Columnistताज़ा खबर

केरल से दिल्ली केवल 3,000 कि.मी. दूर ही नहीं, कुछ और फ़र्क़ भी है !

श्रवण गर्ग
कुछ समय पहले केरल के मुख्यमंत्री के किसी चाहने वाले ने सोशल मीडिया पर अपनी भावना व्यक्त की थी कि पिनयारी विजयन को देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाना चाहिए. सुदूर दक्षिण में एक छोटे से राज्य के 76-वर्षीय मार्क्सवादी मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने के सुझाव को निश्चित ही ज़्यादा ‘लाइक्स’ नहीं मिलनी थीं. उसे बिना ज़्यादा खोजबीन के एक ‘पैड सुझाव’ केरल से भी मानकर ख़ारिज कर दिया गया.

ऐसा तो होना ही था ! कहां 21 करोड़ का उत्तर प्रदेश, सात करोड़ का गुजरात और कहाँ केवल साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाला केरल ! राजनीतिक नेतृत्व के भक्ति-भाव वाले जमाने में केरल हमारी कल्पना के सोच से काफ़ी परे है. चर्चा और विज्ञापनों में इन दिनों केवल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही हैं. पर हो सकता है कि जो कुछ आज विजयन कर रहे हैं, कल पूरे देश को करना पड़े.

मुख्यमंत्रियों की बैठक के लिए केरल की ओर से कुछ ऐसे सुझाव दिए गए थे, जो सिर्फ़ काग़ज़ी नहीं बल्कि उन अनुभवों और तैयारियों से निकले थे, जो 2018 तथा 2019 की ज़बरदस्त बाढ़ों के बचाव कार्यों और निपाह वायरस से सफलतापूर्वक निपटने से प्राप्त हुए थे. राज्य को रेड, ग्रीन और येलो जोंस में बाँटकर हज़ारों लोगों की जानें बचाई गईं थी. 29 जनवरी को कोरोना का पहला केस सामने आने के बाद केरल किसी समय पहले नम्बर पर था, अब तीसरे क्रम पर है. केरल की कुल आबादी में 27 प्रतिशत मुस्लिम हैं.

केरल की असली ताक़त उसकी मजबूत सार्वजनिक चिकित्सा सेवाएँ हैं, जिसमें छह हज़ार डॉक्टर, नौ हज़ार नर्सें और पंद्रह हज़ार अन्य सेवाकर्मी हैं. इनमें द्वितीय पंक्ति की सेवाएँ जैसे आशा वर्कर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि शामिल नहीं हैं. बताने की ज़रूरत नहीं कि केरल की नर्सें अगर देश की स्वास्थ्य सेवाओं में नहीं हों तो क्या हाल बनेगा.

राज्य के कोई सत्रह लाख लोग खाड़ी और अन्य देशों में काम करते हैं और उनकी आय पर केरल के पचास लाख निर्भर करते हैं. ये लोग नियमित आते-जाते रहते हैं. वहीं से पिछली बार लोगों की वापसी पर हालात बिगड़े थे. हवाई यातायात खुलने पर दोबारा बिगड़ सकते हैं. पर तैयारी भी पूरी है. एक लाख से ज़्यादा अतिरिक्त बिस्तरों का इंतज़ाम किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार है.

केरल जैसी आबादी और सम्पन्नता वाले और भी राज्य होंगे पर जिस एक चीज़ से आम आदमी की ज़िंदगी में फ़र्क़ पड़ सकता है, उसकी शायद अन्य जगहों पर कमी है. केरल का एक-एक नागरिक चाहे वह राज्य के भीतर हो या बाहर रहता हो, वह राज्य की हरेक आपदा के साथ अपनी आत्मा से जुड़ा है. यह केवल केरल में ही सम्भव था कि 93 वर्ष के पति और उनकी 88 वर्ष की पत्नी को कोरोना से स्वस्थ कर दिया गया. राज्य में इस समय कोई दो लाख लोग स्वास्थ्य कर्मियों की सतत निगरानी में हैं.

प्रधानमंत्री की शनिवार को मुख्यमंत्रियों के साथ हुई वीडियो कॉनफ़्रेंसिंग के बाद इस तरह के संकेत निकले हैं कि कोरोना संकट से निपटने के लिए केरल मॉडल पर सहमति बन रही है. अगर ऐसा होता है तो कम से कम कोरोना को लेकर तो राहुल गांधी को भी प्रधानमंत्री से शिकायतें कुछ कम हो जाएँगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!