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फुलपाड पर आई जांच टीम की रिपोर्ट

रायपुर | संवाददाता: फुलपाड में मुझे ज़मीन पर लेटाया गया. एक भारी व्यक्ति मेरी पीठ पर बैठ गया. फिर कच्ची लकड़ी से तलवों पर मारा गया.

दंतेवाड़ा के फुलपाड गांव में माओवादियों ने जिन लोगों की बेदम पिटाई की है, यह बयान उनमें से एक व्यक्ति का है.

माओवादियों ने फुलपाड में आदिवासियों को इसलिये मरते दम तक पीटा था क्योंकि आदिवासी सरकारी योजनाओं से जुड़ रहे थे. माओवादियों को शक़ था कि गांव वाले सीआरपीएफ के संपर्क में हैं.

देश के जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़, समाजशास्त्री बेला भाटिया, आदिवासी नेता सोनी सोरी और लिंगाराम कोड़ोपी की एक जांच टीम ने प्रभावित गांवों का दौरा कर प्रभावितों से मुलाकात के बाद यह संभावित निष्कर्ष निकाला है.

जांच टीम के सदस्य 15 सितंबर को फुलपाड गये थे. वहां गांव के अनेक महिलायें व पुरुष स्कूल के पास इकट्ठे हुये और उन्होंने अपनी बहात रखी.

ग्रामीणों के अनुसार 5 सितंबर को रात तीन बजे के आसपास कई माओवादी कार्यकर्ता फुलपाड के कोयलानपारा और मारकापारा पहुंचे थे. इनमें से एक दो वर्दी में थे, जबकि अधिकतर सादी वर्दी में थे. माओवादियों ने घर-घर जा कर लोगों को उठाया और गांव वालों को इकट्ठा किया. इनमें महिला, पुरुष के साथ-साथ बच्चे भी थे.

जांच टीम को ग्रामीणों ने बताया कि कुछ पुरुषों को अलग ले जाया गया. उनमें से कुछ के हाथों को पीठ के पीछे बांध कर ले जाया गया था. उनकी कच्चे बांस से खूब पिटाई की गई. जब एक युवक की मां ने उनको कहा कि “मेरे बेटे को जो कुछ भी करना है, जनता के सामने करो” तो उसकी और उसके पति की भी पिटाई की गई. इस तरह कुल 9 लोगों की पिटाई की गई. इनमें से 8 कोयलानपारा के हैं.

कुछ पीड़ितों ने जांच टीम के सदस्यों को पिटाई के निशान दिखाये, जो दस दिनों के बाद भी उनकी पीठ और टांगों पर साफ़ दिख रहे थे.

एक पुरुष जिसकी सब से ज्यादा पिटाई की गई, वह दंतेवाड़ा हॉप्स्पटल में भर्ती है. उनसे जांच टीम ने शाम को मुलाकात की. उन्होंने जांच टीम से कहा- “मुझे ज़मीन पर लेटाया गया. एक भारी व्यक्ति मेरी पीठ पर बैठ गया. फिर कच्ची लकड़ी से तलवों पर मारा गया.”

जांच टीम का कहना था कि वे बहुत डरे हुये थे. क्योंकि पीटने के बाद माओवादियों ने हॉस्पिटल जाने से मना किया था. लेकिन घटना के बाद पुलिस को जब जानकारी मिली तो वह गांव में आई थी और घायल लोगों को ढूंढ़ रही थी. बाकी लोग पुलिस पहुंचने के पहले भाग गये थे, लेकिन यह पुरुष गंभीर रुप से घायल होने के कारण नहीं भाग पाया. अब उसको डर लग रहा है कि माओवादी लोग उनको मारेंगे.

क्यों नाराज हैं माओवादी

जांच टीम ने इस बात की भी जांच की कि आखिर माओवादियों ने गांव के आदिवासियों को क्यों मारा? जांच टीम के अनुसार मारने का कारण समझना आसान नहीं है लेकिन लोगों के बयान से यह लग रहा है कि माओवादी उनसे इसलिये नाराज़ थे क्योंकि गांव वाले सरकार से संपर्क करने लगे थे. उदाहरण के लिए कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के पैसे से घर बनाये थे. कुछ लोग गांव का संपर्क मार्ग बनाने में शामिल थे.

कुछ लोग क्रिकेट संबंधी गतिविधियों में शामिल हुए थे, जो किसी स्थानीय सरकारी कर्मचारी ने आयोजित की थी. यह कर्मचारी भाजपा का नेता भी है.

जांच टीम ने कहा है कि शायद माओवादियों की एक शिकायत यह भी थी कि CRPF जवान कभी-कभी गांव भी आते हैं. फुलपाड से करीब 4 किलोमीटर दूर एक CRPF कैंप है. इस से उनका शक बढ़ रहा है कि गांव वाले किन के साथ है-हमारे साथ या सरकार के साथ?

माओवादियों को लेकर जांच टीम ने कहा है कि गांव वालों को अब बहुत चिंता है क्योंकि माओवादियों ने उनको गांव छोड़ कर शहर में रहने को कहा है. माओवादियों ने फसल काटने से भी मना किया है. लोगों ने जांच टीम को बताया कि उन्होंने उसी दिन जवाब दे दिया था कि हम लोग गांव नहीं छोड़ेंगे. जांच टीम के सामने भी लोगों ने यही दोहराया कि वे गांव में ही रहेंगे.

फुलपाड की घटना को लेकर जांच टीम ने कहा है कि यह घटना साधारण लोगों पर उत्पीड़न और अत्याचार का मामला है. दुख की बात है कि बस्तर में इस तरह की घटना अनोखी नहीं है. इस तरह की पीड़ित लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वे कहां जायें और किन के सामने शिकायत करें.

जांच टीम ने कहा है कि ऐसे पीड़ित लोगों की संवेदनशीलता से मदद करने के बदले सरकार ने कई बार इस तरह की स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश की है. इसके कारण लोगों के लिये खतरा और बढ़ दाता है. जांच टीम ने उम्मीद जताई है कि सरकार इस बार ऐसा नहीं करेगी. जांच टीम ने माओवादियों से भी मांग की है कि वे इस तरह की घटना को नहीं दोहरायेंगे और फुलपाड के लोगों को अपनी इच्छा अनुसार जीने की आज़ादी देंगे.

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