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नक्सलियों ने कहा-जघन्य अपराध

इसके बाद मैं रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वहां सुरेश रावल पहले से ही पहुंचे हुए थे. मैंने कहा मैं क्या करुं? उन्होंने कहा-तुम कुछ दूसरा देख लो, मैं इसे कव्हर कर लूंगा. वैसे भी उनके बीट का मामला था. मैंने कु्छ नहीं कहा.

उसके बाद शाम को खबर बनाने की बारी थी. मैंने रावल जी से पूछा कैसे करें? मैंने उनसे कह दिया कि आप इवेंट देख लीजिए मैं कुछ और करता हूं. वे संतुष्ट हो गए. इसके बाद खबरें लिखी गईं. मैंने स्पेशल स्टोरी लिखी ‘आखिर रेल पांत पर बैठना पड़ा बलीदादा को.’

रावल जी ने रूटिन घटनाक्रम को कव्हर किया. बाद में जो परिणाम आया, वह चौंकाने वाला था. मेरी खबर फ्रंट पेज बाई लाइन चली गई आल एडिशन और रावल जी पुल आउट के होकर रह गए. इसी बीच संतोष मरकाम के सपरिवार आत्महत्या का मामला, तेतरखुटी में एक तालाब में चार बच्चों के एक साथ डूबने का मामला ऐसी खबरें थीं, जिसके फालोअप तक ने सुर्खियां बटोरी. इसने मुझे नई पहचान दी.

इन्हीं खबरों के बाद एक दिन रायपुर से राजेश जोशी जी का फोन आया. पूछा कि क्या रायपुर आओगे? तब संपादक प्रदीप कुमार थे. उन्होंने हमारे प्रांतीय डेस्क प्रभारी को बात करने के लिए कहा था. प्रदीप कुमार को अलग तरह से खबरे लिखने और दिखाने का अंदाज भाता था. वे टेबल डिस्पेच को पसंद नहीं करते थे.

जोशी जी ने कहा- ठीक रहेगा आ जाओ. मैंने दुबारा यह बात कही- क्या मिलेगा? यानी अपनी कीमत पूछने का दुस्साहस! सौदेबाजी शुरू हुई. संपादक जी 4000 रुपए के लिए तैयार थे. मैंने खर्चों का जिक्र करते साढ़े 4 हजार की मांग रखी. बात अधूरी रह गई. पांच सौ के चक्कर में मैं नहीं गया. खैर, मेरी यह बात भी प्रदीप कुमार जी को शायद पसंद आई थी. अक्सर सनकी किस्म के लोग ऐसी बातों को पसंद करते हैं.

राजधानी में खींचतान..
दंतेवाड़ा नक्सलियों की हिंसा के नाम से पहले से ही चर्चित था. खबरें खूब निकलतीं. यहां नवभारत और दैनिक भास्कर में अक्सर खबरों को लेकर होड़ लगी रहती.

एक खबर नवभारत ने प्रकाशित की कि जगरगुंडा से बासागुड़ा के बीच के सारे पुल नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिए हैं.

दंतेवाड़ा के भास्कर ब्यूरों पर खबरों को लेकर भार आया. दंतेवाड़ा से खबर भेजी गई कि सारे पुलिए ठीक हैं. यानी नवभारत की खबर को झूठा बताने की कोशिश. इस एक खबर ने नवभारत और दैनिक भास्कर के बीच खाई को और भी बड़ा कर दिया. नवभारत के मनीष गुप्ता ने उसी दिन मोटरसाइकिल से फील्ड रिपोर्टिंग की. तस्वीरें और खबर नवभारत के फ्रंट पेज पर भास्कर के खंडन का खंडन करती हुई प्रकाशित की गई.

यह बात संपादक प्रदीप कुमार को बर्दाश्त से बाहर लगी.

दंतेवाड़ा में ब्यूरो…
इसके बाद अचानक एक दिन फोन आया- ‘दंतेवाड़ा जाओगे?’ यही बात भंवर बोथरा जी ने भी पूछी. मैंने कहा- ‘सोचकर बताता हूं.’

घर पर गया और पूछा कि दंतेवाड़ा के लिए कह रहे हैं जाउं. मां ने कहा हां, पत्नी ने कहा- “जगदलपुर बुरा नहीं है.” फिर भी वह तैयार थी.

27 अप्रेल 2003 को पत्र मिला. दंतेवाड़ा ज्वाइनिंग के लिए. 28 अप्रेल को अकेले दंतेवाड़ा पहुंचा माईजी से आशीर्वाद लेकर सीधे जगदलपुर लौट गया. 1 मई 2003 को दंतेवाड़ा में विधिवत एक सुटकेस लेकर पहुंचा. मुझे तब तक यह पता नहीं था कि यशवंत को हटाया गया है. मैं तो सोच रहा था कि उसे रायपुर, बड़ी जगह ट्रांसफर किया गया है. दंतेवाड़ा में सीधे यशवंत के पास पहुंचा. उसे बताया कि मुझे भेजा गया है. उसने जो बातें कहीं, उसका उल्लेख यहां ठीक नहीं है.

खैर, पता चल गया कि सब कुछ उसकी सोच के खिलाफ हो रहा है. पर मुझे अपने काम पर लगना था सो लग गया. एनआरके पिल्ले जी के पास पहुंचा अपने आने की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि फिलहाल धर्मशाला में रह जाओ. एक मात्र दंतेश्वरी धर्मशाला के बेड नंबर 19 में एक छोटा-सा बक्सा आलमारी नुमा बक्सा साथ मिला. वहीं से दंतेवाड़ा में पत्रकारिता की शुरूआत हुई. पहले ही दिन बिस्तर पर सूटकेस के उपर कागज पर कलम से खबरें लिखी और उसे फैक्स कर दिया.

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