स्वास्थ्य

नई एंटीबायोटिक नीति पर विचार

नई दिल्ली | एजेंसी : एंटीबायोटिक के बढ़ते प्रतिरोध से निपटने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय नई राष्ट्रीय एंटीबायोटिक नीति पर विचार कर रहा है.

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसिराजू ने शनिवार को कहा, “हमें विशेषज्ञों से कुछ प्रस्ताव मिले हैं और हम नई नीति बनाने के लिए इसकी जांच कर रहे हैं.”

2011 में स्वास्थ्य मंत्रालय एंटीबायोटिक नीति का प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसके कुछ प्रावधानों पर विरोध के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था.

इससे पहले के प्रस्ताव के अंतर्गत विभिन्न दवाइयों को सिर्फ चिकित्सक के अधिकृत निर्देश पर ही बेचा जाना था, जबकि अन्य दवाइयां सिर्फ अस्पताल के प्रयोग के लिए ही उपलब्ध होतीं.

विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक के कुप्रभाव विकसित न हों, इसे सुनिश्चित कराने के लिए एक एंटीबायोटिक नीति अत्यधिक महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि यह विशेषकर कॉरपोरेट और निजी अस्पतालों में होता है, जहां महंगे एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है.

इस नई नीति को बनाए जाने की जरूरत तब महसूस हुई जब स्वास्थ्य पर आधारित प्रतिष्ठित पत्रिका ‘लैंसेट’ की 2010 की रिपोर्ट में भारत में एक नए एंजाइम के बारे में जानकारी दी गई, जिसने सभी
प्रचलित एंटीबायोटिक को बैक्टीरिया प्रतिरोधक बनाया है.

भारत ने इस एंजाइम का नाम ‘न्यू देल्ही मेटैलो-1’ रखे जाने पर आपत्ति जताई थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!