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नेहरू अब भी उदास हैं

21. छत्तीसगढ़ के मजदूरों का अरसे से पलायन होता रहा है. पंजाब जैसे इलाके में जाकर पुरुष कर्मियों को अपना जीवन और महिलाओं को अपना शील तक बंधक रखना पड़ता है. यह भगदड़ आंशिक रूप से रुकी थी, जब बड़े सार्वजनिक उद्योगों ने बाहें फैलाकर मजदूरों को सहारा दिया था. इन कारखानों से बड़े पैमाने पर छंटनी की प्रक्रिया शुरू हो गई.

छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े उद्योग चावल मिलों की हालत खस्ता है. अधिकांश मिलें अधिकांश समय बंद रहती हैं. सार्वजनिक क्षेत्र ने छत्तीसगढ़ में महंगाई बढ़ाने के बावजूद किसानों के उत्पाद को अच्छा मूल्य बाजार दिया था. वह सीराजा भी बिखर रहा है. उत्पादन तो हो रहा है, लेकिन विक्रय और विनिमय नहीं. एक नई कॉस्मोपॉलिटन (सर्वप्रदेशीय) जन संस्कृति समाजवाद के पुत्र सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों की वजह से छत्तीसगढ़ में उगी है. उसने जातिवाद के जहर का डटकर मुकाबला किया है.

पूरे भारत में अलग अलग संस्कृति समूहों के परिवार जब खून पसीने और आंसुओं के रिश्ते में जुड़ जाते हैं, तब जीवन की सामाजिकता के नए आयाम उद्घाटित होते हैं. मध्यप्रदेश तो क्या, भारत के अच्छे से अच्छे नगरीय इलाकों को रायपुर, भिलाई जैसे क्षेत्र की बौद्धिकता और खुलेपन से रश्क है.

यह मनोवैज्ञानिकता नेहरू की ही तो प्रतिकृति है. निजी क्षेत्र का लोक संस्कृति से क्या लेना देना. साइबर संस्कृति के पुरोधा मनुष्य को ही अतिरिक्तता करार देते हैं. नेहरू के लिए वह एक अनिवार्यता रही है.

22. वैश्वीकरण की आग में नेहरू का सपना जल रहा है. जवाहरलाल ने भारत की आजादी के लिए अपना जीवन जेलों में सड़ा दिया. उसकी नीतियों की हत्या एक पूर्व नौकरशाह ने उसकी पार्टी में शामिल होकर संसद के भरे दरबार में की. तब भी स्वतंत्रता संग्राम सैनिक कुछ नहीं बोले जिन्होंने नेहरू की नीतियां रचने में मदद की थी. नरसिंह राव की अगुवाई में नेहरू नीतियां जिबह की गईं.

वे जवाहरलाल के पैरोकार समझे जाते थे. नए आर्थिक उदारवाद का सीधा और विपरीत असर छत्तीसगढ़ पर भी हुआ है. हरियाणा, पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में ग्रामोद्योगों और कृषि उद्योगों का जाल बिछा हुआ है. ये प्रदेश पारंपरिक विधाओं की ढाल लेकर नए आर्थिक साम्राज्यवाद से कुछ अर्सा तो लड़ ही पाएंगे.

ओडिसा, गुजरात, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में पारंपरिक पोशाकों और वस्त्रों का उद्योग उनकी सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान बन गया है. छत्तीसगढ़ के लिए यह सब कुछ नहीं है. छत्तीसगढ़ के कुटीर उद्योगों के लिए बाजारतंत्र विकसित करने में किस सरकार ने रुचि दिखाई है? बस्तर की कलाकृतियां रईस और नफीस लोगों के दीवानखानों में शोभा पाती होंगी, लेकिन बाजार के अभाव में कला ही दम तोड़ रही है.

23. दरअसल इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर मनुष्य और मशीन के मूल्य युद्ध का नियामक संघर्ष शुरू हो चुका है. समाजवाद भारत की संविधान सभा में घोषित एक रचनात्मक सामाजिक आस्था है. उस आलेख की इबारत नेहरू ने लिखी थी.

जवाहरलाल नेहरू, कार्ल मार्क्स, एंजेल्स, लेनिन, हैरोल्ड लास्की, बर्टेण्ड रसेल, महात्मा गांधी, विवेकानंद, पातंजलि, बुद्ध, कौटिल्य आदि सभी के अध्येता थे. वे आज की संसद के सदस्य नहीं थे, जहां सबसे बड़ी योग्यता यह है कि अभी प्रकरण न्यायालय में चल रहा है, लेकिन सजा नहीं होने से सांसद होने की योग्यता लांछित नहीं है.

भूगोल, रसायनशास्त्र और वनस्पतिशास्त्र की तिकड़ी के स्नातक बैरिस्टर जवाहरलाल मूलतः इतिहासकार बल्कि इतिहास निर्माता थे. इतिहास में उनका स्वप्न आज खंडित हो रहा है.

24. तपेदिक से तपती बीवी को स्विटजरलैंड के अस्पताल में छोड़कर जेलों में अपनी जवानी सड़ा दी. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान खंदकों में बैठकर उन्होंने हेरल्ड लास्की के फेबियन समाजवाद के पाठ पढ़े. बेटी को पिता के पत्र के नाम से चिट्ठियों की श्रृंखला लिखी. उस शिक्षा की इतनी गहरी ताब कि बेटी बिना किसी मदद के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बनी और शहीदों की मौत पाई.

नेहरू खानदान पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले कहें कि जवाहरलाल ने उत्तराधिकारी जयप्रकाश में ढूंढ़ा था इंदिरा में नहीं. वे तो अटलबिहारी वाजपेयी को भी कांग्रेस में लाने लाने को थे. मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के दबाव में भिलाई इस्पात संयंत्र लाकर इस प्रदेश को नया औद्योगिक तीर्थ दिया.

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