बिलासपुर

करुणा के साथ किसकी करुणा

बिलासपुर | संवाददाता: कांग्रेस नेता करुणा शुक्ला के राजनीतिक जीवन की अब सबसे कड़ी परीक्षा है. बलौदा बाज़ार से विधानसभा पहुंचने और जांजगीर-चांपा से लोकसभा का रास्ता तय करने वाली करुणा शुक्ला भारतीय जनता पार्टी की महिला मोर्चा की अध्यक्ष रह चुकी हैं. इसके अलावा वे भाजपा की उपाध्यक्ष रही हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी होने के नफा-नुकसान भी उन्हें मिले हैं.

लेकिन 80 के दशक से भाजपा के साथ रहने और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदा संभालने वाली करुणा शुक्ला पहली बार बिलासपुर से चुनाव मैदान में हैं और पूरी तरह से विरोधियों से घिरी हुई हैं. कल तक के दोस्त आज राजनीतिक दुश्मन की भूमिका में हैं और जिन्हें उन्होंने दोस्त बनाया है, वे संदेह की नज़रों से उन्हें देख रहे हैं. कुछ तो सीधे-सीधे अपनी नाराजगी जता रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के बतौर उन्हें बिलासपुर से मैदान में उतारने की घोषणा जब हुई, उससे पहले ही कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष अरुण तिवारी ताल ठोंक कर सामने खड़े हो गये. उन्होंने घोषणा कर दी कि किसी भी हालत में वे करुणा शुक्ला की उम्मीदवारी बर्दाश्त नहीं करेंगे.

अरुण तिवारी विधायक रह चुके हैं और वे इस बार अखबारों में पूरे-पूरे पन्ने के विज्ञापन दे कर वे लोकसभा चुनाव की दौड़ में शामिल हुये थे. कांग्रेस नेता अनिल टाह ने तो पर्चा जारी कर मिस्ड कॉल की अपील जारी की थी-अगर अनिल टाह को आप सांसद के बतौर देखना चाहते हैं तो फलां-फलां नंबर पर मिस्ड कॉल करें.

इस दौड़ में कई और नाम थे, जिनमें अटल श्रीवास्तव को तो होना ही था. विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित किये गये अटल श्रीवास्तव राज्य के उन चुनिंदा नेताओं में हैं, जिनका पढ़ने-लिखने से सरोकार है, देश-विदेश की गहरी समझ है. लेकिन उनके साथ संकट ये है कि वे अपने आस-पास के ही लोगों को नहीं देख-समझ पाते. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेता उन्हें हर बार लाल झंडी दिखा जाते हैं.

इन तीनों के अलावा दर्जन भर ऐसे कांग्रेसी बिलासपुर में हैं, जो करुणा शुक्ला का अप्रत्यक्ष विरोध कर रहे हैं. माना तो यह भी जा रहा है कि अगर अजीत जोगी कांकेर से चुनाव मैदान में उतरेंगे तो आधे से अधिक मैदानी कांग्रेसी कांकेर का रुख कर लेंगे. ऐसे कांग्रेसियों के कांकेर रुख करने से करुणा शुक्ला नफे में रहेंगी कि नुकसान में, यह देखना दिलचस्प होगा.

करुणा शुक्ला के लिये एक बड़ा संकट आप पार्टी के आनंद मिश्रा भी हैं. आप पार्टी ने पिछले कुछ दिनों में जिस तेज़ी से बिलासपुर ज़िले में अपने पैर पसारे हैं, वह चकित करने वाला है. कुछ महीनों में ही पार्टी ने इलाके में 40 हज़ार से अधिक प्राथमिक सदस्य बनाये हैं. राज्य सरकार के खिलाफ उभरे असंतोष का जो लाभ करुणा शुक्ला को मिल सकता था, उसका एक बड़ा हिस्सा आप पार्टी के आनंद मिश्रा ले जा सकते हैं.

फिर लाख टके का सवाल है कि करुणा शुक्ला के साथ किसकी करुणा होगी ? ज़ाहिर है, इस सवाल का सबसे बेहतर जवाब करुणा शुक्ला दे सकती हैं और उनके इस जवाब के लिये आने वाले सप्ताह में उनकी रणनीतियों की प्रतीक्षा की जानी चाहिये.

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