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ट्रंप के अमरीका में भारतीय असुरक्षित

जेके कर
डोनाल्ड ट्रंप के अमरीका में भारतीय अब सुरक्षित न रहे. अमरीका में भारतीयों पर हमले की वारदात बढ़ती ही जा रही है. ताजा मामले में वॉशिंगटन के केंट में एक भारतीय सिख को गोली मार दी गई है. हालांकि, सिख की जान बच गई है परन्तु अमरीका में बढ़ते नस्ली हमले भारत के लिये चिंता की बात है. इस बार सिख को गोली मारते समय नकाबपोश 6 फीट लंबे गोरे अमरीकी ने चीखकर कहा, ‘वापस अपने देश जाओ’. 39 वर्षीय सिख को उस समय गोली मारी गई जब वह अपने घर के बाहक कार की मरम्मत कर रहा था. घटना शुक्रवार की है.

उससे पहले एक गुजराती हर्निश पटेल की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. उसके हत्यारे की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है. हर्निश के पहले 22 फरवरी को कैंजस में तेलंगाना के इंजीनियर श्रीनिवास की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. श्रीनिवास को गोली अमरीकी के पूर्व नेवी सैनिक ने की थी. गोली मारते समय उसने भी कहा था, ‘मेरे देश से बाहर निकलो’. जिस अमरीका की पहचान ही दुनियाभर के लोगों के वहां रहने से बनी है उस अमरीका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्ली हमले बढ़े हैं तथा अपने देश वापस जाओ के नाम पर हमले किये जा रहें हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के विरोधी इसे ट्रंप के चुनाव प्रचार के दौरान दिये गये भाषणों का नतीजा मान रहे हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीका सहित दुनिया के कई हिस्सों में उसने खिलाफ महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किये थे. उस समय ट्रंप ने चुनौती देने वाले अंदाज में कहा था मतदान के समय ये लोग कहा थे. जाहिर है कि चुनाव जीतने का दंभ ट्रंप को झुकने नहीं दे रहा है, अमरीका के राष्ट्रपति होने की जिम्मेदारी निभाने की जगह ट्रंप का रवैया उसकाने वाला है. बेशक, ट्रंप ने कांग्रेस की संयुक्त बैठक में श्रीनिवास की हत्या की निंदा की है. परन्तु नतीजे बता रहे हैं कि वह जुबानी जमाखर्च के अलावा और कुछ नहीं था.

एकबारगी यदि इसके ठीक उलट सोचे कि यदि भारत में लगातार दो सप्ताह के भीतर तीन अमरीकियों की हत्या कर दी जाती तो ट्रंप प्रशासन का क्या रवैया होता. क्या उस समय व्हाइट हाउस केवल जुबानी जमा-खर्च करके शांत बैठ जाता? बता दें कि भारत, अमरीका में बने हथियारों का बहुत बड़ा बाजार है. इसके अलावा भी भारत में अमरीका से कई और चीजे आयात की जाती हैं. भारत यदि चाहे तो अमरीकी प्रशासन की रातों की नींद तथा दिन का चैन चला जायेगा.

लेकिन सवाल, अमरीका से बदला लेने की नहीं वहां कानून के राज की स्थापना से है. बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते तो इस तरह के नस्ली हमले नहीं होते थे. अब डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बन जाने के बाद क्यों अमरीकी विदेशियों को वापस अपने देश लौट जाने की धमकी दे रहें हैं? इसका कारण है कि इनमें से ज्यादातर अपने देश में बेरोजगारी का कारण भारत सहित विदेशियों के बसने को मानते हैं. उन्हें लगता है कि उनके अवसर को बाहर से आने वाले छीन रहें हैं. इस सोच के पीछे ट्रंप का चुनाव के दौरान दिया गया सिलसिलेवार वे भाषण हैं जिसके तहत अमरीका को फिर से ‘प्रथम स्थान’ पर पहुंचा देने का ख्वाब दिखाया गया था. दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप के राज में अमरीका उग्र राष्ट्रवाद की ओर बढ़ रहा है. दुनिया के सबसे हथियार संपन्न जनता वाले देश की सोच में यह बदलाव जाहिर है कि बाकी दुनिया के लिये खतरे की घंटी है.

आजकल पूरी दुनिया में रोजगार के अवसर सिमटते जा रहें हैं. ऐसे में ‘मैं’ को बचाने के लिये ‘तुम’ पर हमला किया जा रहा है. यह सोच अमरीका को कहां तक ले जायेगी इसका अंदाजा आसानी से एक समय यहूदियों के खात्मे की घोषणा किये जाने से किया जा सकता है. लेकिन वह शख्स भी सफल नहीं रहा था. उसने जर्मनी को महान बनाने का ख्वाब अवश्य दिखाया था परन्तु दुनिया को युद्ध की आग में झोंककर खुद दुनिया से ही भाग खड़ा हुआ.

दुनिया का इतिहास गवाह है कि जनता के बीच सनसनी फैलाकर उन्हें उन्मादी बनाना आसान है परन्तु जनता को सही चीज समझाकर उन्हें देश तथा समाज के विकास के पथ पर ले जाना कठिन काम है. अभी डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका की सत्ता संभाली ही है. उन्हें तय करना है कि वे अपने देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं. कभी इसी अमरीका में गुलाम प्रथा के खात्में के लिये संघर्ष की शुरुआत की गई थी. गुलाम प्रथा के खात्में के बाद इसी अमरीका ने दुनिया को लोकतंत्र की राह दिखाई थी. उसी अमरीका में अब भी लोकतांत्रिक सोच वाले लोगों की संख्या कम नहीं है.

19वीं सदी के एक राजनीतिक दार्शनिक ने कहा था, “जहां पर अत्याचार होता है उसका विरोध सबसे पहले वहीं पर होता है.” फिलहाल, ट्रंप के अमरीका में भारतीय सुरक्षित नहीं हैं पर हमेशा असुरक्षित रहेंगे हम यह मानने को तैयार नहीं हैं. दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में नस्ली हिंसा के लिये कोई स्थान नहीं है.

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