प्रसंगवश

केजरीवाल की चुप्पी उनकी ज़रूरत?

श्रवण गर्ग | अरविंद केजरीवाल अगर चाहते तो आम आदमी पार्टी के सामने खड़े हुए संकट को टाल सकते थे. उसे सुलझा सकते थे, उसका वक्त रहते समाधान कर सकते थे, पर उनका ऐसा नहीं करना उनकी मजबूरी थी और उससे भी ज्‍़यादा उनकी ज़रूरत.

मजबूरी यह कि अरविंद के बारे में य‍ह लगभग स्‍थापित-सा हो गया है कि वे चुनौतियों का आमने-सामने मुक़ाबला करने से कतराते हैं, उनसे दूर भागते हैं. वे अपनी ‘भगोड़ा’ छवि को लेकर ज्‍़यादा नाखुश भी नहीं हैं.

हाल के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के पक्ष में जिस तरह के परिणाम आए हैं, उससे उनकी यह धारणा पुष्‍ट हुई होगी कि उन्‍हें अपनी वर्तमान ‘सार्वजनिक’ छवि से मुक्‍त नहीं होना चाहिए.

इस लिहाज़ से विश्‍लेषण करें तो अरविंद की सार्वजनिक छवि एक ऐसे व्‍यक्ति की है, जो पलटवार नहीं करता, विनम्रता का भाव अपने सभी तरह के विरोधियों के प्रति बनाए रखता है, ज्‍़यादा शिकायत नहीं करता.

हरियाणा के साथ दिल्‍ली की सात लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान के पूर्व जब अरविंद केजरीवाल को थप्‍पड़ मारे जा रहे थे, या उन पर स्‍याही और अंडे फेंके जा रहे थे, तब भी आम आदमी पार्टी के इस नेता ने कोई क्रोध प्रकट नहीं किया.

तब कहा गया कि चूंकि केजरीवाल ने मुख्‍यमंत्री पद छोड़कर जनता को धोखा दिया है, इसलिए उनके साथ ऐसा हो रहा है.

कुछ नेताओं ने तब यह भी कहा था कि मीडिया की सुर्खियों में बने रहने और जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए केजरीवाल स्‍वयं थप्‍पड़ लगवा रहे हैं.

आम आदमी पार्टी तब सातों लोकसभा सीटों पर हार गई थी पर केजरीवाल ने हिम्‍मत नहीं हारी.

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के सामने बैठकर केजरीवाल ने समस्‍याओं का समाधान करना उचित नहीं समझा और पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी (पीएसी) की बैठक से अपने आपको अनुपस्थित कर दोनों नेताओं के ख़िलाफ़ फ़ैसले को भी होने दिया और उसके प्रति अपनी असहमति भी नहीं व्‍यक्‍त दी.

उन्‍होंने इस संदेश को प्रसारित होने दिया कि जो कुछ भी हुआ है, वह उन्हीं के इशारे पर किया गया है.

दोनों ने स्‍वेच्‍छा से इस्‍तीफ़े की पेशकश की थी, पर उन्‍हें हटाने का प्रस्‍ताव उप मुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पेश किया था या उनसे ऐसा करवाया गया. मनीष के प्रस्‍ताव का समर्थन संजय सिंह ने किया था.

अपनी पार्टी को एक ‘अप्राकृतिक’ संकट में पटककर केजरीवाल स्‍वयं ‘प्राकृतिक’ चिकित्‍सा के लिए बेंगलुरु पहुंच गए.

पार्टी के वरिष्‍ठ नेता मयंक गांधी ने सलाह दी है कि आम आदमी पार्टी के भविष्‍य के लिए केजरीवाल को आत्‍मचिंतन की जरूरत है.

‘केजरीवाल में भी कुछ खामियां हैं’, अरविंद अपने बेंगलुरु प्रवास के दौरान ऐसे किसी ‘चिंतन’ या ‘चिंता’ के लिए समय निकाल पाएंगे, कहा नहीं जा सकता.

आम आदमी पार्टी को जिस तरह का ‘प्रचंड’ बहुमत प्राप्‍त हो गया है, उसे देखते हुए अरविंद केजरीवाल की यह ‘राजनीतिक ज़रूरत’ बन गई है कि वे पार्टी में असहमति या विरोध को ज्‍़यादा जगह न दें. ख़ासकर ऐसी असहमति को जो सार्वजनिक रूप से भी व्‍यक्‍त हो रही हो.

पार्टी में ‘अनुशासन’ बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाना उन्‍हें ज़रूरी प्रतीत होता होगा. दूसरे राजनीतिक दलों के काम करने का भी लगभग यही तरीका बन गया है, अत: पार्टी के अंदरूनी स्‍तर पर केजरीवाल अपने आपको ‘सख़्त’ छवि का ही पेश करना चाहते हैं.
पार्टी की रगों तक संदेश

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई के ज़रूरी संदेश पार्टी की रगों के अंदर तक पहुंच भी गए हैं. अगर इतने बड़े और प्रतिष्ठित नेताओं के साथ इस तरह का व्‍यवहार हो सकता है तो फिर सब कुछ संभव है.

प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, मयंक गांधी या वे तमाम लोग, जिन्‍होंने मनीष सिसोदिया के प्रस्‍ताव के प्रति पीएसी की बैठक में असहमति व्‍यक्‍त की होगी, वे आम आदमी पार्टी या केजरीवाल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे.

केजरीवाल को पता है कि जिस ‘कांस्टिट्यूंसी’ का वे प्रतिनिधित्‍व करते हैं, उस तक केवल उन्‍हीं की पहुंच है.

विधानसभा चुनावों के दौरान ‘लगभग’ सारा ‘मीडिया’ और दिल्‍ली का एक बड़ा ‘संभ्रांत’ वर्ग आम आदमी पार्टी की ‘एकतरफा’ छीछालेदर कर रहा था पर जैसे-जैसे ‘ओपिनियन पोल’ के आंकड़े केजरीवाल के पक्ष में बदलते गए, सबकी आवाज़ें भी बदलती गईं.
जानते हैं क्या करना है

केजरीवाल जानते हैं कि उन्‍हें किसके लिए, कब और क्‍या करना है. उन्‍हें यह भी पता है कि पिछली बार जब बहुमत उनके पास नहीं था और वे कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार चला रहे थे, तब उनकी ही पार्टी के कुछ विधायक उनके नेतृत्‍व के ख़िलाफ़ किस तरह की आवाज़ें उठा रहे थे.

केजरीवाल को वैसे इस बात का भी यकीन हो सकता है कि जिस तरह से उन्‍होंने अन्ना का हृदय परिवर्तन कर दिया, उसी तरह आगे या पीछे प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को भी मना लेंगे.

पर आम आदमी पार्टी की घोषित छवि को जिस तरह का नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका है.

(बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से)

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