विविध

आत्मनिर्भर बन रही हैं झारखंड की महिला किसान

दुमका | शैलेन्द्र सिंहा: झारखंड की महिला किसान अब खेती-बाड़ी में एक नया इतिहास गढ़ रही हैं. खेती में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है लेकिन महिलायें अभी भी बहुत से कामों के लिये पुरुषों पर निर्भर हैं. अब यह मिथक भी टूट रहा है. झारखंड की महिला किसान अब पुरुषों पर निर्भर नहीं हैं. वे बाजार से खाद और बीज लाती हैं, धान की बुआई से लेकर कृषि के सभी कार्यों से अपनी आय बढ़ा रही हैं. इन महिलाओं ने गरीबी को चुनौती के रूप में लेकर आत्मनिर्भर बनने की ठान ली है.

महिला किसान विजन और मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गरीबों को सशक्त बना रही है. आदिवासी गांव में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं में गजब का आत्मविश्वास झलकता है. धान के लिये श्री विधि जैसी नई तकनीक अपना कर महिलायें खेती में नये प्रयोग भी कर रही हैं. इलाके में जीयोड़ साकाम, पूजा और चमेली स्वंय सहायता समूह की महिलाएं खेती करके सशक्त बन रही हैं. चमेली स्वसहायता समूह की सचिव मीना हांसदा बताती हैं “एस-आर-आई विधि से कृषि कर महिलाओं ने धान के उत्पादन में प्रति हेक्टेयर में वृद्धि की है, जिससे उनकी आय में भी वृद्धि हुई है. अब प्रति माह उनकी आय लगभग 5 हजार रुपये हैं. किसान महिलाएं अब पुरुषों पर निर्भर नहीं हैं. महिला समूह की सदस्य प्रखंड और जिला स्तर पर कृषि से जुड़े सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ ले रही हैं.”

समूह की अध्यक्ष समता सोरेन बताती हैं “झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी ने महिलाओं को कृषि के नए तरीके बताकर महिला किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही है. सोसाइटी झारखंड की महिलाओं को सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने में भी मदद कर रही है.”

इस संबध में महिला किसान सूरजमनी सोरेन बताती हैं कि कृषि के साथ पशुपालन और सब्जी उत्पादन भी उनकी आय में वृद्धि हुई है. महिलाएं रबी और खरीफ फसलों से लाभ उठा रही हैं. धान, मक्का, बरबटी और अन्य सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं. हालांकि सोरेन की सरकार से शिकायत भी है. वे सरकारी उदासीनता की चर्चा करते हुए कहती हैं “सरकार किसानों को समय पर खाद, बीज नहीं देती, यही कारण है कि हमें बाजार से बीज और उर्वरक खरीद कर खेती करनी पड़ती है.”

महिला किसान पानमुनी टुडो की भी यही शिकायत है- “अगर सरकार किसानों को सिंचाई की सुविधा, सिंचाई की मशीन और पम्पिंग सेट देती तो खेती और भी अच्छी होती. झारखंड में किसानों के लिए कोई नीति नहीं बनी है, किसान आज भी मानसून पर निर्भर हैं. महिला किसानों के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है, वह बकरी और पशुपालन, मुर्गी पालन आदि से भी आय में बढ़ोतरी हुई हैं.”

झारखंड में ब्लॉक स्तर पर किसान सलाहकार समिति का गठन किया गया. कृषि सलाहकार बलदेव कुमार हेम्ब्रम बताते हैं “अब तक सैकड़ों किसानों को उन्होंने बागवानी, मछली पालन के साथ अच्छी कृषि कौशल भी सिखाए हैं. मसलिया प्रखंड के राम खोड़ि, गुआसोल एंव सीता पहाड़ी महिला की किसान आत्मनिर्भर हो चुकी हैं. आज ग्रामीण गरीबी दूर करने में समुदायों की बड़ी भूमिका है.”

लाईवलीहुड के कोऑर्डिनेटर प्रदीप कुमार का दावा है कि झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसायटी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के द्वारा गरीबी को कम करने की दिशा में मिशन के तहत कृषि प्रशिक्षण दिलाकर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा किया. राज्य के लगभग 14 जिलों में ग्रामीण महिलाओं के बीच पिछले 4 वर्षों से यह सोसाईटी कार्यरत कर रही है. जिसका परिणाम है कि आज दिलहन, तिलहन से लेकर धान उत्पादन राज्य में बढ़ रही है. प्रदीप कुमार कहते हैं-“स्वसहायता समूह को कृषि संयत्र पंपिंग सेट धान झाड़ने की मशीन, पावर टिलर सहित कई तरह के उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं.”

मनोहरपुर प्रखंड के तिरला गांव की जागो महिलाओं समूह की पशु सखी लक्ष्मी खालको, सीमा सिंह मुंडा बताती हैं कि वे गांव में पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए काम कर रही हैं. उनका लक्ष्य है किसी भी गरीब की बकरी की मौत न हो. उन्होंने खुद गरीबी से मुकाबला करके अपना स्थान हासिल किया है. पशु सखी बनकर उसने कई महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया है, आज वह पशु चिकित्सक बन गयी हैं. झारखंड में अब बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं. झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य गरीब ग्रामीण महिलाओं के लिए एक प्रभावी संस्थागत आधार तैयार करना है ताकि वे अपनी आय बढ़ाकर बेहतर जीवन जी सकें.
चरखा फीचर्स

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