ने एफआईआर दर्ज की गई है.

रामदेव के अलावा जिन चार लोगों पर केस दर्ज हैं, उनमें आचार्य बालकृष्ण का नाम भी है. इसके अलावा वैज्ञानिक अनुराग वार्ष्णेय, निम्स के अध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह तोमर और निदेशक डॉ. अनुराग तोमर भी आरोपी बनाए गए हैं.

बलराम जाखड़ ने अपनी एफआईआर में कहा है कि फर्जी दवाई बनाकर अरबों रुपए कमाने के मकसद से कोरोनिल दवा बनाने का दावा किया गया था.

बाबा रामदेव के खिलाफ इससे पहले भी जयपुर के गांधी नगर थाने में परिवाद दर्ज किया गया था. जयपुर के ही डॉक्टर संजीव गुप्ता ने यह कहते हुए परिवाद दर्ज कराया था कि कोरोना की दवा बनाने का दावा करके रामदेव लोगों को गुमराह कर रहे हैं. यह लोगों की जान को संकट में डालने वाला फ़ैसला साबित हो सकता है.

बाबा का दावा

गौरतलब है कि 23 जून को बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों ने ‘कोरोनिल टैबलेट’ और ‘श्वासारि वटी’ नाम की दो दवायें लॉन्च कीं, जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि ‘ये कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं.’

पतंजलि विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थान के संयोजक स्वामी रामदेव ने दावा किया है कि “कोविड-19 की दवाओं की इस किट को दो स्तर के ट्रायल के बाद तैयार किया गया है. पहले क्लीनिकल कंट्रोल स्टडी की गई थी और फिर क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल भी किया जा चुका है.”

दवा लॉन्च होने के कुछ ही घंटे बाद आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से कहा कि वो जल्द से जल्द उस दवा का नाम और उसके घटक बताए जिसका दावा कोविड-19 का उपचार करने के लिए किया जा रहा है.

साथ ही मंत्रालय ने यह भी कहा कि पतंजलि संस्थान नमूने का आकार, स्थान, अस्पताल जहाँ अध्ययन किया गया और आचार समिति की मंजूरी के बारे में विस्तृत जानकारी दे.

मंत्रालय के बयान के मुताबिक़ पतंजलि को इस बारे में सूचित किया गया है कि दवाओं के इस तरह के विज्ञापन पर रोक है.

इस तरह के विज्ञापन ड्रग एंड मैजिक रिमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) क़ानून, 1954 के तहत आते हैं.

कोरोना महामारी को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी निर्देशों में भी इस बारे में साफ़तौर पर कहा गया है और ये आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन पर भी लागू होता है.

error: Content is protected !!