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कृषि विपणन का भविष्य: वायदा बाजार

नई दिल्ली | एजेंसी: राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ने जिंसों के वायदा विपणन बाजार और डिराइवेटिव्स के बारे में किसानों के लिये एक जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया. 50 से ज्यादा किसान इस कार्यक्रम में शामिल हुए. ये सभी चेलमपट्टी और उसीलमपट्टी के किसान क्लबों के सदस्य थे. कार्यक्रम में वायदा बाजार पर विस्तृत चर्चा की गई.

एक प्रतिभागी, वैगई विवासया नाला संगम के अध्यक्ष वी.आर. मुत्तुपेआंडी पूरी तरह से सहमत थे कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद कई तरह की गलतफहमियां दूर हुई हैं. उन्होंने जिंसों और वायदा बाजारों की भूमिका स्वीकार की.

क्या है वायदा बाजार?

वायदा बाजार एक खास प्रकार का अनौपचारिक वित्तीय बाजार है, जिसमें तय सौदों की बाद में डिलीवरी दी जाती है. यह ऐसा बाजार है जहां जिंसों, सिक्कों के ऐसे सौदे किये जाते हैं, जिनकी सुपुर्दगी बाद में करनी होती है, लेकिन पैसे वही दिए जाते हैं, जो संविदा की तारीख को तय हुए थे. जिंसों और सिक्कों के बाजार में इस प्रकार की खरीद-फरोख्त कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव से बचाव के लिए की जाती है.

संक्षिप्त इतिहास :

जिंसों में वायदा सौदों का इतिहास लगभग एक सदी से ज्यादा पुराना है. ऐसा पहला संगठित बाजार 1875 में खुला था और इसका नाम रखा गया था बॉम्बे कॉटन ट्रेड एसोसिएशन. इसमें कपास के डिराइवेटिव्स संविदा पर सौदे होते थे. बाद में इसी तर्ज पर तिलहनों और अनाज की खरीद-बिक्री भी की जाने लगी.

भारत में वायदा बाजार में तब तेजी से परिवर्तन हुए, जब दूसरे विश्व युद्ध का समय आया. इसके परिणामस्वरूप दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले बड़ी संख्या में वायदा बाजार खुल गये, जिनमें कपास, मूंगफली, मूंगफली का तेल, कच्चा पटसन, पटसन से तैयार चीजें, अरंडी के बीज, गेहूं, चावल, चीनी, सोने-चांदी जैसी मूल्यवान धातुओं के सौदे देशभर में होने लगे.

युद्ध संसाधन जुटाने की कोशिशों की पृष्ठभूमि में प्रमुख जिंसों में सप्लाई की स्थिति बहुत नाजुक हो गई, जिससे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वायदा सौदों पर भारतीय रक्षा अधिनियम के अंतर्गत रोक लगा दी गई. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1950 के दशक के उत्तरार्ध तथा 1960 के पूर्वार्ध में जिंसों में वायदा सौदे फिर शुरू हो गए.

लेकिन 1960 से शुरू दशक के मध्यम में अधिकांश जिंसों में सौदों पर पाबंदी लगा दी गई और वायदा सौदे प्रतिबंधित कर दिये गये. इस प्रकार से सिर्फ दो जिंसों- कालीमिर्च और हल्दी में वायदा सौदे जारी रहे.

सम-सामयिक परिदृश्य :

वर्तमान में वायदा लेन-देन के लिए राष्ट्रीय स्तर के पांच केंद्र चल रहे हैं. इनमें 113 जिंसों की वायदा खरीद-बिक्री होती है. इसके अलावा 16 ऐसे केंद्र हैं, जो विनिर्दिष्ट किस्म के हैं और जहां पर वायदा बाजार कमीशन द्वारा अनुमोदित जिंसों में ही सौदे होते हैं. इसके लिए वायदा संविदा अधिनियम, 1952 बना हुआ है.

किसानों और अन्य हितधारकों को लाभ :

किसान और इन जिंसों की पैदावार करने वाले वायदा बाजार से मूल्य संबंधी संकेत ग्रहण करते हैं, भले ही वे वायदा सौदों में सीधे शामिल न होते हों. वायदा बाजारों के चलते जिंसों में फसली चढ़ाव-उतार कम होता है, जिससे किसानों को फसल कटने के समय फायदा होता है और वे अपनी जिंसों का बेहतर मूल्य पाते हैं.

इससे किसान को खेती के संचालन को अग्रिम रूप से नियोजित करने में भी मदद मिलती है तथा वो यह तय कर पाता है कि उसे पहले से मिल चुकी जानकारी के आधार पर कौन सी फसल उगानी है. इससे उसे भविष्य में कीमतों में आने वाले रुझानों और अनेक जिंसों में पहले से मांग और पूर्ति का अंदाजा हो जाता है.

वायदा बाजारों से जिंसों की पैदावार करने वालों और बड़े उपभोक्ताओं को मूल्यों के चलते होने वाले जोखिम से निपटने का एक तंत्र मिल जाता है और जिंसों को उपजाने वालों को भविष्य में अच्छी कीमत मिलने के आसार बन जाते हैं. उत्पादक इससे अपनी कच्चे माल और तैयार माल की जरूरतें नियोजित कर लेते हैं और जोखिम से बचाव कर लेते हैं. इसके परिणामस्वरूप बाजार में अधिक स्पर्धा आती है और उत्पादक यूनिटों की सक्षमता सुनिश्चित होती है.

वायदा बाजार कमीशन :

वायदा बाजार आयोग, का मुख्यालय मुंबई में है. यह एक विनियामक प्राधिकरण है जिसका निरीक्षण वित्त मंत्रालय करता है. यह एक संवैधानिक संस्था है और इसकी स्थापना 1953 में वायदा संविदा विनियामक अधिनियम-1952 के अंतर्गत की गई थी.

इस अधिनियम में व्यवस्था है कि आयोग में कम से कम दो और अधिकाधिक चार सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी. इस समय इस आयोग में तीन सदस्य हैं, जिसमें से रमेश अभिषेक, आई.ए.एस. अध्यक्ष हैं. आयोग के अन्य सदस्यों के नाम हैं-डॉ. एम. मतिशेखरन, आई.ई.एस. और नागेंद्र पारेख.

मदुरई शिविर :

मदुरई में किसानों के लिए प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन करते हुए नाबार्ड के सहायक महाप्रबंधक, आर. शंकर नारायण ने उन अनेक गतिशील कारकों को स्पष्ट किया, जिनसे खेती की जिंसों के संदर्भ में मूल्य अन्वेषण के दौरान वास्ता पड़ता है और किसान के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह परिदृश्य के अनुकूल बने.

अब जबकि वैश्वीकरण का जमाना है और भौगोलिक सीमाएं लुप्त हो रही हैं, दुनियाभर में डिराइवेटिव मार्केट विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि अगर किसानों के अपने परिश्रम का सर्वश्रेष्ठ मूल्य प्राप्त करना है, तो उन्हें उपजाने वालों के संगठन के रूप में संगठित होना होगा तथा अपने आपको जरूरी जानकारी से लैस करना होगा.

इस बात को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड बरसों से एक ग्रामीण किसान क्लब की बात करता रहा है, जो बैंकों की मार्फत संगठित किया जाए और जिसमें संबंधित गांवों के प्रगतिशील किसान शामिल हों. शंकर नारायण ने उपज को इकट्ठा करके सीधे विपणन की जरूरत पर भी जोर दिया और कहा कि इससे जिंस का मूल्य बढ़ जाता है.

मदुरई विपणन समिति के सचिव तवासी मुत्तु ने किसानों से अनुरोध किया कि वे ताजा तरीन प्रौद्योगिकी अपनाएं और बाजार में एकीकृत समूह के रूप में प्रवेश करें. उन्हें सरकार द्वारा जुटाई जा रही भंडारण सुविधाओं का भी इस्तेमाल करना चाहिए और उन कर्ज देने वालों से दूर रहना चाहिए जो फसल को नुकसानदेह शर्तो पर गिरवी रख लेते हैं. इस प्रकार की जिंसें विनियमित बाजारों में इकट्ठी कर ली जाती हैं.

एमसीएक्स, चेन्नई के क्षेत्रीय प्रमुख एस. सेंथिलवेलन ने जिंसों के वायदा बाजार के काम करने के बारे में विशेषज्ञों की तरह जानकारी दी और बताया कि किस प्रकार से यह एक पेचीदा विषय है. उन्होंने कहा कि किसी को वायदा बाजारों के बारे में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये बाजार वायदा बाजार कमीशन की देखरेख में काम करते हैं.

उन्होंने कहा कि जो किसान पहले ही अपनी उपज इकठ्ठा करने में शामिल हैं और जिन्हें नाबार्ड से मार्गदर्शन मिल रहा है, उन्हें अपनी खेती की फसलों को वायदा बाजार के लिए विस्तारित करने को तैयार रहना चाहिए.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की एक रोचक बात यह रही कि किसानों को खरीद-बिक्री, मार्जिन, मध्यस्थता, सुपुर्दगी, विकल्प मांगना, विकल्प देना आदि जैसे विषयों के बारे में बारीकियां समझाई गईं और इसके लिए जिंस बाजार में होने वाले ऑनलाइन खरीद-बिक्री का एक नमूना पेश किया गया.

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